चिट्ठी एक, पाखंड अनेक
।। प्रमोद जोशी ।। (वरिष्ठ पत्रकार) – यह समझने की जरूरत है कि भारतीय राजनीति में सिद्धांत और विचार के मुखौटे कौन, किस तरह से और किस लिए लगाता है. इसके लिए चिट्ठी प्रकरण एक अच्छा उदाहरण है. – फेंकू, लपकू, पप्पू और चप्पू के इस दौर में संजीदा बातें मसखरी की शिकार हो रहीं […]
।। प्रमोद जोशी ।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
– यह समझने की जरूरत है कि भारतीय राजनीति में सिद्धांत और विचार के मुखौटे कौन, किस तरह से और किस लिए लगाता है. इसके लिए चिट्ठी प्रकरण एक अच्छा उदाहरण है. –
फेंकू, लपकू, पप्पू और चप्पू के इस दौर में संजीदा बातें मसखरी की शिकार हो रहीं हैं. चुनाव करीब आने के साथ बढ़े वार और पलटवार के बीच नरेंद्र मोदी के अमेरिकी वीजा प्रकरण ने ध्यान खींचा है. कैलिफोर्निया के ‘फॉरेंसिक डाक्यूमेंट एक्जामिनर’ ने साफ किया है कि चिट्ठी पर दस्तखत असली हैं. यानी ‘कट एंड पेस्ट’ नहीं हैं.
कुछ सांसदों ने कहा था कि इस पर हमारे दस्तखत नहीं हैं. सीताराम येचुरी ने कहा कि यह ‘कट एंड पेस्ट’ भी हो सकता है. चिट्ठी के अंतिम पन्ने पर सिर्फ दो दस्तखत हैं, बाकी 63 अलग पन्नों पर हैं. इसलिए संदेह अस्वाभाविक नहीं है. पर दस्तखत के असली न होने की शिकायत सिर्फ एक सांसद ने की थी. ज्यादातर की शिकायत है कि उन्होंने कोई और चिट्ठी देख कर दस्तखत किये थे. मामला संसद के आगामी सत्र में उठाया जा सकता है.
यह चिट्ठी राजनीति के हास्यास्पद और पाखंडी पहलू की ओर इशारा करती है. भाजपा पर देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण फैलाने का आरोप है. नरेंद्र मोदी उसके सबसे बड़े सूत्रधार हैं. इधर मीडिया कवरेज या कुछ और वजहों से नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी का संवाद मजाक का विषय बन गया है. ‘हिंदुत्व’ की चाशनी में ‘गवर्नेस एवं विकास’ के मोदीवाद या मोदित्व के गुण–दोष पर बहस के बजाय देश का ध्यान मसखरी पर ज्यादा है.
यह चिट्ठी दो दिन का रोमांच बन कर पृष्ठभूमि में चली जाये, उससे पहले कुछेक सवाल पूछने का मन करता है. चिट्ठी का लिखा जाना और अमेरिका से मोदी के वीजा को रोकने की प्रार्थना करना क्या पाखंड नहीं है? सांसदों की यह कैसी राजनीति है? राजनीति के मैदान में क्या वे मोदी से हार मान चुके हैं? मोदी का फैसला देश की अदालत या वोटर से कराने के बजाय विदेशी सरकार के पास जाने की क्या जरूरत है? मोदी को अमेरिका जाने से रोक कर आखिर क्या हासिल होगा?
चिट्ठी से जुड़े कुछ सासंदों ने इससे अपने को अलग किया है, पर सबने नहीं. यानी चिट्ठी लिखी गयी थी. इसलिए इससे अलग करने या न करने के कारणों को समझने की जरूरत भी है. माकपा नेता सीताराम येचुरी, भाकपा के एमपी अच्युतन और द्रमुक के केपी रामलिंगम ने अलग–अलग तरीके से खुद को इस चिट्ठी से अलग किया है. एनसीपी के संजीव नायक का कहना है कि मेरे तो दस्तखत ही नहीं हैं. यों भी उनके दस्तखत बजाय लोकसभा के, राज्यसभा सदस्यों की सूची में हैं. डीएमके सांसद टीकेएस इलंगोवन का कहना है कि मैंने श्रीलंका के तमिलों की दुर्दशा के बारे में एक पत्र के साथ नत्थी कागज पर दस्तखत किये थे, इस चिट्ठी पर नहीं.
सीताराम येचुरी ने यह नहीं कहा कि इस चिट्ठी में उनके दस्तखत फर्जी हैं, लेकिन जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने पलट कर सवाल किया, ‘कहीं और किये गये दस्तखत कहीं और भी तो लगाये जा सकते हैं?’ ऐसा है तो क्या यह छोटी बात है? एक संवाददाता ने उनसे और ज्यादा जानने की कोशिश की, तो उन्होंने कहा, ‘अब आप लगाइये दिमाग. अपना भी तो दिमाग है न?’ बहरहाल उन्होंने यह साफ नहीं किया कि किस काम के लिए उन्होंने दस्तखत किये थे. जब उनसे साफ पूछा गया कि क्या आपके दस्तखत फर्जी हैं, तो उन्होंने कहा, ‘मैंने यह थोड़े ही कहा.’
जिस देश को येचुरी की पार्टी तमाम बुराइयों की जड़ मानती है, उसके राष्ट्राध्यक्ष से ऐसा अनुरोध करना येचुरी की राजनीति के लिए असमंजस पैदा करता है. यों भी किसी संप्रभुता संपन्न देश के जन–प्रतिनिधि किसी दूसरे देश से ऐसा अनुरोध क्यों करें? वाशिंगटन पोस्ट में इस खबर की शुरुआत इस अंदाज में हुई थी, ‘इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती कि भारत के सांसद अपने देश के आंतरिक मामले को लेकर अमेरिका से कोई मांग करेंगे.
अनेक भारतीय राजनेता, जिनके मन में अमेरिका को लेकर आज भी शीत–युद्ध के दौर का संदेह कायम है, इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते.’ ये लाइनें येचुरी जी को लक्ष्य करके लिखी गयी थी या नहीं, पर इन लाइनों ने उन्हें हिट जरूर किया होगा. उनके लिए बेहद जरूरी था कि जल्द–से–जल्द अपने आप को इस चिट्ठी से अलग करते और उन्होंने ऐसा ही किया.
यह कैसी हस्ताक्षर श्रृंखला है, जिसमें शामिल कुछ लोग कहते हैं कि हमने किसी दूसरे आशय की चिट्ठी पर दस्तखत किये थे. चिट्ठी बदली गयी थी तो सभी के साथ धोखा हुआ होगा, सिर्फ कुछ लोगों को क्यों लगा कि मजमून कुछ और था. पाखंड अमेरिका की ओर से भी है. क्या वजह है कि अमेरिका को मोदी धार्मिक असहिष्णुता के प्रतीक लगते हैं? पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के साथ जो सलूक हो रहा है या जिस तरह से शिया मुसलमानों की हत्याएं हो रहीं हैं, वह उसे क्यों नहीं दिखता? क्या अमेरिका में पाक राजनेताओं को वीजा नहीं दिया जाता?
सवाल यह भी है कि भाजपा का अध्यक्ष अमेरिका में जाकर यह अनुरोध क्यों कर रहा है कि नरेंद्र मोदी को वीजा दो? यह उस देश की नीति और विचार का मसला है, उस पर छोड़ दीजिये. आप तो भारतीय राष्ट्रवाद के प्रखर प्रचारक हैं, क्यों अनुरोध करते फिर रहे हैं? और निर्दलीय सांसद मुहम्मद अदीब भी उस अमेरिका से अपील क्यों करना चाहते हैं, जिसे दुनियाभर के मुसलमान मोदी से बड़ा अपराधी मानते हैं?
अदीब कहते हैं कि भाजपा अध्यक्ष अमेरिका में मोदी के लिए इसलिए वीजा मांग रहे हैं, ताकि भारत आकर बता सकें कि उनका पीएम पद का उम्मीदवार पश्चिम में भी स्वीकार्य है, जबकि उनका नेता पश्चिम में और दुनिया के बाकी हिस्सों में स्वीकार्य नहीं है. और फिर जनता की स्वीकार्यता तो भारत में तय होगी, अमेरिका में नहीं. सच यह है कि मोदी को अभी अपनी पार्टी ने ही पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया है.
इस वीजा–चिट्ठी की चर्चा उस दौर में चल रही है, जब राजनीतिक दल खुद को आरटीआइ से बाहर रखने की जुगत में लगे हैं और आपराधिक मामलों में सजा पाये नेताओं की सदस्यता खत्म करने के फैसले के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दागी राजनेताओं के सामने संकट है.
देशभर के 1460 जन प्रतिनिधियों ने अपने हलफनामों में स्वीकारा है कि उनके खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं. आरोपी 162 सांसदों में से तकरीबन 76 ऐसे हैं, जिन पर चोरी, हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे संगीन आरोप हैं. इनमें बहुतों पर आरोप राजनीतिक कारणों से भी लगे हैं, पर अदालत और जनता के फैसले को तो हम मानेंगे. नरेंद्र मोदी अब तक इस कसौटी पर पाक–साफ हैं. और राजनेता तो जनता को सबसे बड़ी अदालत मानते हैं. फिर मोदी को भी उसी कसौटी पर कसिये.
चुनाव इस बात का मौका देते हैं कि व्यक्ति और संगठनों के सिद्धांत और व्यवहार पर खुल कर विचार किया जाये. इस विमर्श को व्यावहारिक बनाइये. व्यवस्था को तार्किक और न्यायपूर्ण बनाने के लिए इसे ढोंग से अलग रखिये. राजनीति हमारा एकमात्र संबल है, पर इस रास्ते पर पाखंडों के पहाड़ हैं. यह समझने की जरूरत है कि सिद्धांत और विचार के मुखौटे कौन, किस तरह से और किस लिए लगाता है. इसके लिए चिट्ठी प्रकरण एक अच्छा उदाहरण है.