घातक है स्थानीयता का अलगौझी राग
झारखंड में अविभाजित बिहार के कई परिवार 1932 के बाद से बसे हुए हैं. वर्ष 2000 के पहले उन परिवारों के बच्चों पर पहचान का संकट नहीं था. वे सभी अविभाज्य बिहार के स्थायी निवासी थे, मगर बीते 14 सालों से उनकी पहचान पर संकट मंडरा रहा है. पहले स्थायी निवास के लिए साक्ष्य प्रस्तुत […]
झारखंड में अविभाजित बिहार के कई परिवार 1932 के बाद से बसे हुए हैं. वर्ष 2000 के पहले उन परिवारों के बच्चों पर पहचान का संकट नहीं था. वे सभी अविभाज्य बिहार के स्थायी निवासी थे, मगर बीते 14 सालों से उनकी पहचान पर संकट मंडरा रहा है.
पहले स्थायी निवास के लिए साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करना पड़ता था, मगर अब लोगों को अपने स्थायी निवास के लिए पुख्ता सबूत पेश करना पड़ रहा है. कारण यह है कि अब यहां दो तरह के आवास पहचान पत्र बनाये जाने लगे हैं. एक शैक्षणिक कार्य के लिए अस्थायी और एक नियोजन के लिए स्थायी. नियोजन वाले प्रमाण पत्र के लिए 1932 के खतियान की मांग की जाती है. दरअसल, यह सब इसलिए हो रहा है कि यहां के राजनेता लगातार अलगौझी का राग अलाप रहे हैं, जो यहां के लोगों के लिए घातक है.
जय प्रकाश महतो, रामगढ़