अहं की लड़ाई छोड़ अब काम की बात हो

उम्मीद की जानी चाहिए कि पटना की सूरत बदलेगी, लेकिन ऐसा तभी होगा, जब नगर निगम के पदधारक व्यक्तिगत अहं को दायित्व बोध पर हावी नहीं होने देंगे. ऊंचे पद पर बैठे व्यक्तियों की अहं की लड़ाई का खामियाजा पटना के लोग भुगत चुके हैं. कई मामलों में अब भी भुगत रहे हैं. मेयर-नगर आयुक्त- […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 2, 2015 5:46 AM
उम्मीद की जानी चाहिए कि पटना की सूरत बदलेगी, लेकिन ऐसा तभी होगा, जब नगर निगम के पदधारक व्यक्तिगत अहं को दायित्व बोध पर हावी नहीं होने देंगे. ऊंचे पद पर बैठे व्यक्तियों की अहं की लड़ाई का खामियाजा पटना के लोग भुगत चुके हैं. कई मामलों में अब भी भुगत रहे हैं. मेयर-नगर आयुक्त- पार्षद-कर्मचारी विवाद ने न केवल पटना की स्थिति को नारकीय बनाया, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े किये.
प्रशासन से लेकर सरकार और हाइकोर्ट तक को बीच में आना पड़ा. निगम का माहौल बिगड़ा और जनविश्वास में कमी आयी. राशि व संसाधन के रहते उनका इस्तेमाल नहीं हुआ और पटना देश के खराब नागरिक सुविधा वाले महानगर के रूप में जाना गया. छोटे-छोटे मामले को लेकर लोगों और संगठनों को सड़क पर आना पड़ा. सरकार और हाइकोर्ट को तल्ख टिप्पणी करनी पड़ा. कर चुकाने के बाद भी लोगों को बुनियादी सुविधाएं, संसाधन और सुरक्षा नहीं मिली. इसमें नागरिकों और समय का जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई नहीं हो सकती, पर आने वाले दिन ऐसे नहीं होंगे, इस बात को सुनिश्चित किया जा सकता है.
हाइकोर्ट के ताजा फैसले के बाद निगम को नये नगर आयुक्त के साथ काम करने का अवसर मिलेगा. कोर्ट के फैसले को किसी की हार या जीत के रूप में नहीं देखना चाहिए. फैसले से निगम की कार्य संस्कृति में अगर सुधार होता है और यहां स्वस्थ व्यवस्था बन पाती है, तो इसी में सब की जीत है. निगम को अपने काम से उन आशंकाओं को भी दूर करना होगा, जिसमें मेयर-आयुक्त के पिछले विवाद की जड़ बिल्डरों का गंठजोड़ और अवैध अपार्टमेंट को माना जा रहा है.
पांच साल में छह बार नगर आयुक्त बदलना और उसकी वजह आंतरिक विवाद का होना, निश्चय ही एक लोकतांत्रिक संस्था और उसके नेतृत्व को लेकर चिंता पैदा करने वाला विषय है. यह चिंता इसलिए भी बड़ी है कि नगर निगम से इसके क्षेत्रधिकार में रहने वाले हर आम-खास का सीधा सरोकार होता है. सब के हितों की रक्षा ही इस संवैधानिक संस्था का पहला धर्म है. इसका पालन इससे जुड़े सभी जवाबदेह लोगों को करना होगा, तभी पटना में तेजी से घनी होती आबादी के दबाव और नागरिक सुविधाओं को सुनिश्चित करने की चुनौतियों से निबटा जा सकता है.

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