अर्थशास्त्र के किस फार्मूले से गरीबी घटी?

सरकारी पैमाने के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्र में 27.20 रुपये और शहरी क्षेत्र में 33 रुपये रोज खर्च करनेवाले गरीब नहीं हैं. एक तरफ शेयर सूचकांक से ज्यादा तेज गति से बढ़नेवाली महंगाई और दूसरी ओर गरीबी की नयी परिभाषा देख कर लगता है कि सरकार महंगाई पर तो कोई अंकुश नहीं लगा पायी, इसलिए उसने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 1, 2013 4:24 AM

सरकारी पैमाने के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्र में 27.20 रुपये और शहरी क्षेत्र में 33 रुपये रोज खर्च करनेवाले गरीब नहीं हैं. एक तरफ शेयर सूचकांक से ज्यादा तेज गति से बढ़नेवाली महंगाई और दूसरी ओर गरीबी की नयी परिभाषा देख कर लगता है कि सरकार महंगाई पर तो कोई अंकुश नहीं लगा पायी, इसलिए उसने गरीबी के नये मापदंड गढ़ कर गरीबी कम करने का श्रेय लेने की सोची है.

एक तरफ वह गरीबी कम होते दिखा रही है, तो दूसरी तरफ उसने देश के 67 प्रतिशत गरीबों को खाद्य सुरक्षा योजना के तहत कम कीमत पर गेहूं, चावल, देने का निर्णय लिया है.

जब लोग गरीब हैं ही नहीं, तो उन्हें गरीब मान कर अरबों रुपये खर्च कर खाद्य सुरक्षा योजना क्यों लागू की जा रही है? इस दोतरफा निर्णय से क्या केंद्र सरकार खुद सवालों के घेरे में खड़ी नजर नहीं आती है? देश की जनता यह भी जानने को उत्सुक है कि गरीबी का जो नया मापदंड यूपीए सरकार ने तय किया है, वह अर्थशास्त्र के किस नियम के तहत आता है? हो सकता है कि इस नये फार्मूले को अपना कर दुनिया के अन्य देश भी अपने यहां की गरीबी कम कर लें!

।। दीपक कु सिंह ।।

(हजारीबाग)

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