।। अखिलेश्वर पांडेय ।।
(प्रभात खबर, जमशेदपुर)
योजना आयोग ने गरीबी की जो नयी परिभाषा पेश की है, उससे तो यही लगता है कि अब हमारे देश से गरीबी खत्म हो या न हो, पर गरीब अवश्य खत्म हो जायेंगे. सरकार की इस प्रतिबद्धता को देख कर तो यही लगता है कि आजकल सरे–राह घूम रहे गरीब कल देखने को भी मयस्सर नहीं होंगे.
यह अहसास काफी दुखद है, क्योंकि जब गरीब ही नहीं रहेंगे, तो अमीर होने का भला क्या मतलब? अब अमीर किसके पेट पर लात मारेगा? और फिर किसको दिया जाएगा 2-3 रुपये किलो के भाव पर अनाज? सवाल यह भी है कि गरीबों के लिए चल रही योजनाओं से जो पैसा बचेगा, उसका किया क्या जायेगा? तो भई यह पैसा नये घोटालों में काम आयेगा.
फिर कुछ समय बाद सरकार बहुत जल्द अमीर बनने जा रहे इन गरीबों पर टैक्स भी लगा देगी. उस टैक्स से जो पैसा आएगा उसका सदुपयोग भी घोटालों में किया जायेगा. जनता के पैसे से घोटाले करनेवाले नेताओं को तो गरीब की हाय भी नहीं लग पायेगी, क्योंकि गरीब होगा ही कहां हाय लगाने के लिए. अगर ऐसा हुआ तो कुछ ऐसी होगी वर्ष 2020 की तस्वीर : भिखारी भी अमीर हुआ करेंगे, लेकिन तब वे भीख कैसे मांगेंगे? यह तो कह नहीं सकते कि साहब बहुत गरीब हूं, दो दिन से कुछ नहीं खाया है, कुछ पैसे दे दो. तब वे यह कहेंगे कि साहब बहुत कम अमीर हूं. दो दिन से केवल 27 रुपये ही खर्च किए हैं.
कुछ पैसे दे दो. गरीब नहीं रहेंगे, तो फिल्मों की एक पुरानी स्टोरी लाइन भी बदलनी पड़ेगी. गरीब लड़की और अमीर लड़का या फिर अमीर लड़की और गरीब लड़के वाला प्यार तो हो ही नहीं पायेगा. अमीर हिरोइन का बाप गरीब हीरो को पैसे से खरीदने के बारे में सोचेगा तक नहीं. अमीर सेठ किसी गरीब हीरो का खेत भी नहीं गिरवी रख पायेगा. अगर ऐसी किसी स्टोरी पर फिल्म बनायी भी जाती है, तो उसे पौराणिक कथा फिल्मों की कैटेगरी में रखना होगा.
कोई किसान गरीबी की वजह से आत्महत्या कर भी ले, तो मीडिया कुछ इस तरह कवरेज करेगा– एक किसान ने अपनी कम अमीरी की वजह से आत्महत्या कर ली. सबसे मजेदार बात तो यह है कि जब दिन में 27 रुपये खर्च करनेवाला अमीर हुआ, तो फिर हम और आप तो बहुत अमीर हुए, मतलब एकदम रईस टाइप वाले अमीर. खुद को रईस सोच कर ही कितना मजा आ रहा है.. है न! लेकिन अफसोस! बड़ी समस्या हो जायेगी.
जब गरीब नहीं होंगे, तो हम दान–पुण्य किसे करेंगे? जरा सोचिए, उनका क्या होगा जो अभी गरीबों को कंबल, फल, खाना आदि दान देकर अपनी काली कमाई को छुपाने या पापों को धोने का ढोंग करते हैं. जेब की गरीबी से बड़ा मसला तो वैचारिक दरिद्रता का है, वह कैसे खत्म होगी? एक अपील : गरीबों की सुनो, वो तुम्हारी सुनेगा..