रोजगार से ही उग्रवाद उन्मूलन संभव

पचास-साठ के दशक में उग्रवाद का नामोनिशान नहीं था. आबादी भी कम थी. गांव के अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर थे. समय पर वर्षा होती थी. जमीन उपजाऊ थी. फसल अच्छी होती थी. लोग सुखी-संपन्न थे. आबादी बढ़ती गयी. जमीन की उत्पादकता कम हो गयी. मौसम की बेरुखी भी आग में घी का काम करता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 3, 2015 5:50 AM
पचास-साठ के दशक में उग्रवाद का नामोनिशान नहीं था. आबादी भी कम थी. गांव के अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर थे. समय पर वर्षा होती थी. जमीन उपजाऊ थी. फसल अच्छी होती थी. लोग सुखी-संपन्न थे. आबादी बढ़ती गयी. जमीन की उत्पादकता कम हो गयी. मौसम की बेरुखी भी आग में घी का काम करता रहा.
अब उपज न होने या कम होने से परिवार का भरण-पोषण करना भी मुश्किल हो गया. आर्थिक स्थिति िकमजोर होने से बच्चों को समुचित शिक्षा मिलना लगभग बंद हो गया और युवक रोजगार की तलाश में पलायन करने लगे. नौकरियों में भी सख्त प्रतियोगिता, प्रांतीयता, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के कारण बेरोजगारी दर में लगातार बढ़ोतरी होने लगी. युवकों का भविष्य अंधकारमय हो गया. आर्थिक स्थिति से कमजोर और गरीब लोगों के बच्चों को आज के समय में अंगरेजी स्कूल में पढ़ाना आसान नहीं है और सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर लगातार गिरता ही जा रहा है.
समाज में अमीर-गरीब, ऊंच-नीच और आर्थिक असमानता की खाई बढ़ने से युवकों ने उग्रवाद की ओर रुख करना शुरू कर दिया. मेरी समझ से सरकार और सरकार में शामिल लोगों को इसकी जड़ को तलाशना होगा. उग्रवाद का उन्मूलन बंदूक के बंदूक से संभव नहीं है.
इसका उन्मूलन शिक्षा में उदारीकरण, बच्चों को बेहतर शिक्षा, भूख मिटाने के लिए रोजगार के समान अवसर की उपलब्धता और गरीबी दूर करने के बाद आसानी से हो सकता है. खास कर शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाने के लिए सरकार को सैद्धांतिक प्रक्रिया को छोड़ कर व्यावहारिक विधि का इस्तेमाल करना होगा, तभी समाज से उग्रवाद का समूल उन्मूलन संभव है.
उदयचंद्र, रांची

Next Article

Exit mobile version