छोटा राज्य और विकास
देखते-देखते भारत में एक और छोटे राज्य, तेलंगाना का गठन होने को है. यह सच है कि बहुत सी प्रशासनिक खामियों और अन्य महत्वपूर्ण कारणों से ही जनता को सड़क पर आंदोलन करने उतरना पड़ता है और लोक-हित में जनता की इच्छा का आदर करते हुए राज्य या देश को उसकी मांगों को मान भी […]
देखते-देखते भारत में एक और छोटे राज्य, तेलंगाना का गठन होने को है. यह सच है कि बहुत सी प्रशासनिक खामियों और अन्य महत्वपूर्ण कारणों से ही जनता को सड़क पर आंदोलन करने उतरना पड़ता है और लोक-हित में जनता की इच्छा का आदर करते हुए राज्य या देश को उसकी मांगों को मान भी लेना पड़ता है. मगर यहां सबसे बड़ा सवाल तो यह उठता है कि जनता को आखिर सड़क पर क्यों उतरना पड़ता है?
लोकतंत्र में जनता अपनी इच्छाएं एक भारी-भरकम और खर्चीले चुनाव के जरिये जाहिर कर ही देती है कि उसके द्वारा चुने गये प्रतिनिधि अब अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन करें. ये प्रतिनिधि स्वच्छ प्रशासन व अच्छी नीतियों द्वारा उस जनता के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करें, जिसने उन्हें इस जगह पर भेजा है. और निस्संदेह जनता पागल नहीं होती, जो निकम्मे लोगों को ऐसे कर्तव्यों का निर्वहन करने भेजे! अब अगर ये प्रतिनिधि सिर्फ खाने-पीने और पचाने में ही लग जायें, तो जनता क्या करे और किसी-किस चीज के लिए सड़कों पर उतरे?
इसके बाद भी उसकी समस्यायों का हल न हो तब? और जब जनता के ही कुछ सदस्य तंग आकर बंदूक उठा लें तब? और जब किसी भी राज्य का एक बड़ा हिस्सा बरसों पिछड़ा ही बना रहे तब? तब जनता आखिर क्या करे? क्या प्रतिनिधि वैसे ही अयोग्य बने रहें और जनता पागलों की तरह हर बात पर सड़क पर आंदोलनरत रहे? क्या सत्ता महज एक मजाक और अपने स्वार्थो की पूर्ति का साधन भर बन कर रह गयी है! अब अगर प्रतिनिधि अपना कोई कर्तव्य ना निभायें और अफसर हर जगह अपनी मनमानी ही करें, तब क्या अलग राज्य बनाने से समस्या का समाधानहो जायेगा? झारखंड का उदाहरण हमारे सामने है.
राजीव वर्मा, अपर बाजार, रांची