इस हिंसा से जुड़े कुछ महाप्रश्न

।।प्रो आनंद कुमार।।समाजशास्त्री, जेएनयूजेएनयू की एक कक्षा में एक छात्र द्वारा अपनी सहपाठी छात्रा पर प्राणघातक हमला करके खुद को भी समाप्त करने की घटना ने समूचे देश को स्तंभित कर दिया है. प्रेम संबंधों में विफल होने पर आत्महत्या का रास्ता अपनाना बहुत पुराना सच है. मित्रता टूटने पर अवसादग्रस्त होकर अपनी मित्र रह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 2, 2013 3:00 AM

।।प्रो आनंद कुमार।।
समाजशास्त्री, जेएनयू
जेएनयू की एक कक्षा में एक छात्र द्वारा अपनी सहपाठी छात्रा पर प्राणघातक हमला करके खुद को भी समाप्त करने की घटना ने समूचे देश को स्तंभित कर दिया है. प्रेम संबंधों में विफल होने पर आत्महत्या का रास्ता अपनाना बहुत पुराना सच है. मित्रता टूटने पर अवसादग्रस्त होकर अपनी मित्र रह चुकी महिला को दंडित करने की कोशिश करना भी कई प्रसंगों में सामने आता रहा है. लेकिन जिस दुस्साहस के साथ इस छात्र ने अपने आक्रोश और प्रतिशोध का प्रदर्शन करते हुए शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच अपनी पाठशाला में ऐसी बर्बरता की है, उससे कई प्रश्न पैदा होते हैं.

व्यक्तिगत स्तर पर अपनी इस हरकत के बारे में इस छात्र ने दो पेज लंबा आत्महत्या पत्र छोड़ा है, जिसमें उसने शिकार बनायी गयी छात्रा को मना न पाने की शिकायत लिखी है. लेकिन इसके प्रतिशोध में उसका स्वयं का बर्बर आचरण या वहशीपन किस तर्क की कसौटी पर खरा उतरता है, इसके बारे में कोई चर्चा नहीं है. उसके अपने परिवेश के बारे में जो सूचनाएं उपलब्ध हुई हैं, उसके अनुसार बिहार के एक सामान्य ग्रामीण परिवार का यह छात्र कई समस्याओं से घिरा हुआ था. पिता के कैंसर पीड़ित होने से लेकर अपनी पढ़ाई में पिछड़ने और छात्रावास के शुल्क को समय पर जमा करने में असमर्थता तक चौतरफा समस्याएं उमड़ रही थीं. लेकिन इन सबकी पूरी व्याख्या के लिए इस दोषी छात्र के बारे में मनोवैज्ञानिक, पारिवारिक और निजी परिवेश के बारे में बहुत कुछ जानने की जरूरत है. यह निष्कर्ष अपर्याप्त रहेगा कि यह सब एक छात्र द्वारा चौतरफा असफलताओं से घिर जाने के कारण किया गया, क्योंकि इसमें उसने अपनी जान देने के पहले सिर्फ अपनी एक सहपाठिनी की जान लेने की कोशिश की. बाकी पहलुओं के बारे में उस पत्र में कोई जिक्र नहीं है. न ही उसकी कक्षा व छात्रवास के परिचितों को इसका अंदाजा रहा है.

ऐसे में यह प्रश्न ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है कि यह घटना जेएनयू जैसे विद्यार्थी पक्षधर और स्त्रियों के सम्मान और सुरक्षा के प्रति सदैव प्रिय और सजग विश्वविद्यालय में कैसे संभव हुई? अभी हाल में इसी विश्वविद्यालय के छात्रों ने दिसंबर में हुए दामिनी बलात्कार कांड के खिलाफ वसंत विहार थाने से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति भवन तक प्रतिरोध का अभूतपूर्व माहौल बनाने की अगुवाई की थी. महिलाओं के प्रति हो रहे अमर्यादित आचरण को रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा प्रसंग में जब लिंगभेद और उत्पीड़न निवारक समितियां बनाने का निर्देश देश को दिया, तो जेएनयू ने बाकी सभी विश्वविद्यालयों से पहले ऐसी एक समिति का गठन किया, जो बाकी सार्वजनिक संस्थाओं के लिए मार्गदर्शक बन चुकी है. यहां की विद्यार्थी संस्कृति में नर-नारी समता के प्रति सहज आग्रह और प्रभावशाली प्रशिक्षण की 1971 से ही निरंतरता है. पिछले एक दशक में कम से कम चार बार विद्यार्थियों ने छात्राओं को छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया है. विवि की प्रवेश नीति में छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने की दृष्टि से पांच अंकों का वेटेज (विशेष अंक) देने की प्रथा के कारण आज अधिकांश संकायों के पाठ्यक्रमों में लड़कियों का अनुपात लड़कों से ज्यादा होता जा रहा है. कक्षा से लेकर पुस्तकालय, भोजनालय और सांस्कृतिक जीवन में छात्र-छात्राओं के बीच में सहज-संबंधों की बारंबारता बनी रहती है. फिर भी यदि कोई छात्र तीन साल तक यहां के छात्रावास में रह कर एक सहशिक्षा परिवेश में एक विदेशी भाषा की स्नातक स्तर की शिक्षा लेते हुए भी अपनी एक सहपाठिनी के प्रति आक्रामकता की अति के लिए प्रेरित होता है, तो इसकी गहरी जांच की जरूरत है, क्योंकि यह घटना विश्वविद्यालयों की सामाजीकरण प्रक्रिया के बावजूद उत्पन्न एक खतरनाक विकृति से हमारा सामना कराती है.

यदि हम व्यक्तिगत और विश्वविद्यालयी संदर्भो के बाहर कुछ कारकों को तलाशना चाहते हैं, तो हमारा ध्यान बरबस मीडिया और इंटरनेट की तरफ जाता है. जिस फिल्म में शाहरुख खान को रातों-रात सुपरस्टार बनाया, उसकी पटकथा जेएनयू में 36 घंटे पहले हुई अविश्वसनीय घटना के समानांतर दिखती है. फिल्मों की दुनिया में नायिका के प्रति आकर्षण के चलते असभ्यता और बर्बरता का रास्ता अपनाना अब असहज नहीं रह गया है. शाहरुख की ही तरह अधिकतर फिल्मों में अपने प्रेम की गहराई को सिद्ध करने के लिए नायक नायिका के प्रति हिंसा के बजाय अपने को पीड़ा और अपमान का शिकार बनाता है. इसलिए फिल्मों की दुनिया से तो दोनों तरह की प्रवृत्तियों को पुष्टि मिलती है. और वैसे भी फिल्मों को आज के छात्र एक काल्पनिक कथावस्तु के जरिये मनोरंजन का माध्यम मानते हैं. अनुकरण के लिए प्रेरित करनेवाली फिल्में कम बन पाती हैं.

लेकिन यह जरूर गौर करना होगा कि इधर कुछ वर्षो में प्रेम में विफल नवयुवकों द्वारा अपने आकर्षण का केंद्र रह चुकी युवती को प्रताड़ित करने के समाचारों की संख्या बढ़ती जा रही है. इसमें ऐसे क्रुद्ध युवक बलात्कार और तेजाब फेंकने की घटना को अंजाम देते दिखते हैं. इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अभी हाल में अपने प्रेमियों द्वारा अपने पूर्व प्रेमिका को प्रताड़ित करने की कोशिश के खिलाफ कानूनी सख्ती पर जोर दिया गया है. इसी के साथ तेजाब की खरीद-बिक्री को भी प्रशासन की निगरानी में लाने का निर्देश जारी हुआ है.

यह सब हमारी नयी पीढ़ी के पुरुषों में स्त्रियों के प्रति बढ़ रही क्रूरता से समाज को सजग करने और बचाने के प्रशासनिक कदम हैं, लेकिन असली समाधान तो हमारी संस्कृति और सामूहिक जीवन के तीन महा स्नेतों में है. पहला परिवार, दूसरा विद्यालय और तीसरा साहित्य व मीडिया. पहला, यदि परिवार में स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा के प्रति रत्ती भर भी उपेक्षा भाव रहेगा, तो यह बच्चों के युवक बनने तक एक विषवृक्ष की तरह गहरी जड़ें जमा लेगा. दूसरा, विद्यालय में स्त्रियों के प्रति आदर भाव के साथ-साथ उनकी निजता और मर्यादा के प्रति सामूहिक सरोकार का ज्ञान और प्रशिक्षण उतना ही जरूरी है, जितना भाषा का व्याकरण, कंप्यूटर के नियम और उच्चतर ज्ञान-विमर्श का अभ्यास. तीसरा, हमारे साहित्य और मीडिया के बनाये क्षेत्र में यौन हिंसा और पोर्नोग्राफी की बाढ़ आयी हुई है. हम इस समस्या के तात्कालिक और दूरगामी प्रभावों की अगर अनदेखी करेंगे, तो परिवार और विद्यालय में मनुष्य का निर्माण और स्त्री-हिंसा निमरूलक सभी प्रयास बेकार साबित होंगे, क्योंकि अब यह स्नेत माता-पिता और शिक्षकों के बाद तीसरा सबसे बड़ा माध्यम और प्रेरक होता जा रहा है.

आज जेएनयू की कक्षा में अपने सहपाठी की बर्बरता का शिकार हुई छात्रा बेहोश है, लेकिन उसकी चुप्पी में से ही यह महाप्रश्न सामने आ खड़ा हुआ है कि यदि मैं अपने शिक्षक और सहपाठियों के बीच भी किसी की नाराजगी के कारण ऐसी बर्बरता का शिकार बनायी जा सकती हूं, तो फिर मेरे लिए घर-परिवार के बाहर की दुनिया में कौन-सी जगह सुरक्षित है? हम सब पर इस सवाल का जवाब देने की सामूहिक जिम्मेदारी है.

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