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इस जाम से कैसे मिले छुटकारा?

यह सवाल बिल्कुल वाजिब है कि जाम में फंसे किसी वीआइपी से पुलिस-प्रशासन के लोग सॉरी बोल दें, तो क्या उनकी जिम्मेदारी खत्म हो जाती है? सड़कों पर लाखों लोग हर दिन जिस जाम में फंसते हैं, उन्हें कौन सॉरी कहेगा? सवाल यह भी कि सॉरी कहने की जरूरत ही क्यों पड़े. पटना में सड़क […]

यह सवाल बिल्कुल वाजिब है कि जाम में फंसे किसी वीआइपी से पुलिस-प्रशासन के लोग सॉरी बोल दें, तो क्या उनकी जिम्मेदारी खत्म हो जाती है? सड़कों पर लाखों लोग हर दिन जिस जाम में फंसते हैं, उन्हें कौन सॉरी कहेगा? सवाल यह भी कि सॉरी कहने की जरूरत ही क्यों पड़े. पटना में सड़क जाम गंभीर समस्या बनकर सामने आया है. दूसरे शहरों की हालत इससे जुदा नहीं है.

अलबत्ता जाम को लेकर डिग्री का फर्क जरूर हो सकता है. अलग-अलग शहरों में हर दिन सड़क जाम से लोगों का सामना होता है. पर समस्या दूर होने के बदले और भयावह होती जा रही है. ऐसी स्थिति तब है जब राष्ट्रीय स्तर पर बिहार में शहरीकरण की रफ्तार सबसे कम है.

जाहिर है कि शहरीकरण तेजी से होगा तो उसके अनुरूप दूसरी संरचनाओं की जरूरत होगी. शहरों में आज जो संरचना है, वह काफी पुरानी हो चुकी है. नयी इमारतें तो बन रही हैं पर सड़कों तथा पार्किग के लिए जगह का विस्तार कम है. ट्रैफिक कंट्रोल के लिए जितने संसाधन की जरूरत है, वह नहीं है. पटना सहित हर शहर में दो पहिया और चार पहिया वाहनों की तादाद अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है. बीते डेढ़-दो दशकों के बीच सामने आये नये मध्य वर्ग के पास भौतिक सुख के साधन पहुंचे हैं. पर नहीं लगता कि शहरीकरण की संस्कृति का मानस तैयार हो रहा है. सड़कों पर गाड़ी पार्क करने को लेकर ट्रैफिक पुलिस के साथ नोकझोंक, मारपीट के वाकये आम हैं.

इसकी मूल वजह आधारभूत संरचना का नहीं होना ही माना जा सकता है. दूसरी बड़ी समस्या अतिक्रमण है. यह अतिक्रमण बड़ा हो या छोटा, लगभग हर कोई करता है. पटना में जाम से छुटकारा दिलाने के लिए कई फ्लाई ओवर बने और कई निर्माणाधीन हैं. अब मेट्रो लाने की पहल हुई है. लेकिन यह तुरत-फुरत में होने वाला भी नहीं है. इसमें वक्त लगेगा. ऐसे में बेहतर होगा कि जाम से बचने के लिए संबंधी एजेंसी खाका तैयार करे. वह तय करे कि किस रूट पर कौन से वाहन चलेंगे? गाड़ियों की तादाद को नियंत्रित करने की दिशा में क्या सामाजिक समूहों के साथ संवाद किया जा सकता है? सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को और कैसे बेहतर बनाया जाये कि लोगों को उस पर भरोसा हो. आम राहगीरों की दिक्कतों को सामने रखकर ही कोई योजना कारगर हो सकती है.

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