खाद्य पदार्थो के सस्ते होने का है इंतजार
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार कमी, रिजर्व बैंक द्वारा क्रेडिट रेपो रेट में कमी तथा बहुमत की सरकार और उसकी नीतियों में निवेशकों का भरोसा, आम बजट से पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए ये सकारात्मक स्थितियां हैं. पिछले दिनों सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी की आंशिक बिक्री से भी […]
सेवा क्षेत्र में भी विस्तार हो रहा है, जो देश के सकल घरेलू उत्पादन में करीब 60 फीसदी का योगदान करता है. इन आधारों पर वित्त मंत्री एक अच्छा बजट देने की स्थिति में हैं. लेकिन, कई ऐसे कारक हैं, जो जेटली के उत्साह पर पानी फेर सकते हैं. आम लोगों की रोजमर्राकी जरूरत की चीजों के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. दिल्ली-स्थित आजादपुर मंडी, जो अनाज, फलों और सब्जियों की एशिया की सबसे बड़ी मंडी है, के आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक वर्ष में खाद्यान्न कीमतों में 30, सब्जियों व फलों में 20 से 50 तथा मौसमी उत्पादों की कीमतों में 100 फीसदी तक बढ़ोतरी दर्ज की गयी है.
सरकार की नीतियों और खाद्य आपूर्ति में सुधार के दावों के बावजूद मुद्रास्फीति, धीमी गति से ही सही, बढ़ने के कारण लोगों को महंगाई की मार ङोलनी पड़ रही है. पूर्ववर्ती सरकार के दौरान तर्क था कि तेल की कीमतें बढ़ने के फलस्वरूप भाड़ा में वृद्धि के कारण खाने-पीने की वस्तुएं महंगी हो रही हैं. लेकिन, पिछले कुछ महीनों में तो तेल की कीमतों में भारी कमी हुई है.
ऐसे में भाड़े में कमी स्वाभाविक रूप से अपेक्षित है, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. रिजर्व बैंक ने चेतावनी भी दी है कि तेल की कम कीमतों के फायदों- कम मुद्रास्फीति और अधिक बचत- पर खाद्य पदार्थो की बढ़ती कीमतों का नकारात्मक असर होगा. जहां एक ओर इस वर्ष जोरदार फसल की उम्मीद है, वहीं यह आशंका भी है कि कुछ अन्य देशों में भी ऐसी स्थिति के कारण गेहूं व कुछ अन्य वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिकूल असर होगा. रुपये की अस्थिरता बरकरार है. वित्तीय सेवा क्षेत्र में विकास मंद है. अत्यधिक निर्यात कर और दाम गिरने के कारण करीब 12 मिलियन टन कच्चे लोहे के बंदरगाहों पर अटके होने की खबर भी चिंताजनक है. ऐसे में केंद्र सरकार को बजट में आम लोगों को महंगाई से राहत देने और अर्थव्यवस्था की स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.