मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि वाइब्रेंट गुजरात की तरह वाइब्रेंट झारखंड भी बनेगा. मुख्यमंत्री आशान्वित हैं. हाल ही में जब गुजरात में एक बड़ा आयोजन हुआ था जिसमें दुनिया की कई प्रमुख कंपनियों के प्रमुख/प्रतिनिधि आये थे. उन्होंने गुजरात में निवेश की इच्छा जतायी थी.
इसी कार्यक्रम में झारखंड का भी स्टॉल लगा था. निवेशकों ने झारखंड में भी रुचि दिखाई थी. मुख्यमंत्री खुद वहां गये थे और अलग से निवेशकों के साथ बैठक की. झारखंड आने का न्योता दिया. अगर राज्य को तरक्की करनी है तो तेजी से काम करना होगा. लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि गुजरात और झारखंड के हालात में फर्क है. गुजरात में कानून-व्यवस्था बेहतर है. उद्योग का माहौल है जबकि झारखंड में बहुत बाधाएं हैं.
राज्य का बड़ा इलाका नक्सलग्रस्त है. जिस राज्य में सरकारी अधिकारी पुल-सड़क का निर्माण नहीं करा पा रहे, ठेके नहीं उठ रहे, वहां निवेशकों को राजी कराना आसान नहीं है. राज्य में जमीन बड़ी समस्या है. उद्योग जमीन पर लगते हैं. इतिहास गवाह है कि राज्य में लगभग दो लाख करोड़ का एमओयू कार्यान्वित नहीं हो सका. कहीं जमीन की समस्या, तो कहीं और समस्या. इसलिए सरकार के चाहने के बाद भी इस काम में तेजी तब तक नहीं आ सकती, जब तक हर दल, यहां की जनता आगे न आये. झारखंड में विकास का माहौल बनाना होगा. इस बात को स्वीकार करना होगा कि बगैर विकास किये कोई भविष्य नहीं. पहल हुई है.
भ्रष्टाचार में लिप्त अफसरों को किनारे लगाया जा रहा है. यह निवेश के लिए जरूरी भी है. कोई तब तक पूंजी नहीं लगायेगा, जब तक आश्वस्त नहीं होगा. काम करने का तरीका बदलना होगा. यह आसान नहीं है. यहां इंफ्रास्ट्रर का विकास करना होगा. उद्योग के लिए खनिज के साथ जमीन, पानी-बिजली और बेहतर कानून-व्यवस्था चाहिए. झारखंड में खनिज तो भरा है लेकिन जब तक दोहन नहीं होगा, लाभ नहीं मिलनेवाला. झारखंड के लोगों को रोजगार के लिए बाहर जाकर भटकना पड़ता है जबकि अगर राज्य पटरी पर आ जाये तो यहां रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं. बेहतर होगा कि राज्य की जनता, यहां के राजनेता मिल कर माहौल बनायें.