शिक्षा पर हावी होता पूंजीवाद
जब कॉलेजों से डिग्री लेकर विद्यार्थी निकलते हैं तो हौसला जैसे सातवें आसमान में पंख लगा कर उड़ रहा होता है. कुछ कर गुजरने का जुनून सवार होता है, दिल गदगद होता है. नया जोश, नया खून, नयी जवानी, सब एक स्वर में आवाज देते हैं. लेकिन जब वास्तविकता का एहसास होता है, तब वह […]
जब कॉलेजों से डिग्री लेकर विद्यार्थी निकलते हैं तो हौसला जैसे सातवें आसमान में पंख लगा कर उड़ रहा होता है. कुछ कर गुजरने का जुनून सवार होता है, दिल गदगद होता है. नया जोश, नया खून, नयी जवानी, सब एक स्वर में आवाज देते हैं. लेकिन जब वास्तविकता का एहसास होता है, तब वह धरातल पर उतरता है और जमीनी हकीकत से मुखातिब होता है. उन नौजवानों को दर–दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं और अंतत: पूंजीपतियों का सामना करना पड़ता है.
ऐसा ही एक वाकया बीते दिनों ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन द्वारा बुलाये गये बंद के दौरान इनकी मांगे थीं कि खुदरा दवा दुकानों में अब प्रशिक्षित फार्मासिस्टों की जरूरत नहीं है. फार्मेसी एक्ट में संशोधित कर नयी धारा लागू की जाये. इनकी मांगों पर अगर गौर करें तो यह पूरी तरह से शिक्षण व्यवस्था पर प्रहार है. क्योंकि आनेवाले दिनों में यही पूंजीपति वर्ग फिर से आवाज उठायेगा और यह मांग करेगा कि अस्पतालों में डॉक्टरों की, न्यायालयों में वकीलों की और स्कूलों में शिक्षकों की भी जरूरत नहीं है.
।। मुनेश्वर गोराई ।।
(बोकारो)