मौजूदा सियासी हालात और संवैधानिक रास्ते
प्रभात विशेष : आपके सारे सवालों के कानूनी व तथ्यात्मक जवाब, हम यहां दे रहे हैं अपने समय के जाने-माने राजनीतिज्ञ और कई पुस्तकों के लेखक सिद्धेश्वर प्रसाद ने राज्य की मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल के साथ जुड़ी संभावनाओं पर बात की. वर्ष 1995 से 2000 के बीच त्रिपुरा के राज्यपाल रहे श्री प्रसाद ने संविधान, […]
प्रभात विशेष : आपके सारे सवालों के कानूनी व तथ्यात्मक जवाब, हम यहां दे रहे हैं
अपने समय के जाने-माने राजनीतिज्ञ और कई पुस्तकों के लेखक सिद्धेश्वर प्रसाद ने राज्य की मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल के साथ जुड़ी संभावनाओं पर बात की. वर्ष 1995 से 2000 के बीच त्रिपुरा के राज्यपाल रहे श्री प्रसाद ने संविधान, राज्य के राजनीतिक घटनाक्रम और राज्यपाल की भूमिका पर अपने अनुभव साझा किये. मौजूदा राजनैतिक परिदृश्य और संभावनाओं पर पढ़िए उनकी राय :
मौजूदा स्थिति में राज्यपाल की भूमिका क्या हो सकती है?
राज्यपाल की भूमिका तब शुरू होगी, जब कोई पक्ष दावा लेकर पहुंचेगा. एक पक्ष कह सकता है कि विधानसभा भंग किया जाये. दूसरा पक्ष कह सकता है कि बहुमत उसके पास है.
एक तीसरा पक्ष भी है, जो कह सकता है कि राज्य में किसी भी दल के पास सरकार बनाने लायक आंकड़ा नहीं है. संविधान की व्यवस्था के अनुसार राज्यपाल इन सभी दावों का परीक्षण करने के बाद ही कोई फैसला लेंगे.
क्या मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं?
यह किसी भी मुख्यमंत्री का अधिकार है कि वह कैबिनेट की बैठक बुला कर विधानसभा भंग करने की सिफारिश को मंजूरी दिलाये. मगर यह जरूरी नहीं कि राज्यपाल उस सिफारिश को स्वीकार ही कर लें.
आंध्र प्रदेश में ऐसी घटना हो चुकी है, जब वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश की और राज्यपाल ने उसे नहीं माना था. यह विशेषाधिकार राज्यपाल के पास है कि वह विधानसभा भंग करने संबंधी सिफारिश को स्वीकार करें या नामंजूर करें.
जदयू विधायक दल अगर नया नेता चुन कर राज्यपाल को चिट्ठी सौंपे, तो क्या होगा?
पहली बात तो यह कि अभी विधायक दल के नेता जीतन राम मांझी हैं. अगर विधायक दल नया नेता चुनता है, तो उसे मौजूदा नेता को हटाना पड़ेगा. इस आधार पर नये नेता का चुनाव कर पार्टी और सहयोगी दलों के विधायकों की संख्या का जिक्र करते हुए एक पत्र राज्यपाल को सौंपना होगा. राज्यपाल उस पत्र के आधार पर विधायकों की परेड करा सकते हैं अथवा विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कोई निश्चित अवधि दे सकते हैं.
अगर मुख्यमंत्री मांझी दूसरे दलों के सहयोग से बहुमत का दावा करें, तो क्या होगा?
पहले तो यह देखना होगा कि क्या विधायक दल टूट गया है. अगर उस दल के टूटे हिस्से और दूसरे दलों के सहयोग से मुख्यमंत्री अपनी बहुमत का दावा करते हैं, तो वही प्रक्रिया अपनायी जायेगी, जो विधायक दल का नेता निर्वाचित होने के बाद सरकार बनाने के लिए दावा पेश करने के वक्त होता है.
यह भी देखना होगा कि मांझी के साथ उनकी मूल पार्टी यानी जदयू के विभाजित विधायकों की तादाद दो-तिहाई है या नहीं. फर्ज करिए कि किसी पार्टी के विधायक दल में एक सौ सदस्य हैं, तो पार्टी में विभाजन के लिए 68 सदस्यों का होना जरूरी है. तभी उसे अलग ग्रुप में तौर पर मान्यता मिलेगी.
अगर जदयू विधानसभा भंग करने और मांझी को हटाने की चिट्ठी सौंपे, तो क्या होगा?
पहली बात तो यह है कि विधानसभा भंग करने की सिफारिश मुख्यमंत्री ही कर सकते हैं. दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि संबंधित दल का विधायक दल अपना नया नेता चुन कर खुद सरकार बनाने का दावा पेश करे. ऐसी स्थिति में राज्यपाल दोनों पक्षों से बातचीत कर बहुमत के संबंध में वस्तुस्थिति से परिचित हो सकते हैं और उस गणना के आधार पर फैसला कर सकते हैं.
क्या राज्यपाल अपने विवेक से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकते हैं?
ऐसा एकदम से नहीं हो सकता. ऐसी हालत में राज्यपाल के पास पहले दो-तीन विकल्पों पर विचार करना जरूरी होगा. पहला विकल्प होगा कि वह सत्ताधारी दल के नेता से बात करें. इस क्रम में वे प्रतिपक्ष और अन्य दलों के प्रतिनिधियों को बातचीत के लिए बुलाएं. उससे वह इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि बहुमत किसके पास है.
दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि राज्यपाल इस नतीजे पर पहुंच जाएं कि कोई भी दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है, तो वह विधानसभा को सस्पेंडेड एनीमेशन (विधानसभा को निलंबन में रखना) में रख सकते हैं. जैसा अभी हाल में दिल्ली में हुआ था. इसमें सभी प्रकार के विकल्प खुले रहते हैं. तीसरी स्थिति यह हो सकती है कि राज्यपाल इस नतीजे पर पहुंचे कि अब सरकार बनाने की सूरत नहीं निकल पा रही है, तो वह राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकते हैं.