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ये तो गरीबों के पेट पर सीधा हमला है

केंद्र सरकार ने शिक्षा, रक्षा, कृषि और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के बजट में कटौती करने के साथ ही मनरेगा में रोजगार के दिनों में भी कटौती का फैसला किया है. ये तो देश के गरीब मजदूरों के पेट पर सीधा हमला है. फरवरी 2006 में वामदलों के दबाव में सरकार ने देश के दो […]

केंद्र सरकार ने शिक्षा, रक्षा, कृषि और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के बजट में कटौती करने के साथ ही मनरेगा में रोजगार के दिनों में भी कटौती का फैसला किया है. ये तो देश के गरीब मजदूरों के पेट पर सीधा हमला है. फरवरी 2006 में वामदलों के दबाव में सरकार ने देश के दो सौ पिछड़े जिलों में मनरेगा को लागू किया था. यह गरीबों के लिए वरदान साबित हुआ था.
दरअसल, मनरेगा से एक बड़े गरीब वर्ग को न सिर्फ दो समय की रोटी का अधिकार मिला, बल्कि उनका जीवन स्तर भी बेहतर हुआ. यही कारण रहा कि पिछली सरकार ने इसे पूरे देश में लागू कर इसके बजट में बढ़ोतरी करने का फैसला किया था. ग्रामीण मजदूरों के जीवन स्तर सुधारने के लिए इस स्कीम को विश्वस्तरीय सराहना भी मिल चुकी है.
मनरेगा देश की नीतियों में एक बुनियादी बदलाव का प्रतीक है. इस कानून में स्पष्ट कहा गया है कि ग्रामीणों द्वारा काम मांगने पर एक पखवाड़े के अंदर काम देने की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की है. इसमें उन्हें बेरोजगारी भत्ता देने का भी प्रावधान है. मनरेगा पर देश में हुए कई अध्ययनों से यह साफ भी हुआ है कि इसका ग्रामीणों के जीवन स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. साथ ही, मजदूरों के पलायन में भी कमी आयी थी.
खास कर गरीब महिलाओं के स्वालंबन की दिशा में यह एक कारगर कदम था. अब सरकार ने खर्च में कटौती के नाम पर इसके पर कतरने शुरू कर दिये हैं. काम के दिनों में कटौती करके साल में सौ दिन के बजाय 34 दिन कर दिया गया है. इसका दायरा भी घटा कर दो सौ जिले कर दिये गये हैं. सरकार के इस कदम से खर्चे में कटौती तो होगी, लेकिन ग्रामीण मजदूरों की बेरोजगारी बढ़ेगी. यह सरकार का आत्मघाती फैसला हो सकता है.
गणोश सिटू, हजारीबाग

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