झांसा देने का मौका ही हम क्यों दें?

आये दिन समाचार पत्रों में हम यह पढ़ते हैं कि आज फलां जगह पर यौनाचार की घटना हो गयी, तो कल किसी ने फलां को शादी का झांसा देकर उसके साथ अनैतिक व्यवहार किया. बेशक, हमारे समाज में इस तरह की घटनाएं शर्मसार करनेवाली हैं और इसे दूर करने के उपाय किये जाने चाहिए, लेकिन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 10, 2015 5:42 AM
आये दिन समाचार पत्रों में हम यह पढ़ते हैं कि आज फलां जगह पर यौनाचार की घटना हो गयी, तो कल किसी ने फलां को शादी का झांसा देकर उसके साथ अनैतिक व्यवहार किया. बेशक, हमारे समाज में इस तरह की घटनाएं शर्मसार करनेवाली हैं और इसे दूर करने के उपाय किये जाने चाहिए, लेकिन इस बीच कई सवाल भी खड़े होते हैं.
हमारे समाज में घटित हो रही इस प्रकार की घटनाओं के दूसरे पहलू पर भी हमें विचार करना होगा. यदि कोई व्यक्ति किसी बालिग युवती को शादी देने का झांसा देकर उसके साथ अनैतिक और असामाजिक कार्य करता है, तो यह उसका अपराध है, लेकिन इसके दूसरे पहलू को हम गौण कर जाते हैं.
हमें यह समझ में नहीं आता है कि एक समझदार बालिग को कोई व्यक्ति भला झांसा कैसे दे सकता है? सबसे बड़ी बात यह कि सिर्फ शादी के झांसे में आकर किसी व्यक्ति को अपना सर्वस्व सौंप देना कहां तक उचित है? हम आज भले कितना ही आधुनिक समाज में क्यों न निवास कर रहे हों, लेकिन शीलता हर समाज की लड़कियों की असल पूंजी है.
हर देश और समाज में नारी के प्रति पुरुष की आसक्ति रहती ही है और प्रकृति का नियम भी है, लेकिन यह अगर आत्मीय प्रेम तक ही सीमित रहे, तो उचित होता. यहां तो आधुनिकता के नाम पर आत्मीय प्रेम का तो कहीं पता ही नहीं है.
इसका स्थान वासना ने ले लिया है और स्त्री-पुरुष आत्मीयता के नाम पर एक-दूसरे के साथ शारीरिक संबंध स्थापित कर लेते हैं. बाद में उसे झांसे का नाम देकर घटना के दूसरे पहलू को छिपाने का काम किया जाता है. आखिर हम यह क्यों नहीं सोचते कि हम पुरुषों को झांसा देने का मौका ही क्यों दें? जब हम उन्हें मौका देते हैं, तभी तो हमारे साथ होनेवाला अत्याचार बढ़ता है.
रेखा भारद्वाज, रांची

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