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आखिर सारा दोष स्त्रियों पर ही क्यों?

अक्सर लोगों को यह कहते हुए आपने सुना होगा कि स्त्री ही दुर्गा है और जननी भी. हमारे समाज में स्त्री विभिन्न प्रकार के अलंकारों से अलंकृत की जाती है. वहीं, स्त्रियों की दुश्मन भी स्त्री ही होती है. कुछ पुरुष ऐसे होते हैं, जो आरंभ से ही स्त्रियों को अपने शोषण का शिकार बनाते […]

अक्सर लोगों को यह कहते हुए आपने सुना होगा कि स्त्री ही दुर्गा है और जननी भी. हमारे समाज में स्त्री विभिन्न प्रकार के अलंकारों से अलंकृत की जाती है. वहीं, स्त्रियों की दुश्मन भी स्त्री ही होती है. कुछ पुरुष ऐसे होते हैं, जो आरंभ से ही स्त्रियों को अपने शोषण का शिकार बनाते आये हैं. आज देश-समाज शिक्षा, तकनीक और अन्य मामलों में तरक्की कर रहा है. इसके बावजूद देश में स्त्रियों की स्थिति दयनीय बनी है.
अक्सर मेरे मन में सवाल उठता है कि समाज में एक लड़की शादी किये बिना अपने पैरों पर खड़ा होती है, तो लोग उससे शादी न करने के कारणों को जानने के लिए सवालों की बौछार कर देते हैं. वहीं, यदि कोई लड़का शादी नहीं करता है, तो लोग उससे सवाल नहीं करते. शादी के बाद लड़की का तलाक हो जाता है, तो कोई लड़का पक्ष को दोष नहीं देता, बल्कि कहा यह जाता है कि गलती लड़की की ही होगी.
ससुराल में रहना नहीं आया होगा. हम बिना कुछ जाने उस लड़की के चरित्र पर टिप्पणी करना शुरू कर देते हैं. सबसे बड़ा दुख तो तब होता है, जब शादी के बाद लड़की विधवा हो जाती है, तो उसे ताना यह सुनना पड़ता है कि वही अपने पति को खा गयी, उसके लक्षण ही ठीक नहीं थे. इसके बाद यदि वह ससुराल में रहती है, तो उसे मुश्किल हो जाती है और मायके में जो दुर्गति होती है, उसे तो भगवान ही जानता है.
ऐसे मामले में कोई लड़का या उसके परिवार को दोष नहीं देता. शादी के बाद यदि कोई लड़की स्वर्ग सिधार जाती है, तो यह कह कर महिमामंडित किया जाता है कि वह तो सुहागन थी, सौभाग्यवती थी, इसलिए उसे उसके पुण्य का फल मिला है. क्या यह स्त्रियों पर अत्याचार करने के टोटके नहीं हैं. आखिर समाज की अनहोनियों का दारोमदार स्त्रियों पर ही क्यों?
शोभा कुमारी, रांची

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