अब बढ़ जायेगी केजरी की चुनौती

अश्विनी कुमार राजनीतिक विश्लेषक इस जीत के साथ केजरीवाल के समक्ष चुनौतियां भी काफी बढ़ गयी है. उन्हें अपने वादों को पूरा करने के साथ ही लोगों की बढ़ी अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा. सड़क की राजनीति के बजाय विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने पर काम करना होगा. दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम कई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 11, 2015 5:24 AM
अश्विनी कुमार
राजनीतिक विश्लेषक
इस जीत के साथ केजरीवाल के समक्ष चुनौतियां भी काफी बढ़ गयी है. उन्हें अपने वादों को पूरा करने के साथ ही लोगों की बढ़ी अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा. सड़क की राजनीति के बजाय विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने पर काम करना होगा.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम कई मायनों में ऐतिहासिक है. पहली बार दिल्ली विधानसभा के चुनावी इतिहास में किसी एक पार्टी को इतना बड़ा बहुमत मिला है कि विपक्ष ही नहीं बचा. आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीत कर एक बहुत ही प्रचंड बहुमत हासिल किया है.
इस जीत के पीछे कई कारण हैं. आम चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी ने अपनी गलतियों से सबक लेते हुए दिल्ली में खुद को और अपनी राजनीतिक सत्ता को स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत की. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव को गवर्नेस के मुद्दे पर लड़ा. भाजपा का मुद्दा भी यही था, लेकिन आप का गवर्नेस मॉडल भाजपा के मुकाबले लोगों को अधिक आकर्षक लगा. साथ ही केजरीवाल ने मोदी के तरीके से ही भाजपा को जवाब दिया.
नरेंद्र मोदी लोगों से संवाद करने में माहिर हैं. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने भी लोगों से सीधा संवाद स्थापित किया. आम चुनाव में भाजपा की जीत की वजह यह थी कि उसने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और सुशासन के लिए खुद को एक विकल्प के तौर पर स्थापित किया. केजरीवाल ने भी दिल्ली में यही किया. इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी अन्य दलों के मुकाबले आप ज्यादा सक्रिय रही.
इस प्रचंड बहुमत का साफ मतलब है कि आम आदमी पार्टी को क्लास (वर्ग) और मास (जनता) दोनों का समर्थन मिला. गरीब और अमीर, सभी तबके का समर्थन मिलने से ही आप 67 सीटें जीत पायी. अगर किसी एक वर्ग का समर्थन मिलता, तो पार्टी को इतनी बड़ी कामयाबी कभी नहीं मिल पाती.
आम आदमी पार्टी की जीत की एक बड़ी वजह वालंटियर्स आधारित पार्टी होना भी है. भाजपा एक कैडर आधारित पार्टी है.
ऐसी पार्टियों के कैडर एक मशीन की तरह काम करते हैं और इससे संरक्षण की राजनीति को बढ़ावा मिलता है. कैडर विचारधारा से प्रभावित होते हैं. संरक्षण की राजनीति में गरीबों के राशन कार्ड बनवाना, पेंशन दिलवाना जैसी सरकारी सुविधाएं शामिल हैं.
इससे ही भ्रष्टाचार बढ़ता है. परंपरागत राजनीतिक पार्टियां इसी आधार पर काम करती हैं. जबकि वालंटियर्स नीतियों के आधार पर काम करते हैं. इससे वे क्लास और मास को एक-साथ करने में सहायक होते हैं.
दिल्ली चुनाव में सभी वर्ग के लोग गवर्नेस के साथ ही सस्ती बिजली और पानी के लिए आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ गये.
यही नहीं, अरविंद केजरीवाल 49 दिनों की अपनी पिछली सरकार के दौरान की गयी गलतियों से सीख लेते हुए अपनी अराजकतावादी छवि को दूर करने में भी सफल रहे. 49 दिनों की सरकार के दौरान केजरीवाल ने काफी हद तक भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में सफलता पायी थी और लोगों को इसका तात्कालिक लाभ भी मिला था. इसी कारण दिल्ली के लोगों ने केजरीवाल की पूर्व की गलतियों को भूलते हुए उन्हें एक बार फिर मौका देने का निर्णय सुनाया है. इस जीत का निश्चित तौर पर राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर पड़ेगा.
अब दूसरे दलों को भी गवर्नेस पर फोकस करना होगा. जाति, धर्म और क्षेत्रीयता की राजनीति का दौर खत्म हो रहा है. बिहार और पश्चिम बंगाल में होनेवाले आगामी विधानसभा चुनावों पर इसका असर यह होगा कि भाजपा विरोधी पार्टियों में उत्साह आयेगा कि वे भाजपा को हरा सकते हैं. इस चुनाव से मोदी और अमित शाह का चुनाव न हारनेवाले शख्स का मिथक भी टूट गया है.
उम्मीद करनी चाहिए कि अब अरविंद केजरीवाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के रास्ते पर नहीं चलेंगे. वे विकास के साथ गवर्नेस को लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे. इस जीत के बाद अब आम आदमी पार्टी अपना पूरा ध्यान पंजाब में होनेवाले विधानसभा चुनाव पर लगायेगी. वहां पार्टी कैंसर और ड्रग्स के खिलाफ अभियान चला रही है और निश्चित तौर पर इसका लाभ उसे मिलेगा.
दिल्ली का चुनाव परिणाम मोदी सरकार के कामकाज पर जनमत संग्रह नहीं है. विधानसभा चुनाव में स्थानीयता के मुद्दे हावी रहते हैं. दिल्ली चुनाव में भाजपा की यह राजनीतिक नहीं, रणनीतिक हार है. केजरीवाल ने भाजपा को भाजपा के तरीके से मात दे दी है. भाजपा ने रणनीति बनाने में गलती की और उसका खामियाजा उसे उठाना पड़ा. दिल्ली विधानसभा में अब विपक्ष की भूमिका भी आम आदमी पार्टी को ही निभानी होगी.
लेकिन, इस जीत के साथ केजरीवाल के समक्ष चुनौतियां भी काफी बढ़ गयी हैं. उन्हें अपने वादों को पूरा करने के साथ ही लोगों की बढ़ी अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा. सड़क की राजनीति के बजाय विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने पर काम करना होगा.
(विनय तिवारी से बातचीत पर आधारित)

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