आपसी हित से दूर राष्ट्रीय हित
* संसद का मॉनसून सत्रहमारे राजनीतिक दल बाकी किसी मामले में एकजुट भले न नजर आयें, आपसी हितों के मामले में वे एक सुर में बोलते नजर आते हैं. संसद के मॉनसून सत्र की शुरुआत से ठीक पहले भारतीय राजनीति का यह विरोधाभासी चेहरा एक बार फिर हमारे सामने है. राजनीतिक दलों को आरटीआइ के […]
* संसद का मॉनसून सत्र
हमारे राजनीतिक दल बाकी किसी मामले में एकजुट भले न नजर आयें, आपसी हितों के मामले में वे एक सुर में बोलते नजर आते हैं. संसद के मॉनसून सत्र की शुरुआत से ठीक पहले भारतीय राजनीति का यह विरोधाभासी चेहरा एक बार फिर हमारे सामने है. राजनीतिक दलों को आरटीआइ के दायरे में लाने के केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले और अपराधियों को चुनावों और संसद से बाहर रखने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को प्रभावहीन करने के लिए सारे राजनीतिक दल एकजुट नजर आ रहे हैं.
मॉनसून सत्र से पहले लोकसभा अध्यक्ष द्वारा बुलायी गयी सर्वदलीय बैठक में सारे दलों में इस बात पर सहमति नजर आयी कि उन्हें मिल कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की काट निकालने की कोशिश करनी चाहिए. सूचना आयोग के आदेश का असर समाप्त करने के लिए पहले ही मॉनसून सत्र में सूचना का अधिकार कानून में संशोधन विधेयक लाने की तैयारी की जा चुकी है. लेकिन यह एकजुटता मॉनसून सत्र में इसी तरह बनी रहेगी, इसकी कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती.
इस सत्र में सरकार का मुख्य जोर खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण जैसे ‘गेम चेंजर’ विधेयकों को पारित कराने पर होने की उम्मीद है. ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ के दाग को मिटाने के लिए सरकार लंबे समय से अटके पड़े दूसरे महत्वपूर्ण विधेयकों को भी गंभीरता से आगे बढ़ाने की कोशिश करती दिख सकती है. इसके लिए सरकार को विपक्ष से तो तालमेल बिठाना ही होगा, यूपीए में अंदर और बाहर से सहयोग दे रहे दलों को भी जोड़े रखना होगा.
सत्र से पहले राजनीतिक दलों की मोर्चाबंदी पर ध्यान दें, तो इसकी गुंजाइश कम ही नजर आती है. अगर सरकार अहम विधेयकों के सहारे अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने की मंशा रखती है, तो विपक्षी दल विभिन्न मसलों पर सरकार को घेरने की तैयारी कर रहा है. सत्ता पक्ष और विपक्ष के अपने–अपने एजेंडे के कारण इस सत्र के भी हंगामेदार होने की आशंका व्यक्त की जा रही है.
इस हंगामे के चलते आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण इंश्योरेंस संशोधन और पेंशन संबंधी बिल, डायरेक्ट टैक्स कोड बिल, कंपनीज बिल, रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) बिल के पारित होने की राह कठिन हो सकती है. कुछ ऐसा ही हश्र न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक, लोकपाल और ह्विसिल ब्लोवर संरक्षण विधेयक का भी हो सकता है. राजनीतिक दलों के आपसी हित और व्यापक राष्ट्रीय हितों के बीच की यह दूरी हमारे समय की स्वार्थी राजनीति के चाल, चरित्र और चेहरे को उजागर करते हुए हमसे रूबरू हो रही है.