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लोकतंत्र में व्यक्ति पूजा वजिर्त
महर्षि व्यास ने अनुभवों के आधार पर कहा था कि यदि समाज में सत्यात्मक न्याय व्यवस्था और न्यायपरायण शासन की रीढ़ टूट जाती है, तो राष्ट्र में अराजकता व्याप्त हो जाती है. मत्स्य न्याय के उत्कर्ष का ही परिणाम राजधर्म की आवश्यकता थी. हम आज फिर उसी पुरातन राजधर्मवादी व्यवस्था के दौर में पहुंच गये […]
महर्षि व्यास ने अनुभवों के आधार पर कहा था कि यदि समाज में सत्यात्मक न्याय व्यवस्था और न्यायपरायण शासन की रीढ़ टूट जाती है, तो राष्ट्र में अराजकता व्याप्त हो जाती है. मत्स्य न्याय के उत्कर्ष का ही परिणाम राजधर्म की आवश्यकता थी. हम आज फिर उसी पुरातन राजधर्मवादी व्यवस्था के दौर में पहुंच गये हैं. इस व्यवस्था में राजा की शक्ति प्रजाओं में बसी है, जो पहले की तरह सच्चई पर यकीन नहीं करते.
प्रजातंत्र के चार स्तंभों में कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता जिस दिशा में अग्रसर हैं, उससे यकीन नहीं होता कि हमारा भविष्य उज्ज्वल है. इन चार स्तंभों में से एक भी स्तंभ कमजोर हो जाता है, तो फिर मत्स्य न्याय व्यवस्था को आने से कौन रोक सकता है? आज की तारीख में देश में तीन करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित हैं. लंबित मुकदमों के हिसाब से अदालतों में माननीय न्यायधीशों की नियुक्ति नहीं हो रही है.
विधि आयोग की 120वीं रिपोर्ट में 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायधीशों की नियुक्ति की जरूरत बतायी गयी है, जबकि अभी सिर्फ 14 न्यायधीश की कार्यरत हैं. वहीं निचली अदालतों में भी स्थिति कम भयावह नहीं है. संसद की ओर से पारित ग्राम न्यायालय की व्यवस्था पूरे देश में लागू नहीं की जा सकी है.
यह अभी तक राजस्थान और मध्य प्रदेश तक ही सीमित है. पूरे देश का राजनीतिक और सत्तात्मक माहौल सिर्फ एक ही व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूम रहा है. लोकतंत्र से लोग गायब हो गये हैं और व्यक्ति की पूजा अहम हो गयी है. आज देश का सारा तंत्र सिर्फ और सिर्फ एक व्यक्ति के हाथों संचालित किया जा रहा है, जो लोकतांत्रिक देश के लिए सबसे बड़ा घातक है. व्यक्ति विशेष की पूजा ही निरंकुशता को जन्म देती है.
प्रदीप कुमार सिंह, बड़कीपोना, रामगढ़
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