रंजन राजन
प्रभात खबर, दिल्ली
दिल्ली मंगलवार को एक राजनीतिक तूफान की गवाह बनी. अपने ‘नसीब’ पर इतरानेवाले इसमें हवा हो गये और एक आम ‘मफलरमैन’ को दिल्लीवालों ने सिर माथे पर बिठा लिया. आम आदमी पार्टी ने अपना चुनाव अभियान ‘पांच साल केजरीवाल’ नारे से शुरू किया था, जिसका आखिरी जुमला था- ‘जनता का सीएम’. इन जुमलों को दिल्लीवालों ने दिल से लगा लिया. इस तूफानी दिन के ढलने के साथ आयी रात काली नहीं थी, उसमें उम्मीदों का उजाला साफ दिख रहा था.
रात में मैं दफ्तर से लौट रहा था, ऑटो से. बगल की सीट पर एक पुलिसवाला था. अगले पड़ाव पर उसने ऑटो रुकवाया और उतर गया. ऑटोवाला बढ़ने को था, पर पुलिसवाले ने कहा- ‘‘पैसे तो ले लो.’’ सहमे ऑटोवाले ने विनम्रता से कहा- ‘‘रहने दीजिए सर.’’ लेकिन पुलिसवाले ने दस का नोट बढ़ाते हुए कहा- ‘‘चुपचाप किराया लो.’’ ऑटोवाले ने नोट ले लिया और आगे बढ़ गया. बगल में बैठा पैसेंजर उस पुलिसवाले को देर तक घूरता रहा.
आखिर चुप्पी ऑटोवाले ने ही तोड़ी- ‘‘क्या घूर रहे हो भाई साहब, कभी पुलिसवाले को पैसे देते नहीं देखा है? अब तो इसकी आदत डाल ही लो.’’ दिल्ली में ‘जनता का सीएम’ बन गया है. मुफ्त की सैर और उगाही करनेवालों की अब खैर नहीं. संकेत साफ हैं. ‘जनता का सीएम’ शपथ तो 14 फरवरी को लेगा, लेकिन उम्मीदों पर खरा उतरने की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है.
दिल्ली की सड़कों पर जुर्माना वसूलने की ऑटोमेटिक मशीनें लिये ट्रैफिक पुलिसवालों का दस्ता जगह-जगह तैनात मिलता है. बगल से लंबी कारें गुजरती रहती हैं, पुलिसवाले हाथ देने की हिम्मत नहीं करते, पता नहीं किसमें किस मंत्री-अफसर का ‘भतीजा’ बैठा हो.
बाइक और ऑटोवाले धड़ल्ले से रोके जाते हैं, क्योंकि ‘बड़े बाप’ और उनके बेटे इससे नहीं चलते. तो सवाल है कि क्या अब दिल्ली में बाइक और ऑटोवाले भी उतने ही निश्चिंत होकर चलेंगे, जितने कि लंबी गाड़ियों में चलनेवाले? सवाल कई और भी हैं.
सबसे बड़ा तो यह कि शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने 15 वर्षो तक दिल्ली का जो विकास किया, जिसमें दिल्ली के नक्शे पर ढेर सारी नयी लकीरें खिंच गयीं- चौड़ी सड़कों, फ्लाइओवरों और मेट्रो लाइनों के रूप में, नरेंद्र मोदी ने नौ माह पहले ‘स्मार्ट सिटी’ के रूप में विकास का जो वादा किया था, जिसमें दिल्लीवालों ने लोकसभा की सातों सीटें उन्हें सौंप दी थी, क्या केजरीवाल की ‘वर्ल्ड क्लास दिल्ली’ उससे अलग होगी? और क्या इस ‘वर्ल्ड क्लास दिल्ली’ में रहनेवाले आम लोगों का ‘नसीब’ भी बदलेगा?
यह सवाल इसलिए जरूरी है, क्योंकि मोदीजी के ‘नसीब’ से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम भले धड़ाम हो गये हों, जनता के ‘नसीब’ में इसका कितना हिस्सा आया, यह किसी से छिपा नहीं है.