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कश्मीर घाटी में अमन-चैन की राह

कश्मीर घाटी में हाल के वर्षो में हिंसा में कमी आयी है. पर, बीते कुछ दिनों के घटनाक्रम वहां अशांति का एक नया दौर शुरू होने के खतरे की ओर इशारा कर रहे हैं. संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू की पहली बरसी पर सोमवार को घाटी फिर से उग्र प्रदर्शन और पथराव का […]

कश्मीर घाटी में हाल के वर्षो में हिंसा में कमी आयी है. पर, बीते कुछ दिनों के घटनाक्रम वहां अशांति का एक नया दौर शुरू होने के खतरे की ओर इशारा कर रहे हैं. संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू की पहली बरसी पर सोमवार को घाटी फिर से उग्र प्रदर्शन और पथराव का गवाह बनी.
प्रदर्शनकारी उसे फांसी देने के तरीके के खिलाफ रोष जता रहे थे. उग्र भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस ने गोलीबारी की. इसमें एक युवक की मौत के बाद से घाटी में बंद और प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया है. यह बहस का विषय है कि अफजल गुरू को फांसी देने के तरीके में हुई चूक को सुधारा नहीं जा सकता, तो इसकी भरपाई कैसे की जाये. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अपने ट्वीट के जरिये फांसी को गलत ठहरा कर इस बहस को हवा भी दे दी है. लेकिन, यह स्पष्ट है कि घाटी की बड़ी आबादी को राज्यपाल के बहाने केंद्र के शासन में भरोसा नहीं है.
आज आम कश्मीरियों में असंतोष भड़काने के लिए अलगाववादी फिर से सक्रिय हो गये हैं, तो इसका बड़ा कारण यह भी है कि विधानसभा चुनाव से लोगों की उम्मीदें पूरी नहीं हो सकी है. करीब दो महीने पहले जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्वक संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में लोगों ने बढ़-चढ़ कर मतदान किया था. उन्हें उम्मीद थी कि नयी सरकार अच्छे प्रशासन के जरिये उनकी बेहतरी करेगी. विनाशकारी बाढ़ के दौरान राहत कार्यो के प्रति केंद्र की तत्परता और चुनाव के दौरान विकास के वादों से भी जनता में यह उम्मीद जगी थी. परंतु, खंडित जनादेश के बाद बड़े दलों में सरकार बनाने को लेकर सहमति नहीं बन पायी और वहां फिर से राज्यपाल शासन है.
ऐसे में असंतोष भड़का कर अलगाववादी अपने निहित स्वार्थो को साधने में जुट गये हैं. ऐसे में बल-प्रयोग के द्वारा कश्मीरियों के गुस्से को न तो शांत किया जा सकता है, न ही दबाया जा सकता है. जनता द्वारा चुनी गयी सरकार रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों को प्राथमिकता बना कर ही कश्मीरियों में बेहतरी का भरोसा जगा सकती है, अमन-चैन कायम रख सकती है.
इसलिए राज्य में सरकार गठन की दिशा में गंभीर पहल तुरंत जरूरी है, जिसके लिए केंद्र तथा राज्यपाल को सकारात्मक एवं सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए. इसमें हो रही देरी घाटी को फिर से अशांत कर सकती है.

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