मानव जीवन का समस्त क्रियाक्षेत्र बुद्धि पर आधारित रहा है. शारीरिक बल और भौतिक वैभव के बाद तीसरी महत्वपूर्ण आवश्यकता बौद्धिक कुशलता मानी गयी है, जिसने हमारा जीवन आसान बनाया है. लेकिन इन तीनों विभूतियों के होते हुए भी एक खालीपन का एहसास होता है.
वर्तमान विकास में चारों ओर तर्क-वितर्को का जाल, धूर्तता, मनोरोग, कलह-क्लेश ही दिखायी पड़ते हैं. इसका कारण यह है कि जिंदगी की सभी उलझनों को बौद्धिक क्षमता के द्वारा ही सुलझाने का प्रयत्न किया गया है. बौद्धिक प्रखरता का जीवन की सफलता में केवल 20 प्रतिशत योगदान है. बाकी 80 प्रतिशत चौथी विभूति भावनात्मक प्रतिभा से ही संभव है.
आधुनिक अर्थप्रधान युग में धन-वैभव होने के बावजूद शांति, प्रेम, सहानुभूति, संवेदना कहां है? नित्य नये तकनीकी आविष्कारों के बाद भी इतनी अराजकता, कटुता का वातावरण किसने पैदा किया? इसके पीछे बुद्धि का निरंकुश उपयोग ही दिखता है. जबकि भावपूर्ण बौद्धिक ऊर्जा एक संतुलित व्यक्तित्व का निर्माण करती है. अत: इसे नजरअंदाज न किया जाये.
।। रितेश कुमार दुबे ।।
(कतरास)