अशांति की ओर बांग्लादेश
।। डॉ गौरीशंकर राजहंस ।। (पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत) बांग्लादेश की ताजा घटनाओं से लग रहा है कि वह अराजकता की ओर बढ़ रहा है. पिछले दिनों ढाका के हाइकोर्ट ने वहां की कट्टरपंथी पार्टी ‘जमात–ए–इसलामी’ को अवैध घोषित कर उसके चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी है. हाइकोर्ट ने कहा है कि इस […]
।। डॉ गौरीशंकर राजहंस ।।
(पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत)
बांग्लादेश की ताजा घटनाओं से लग रहा है कि वह अराजकता की ओर बढ़ रहा है. पिछले दिनों ढाका के हाइकोर्ट ने वहां की कट्टरपंथी पार्टी ‘जमात–ए–इसलामी’ को अवैध घोषित कर उसके चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी है. हाइकोर्ट ने कहा है कि इस दल का रजिस्ट्रेशन संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के खिलाफ है. इसका मतलब यह हुआ कि अगले वर्ष के शुरू में जब बांग्लादेश में आम चुनाव होगा, तब यह पार्टी उसमें भाग नहीं ले पायेगी.
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ‘जमात–ए–इसलामी’ सबसे बड़ी इसलामिक पार्टी थी. उन दिनों इसने इस बात का घोर विरोध किया था कि बांग्लादेश को पाकिस्तान से स्वतंत्रता दिलायी जाये. इसने 1971 में पाकिस्तानी सेना के साथ मिल कर बंगाली राष्ट्रवादियों के खिलाफ सशस्त्र अभियान चलाया था. इसके बहुत से कार्यकर्ता पाकिस्तानी सेना में शामिल थे. 1971 में बांग्लादेश आजाद हुआ, तब नयी सरकार ने इस पार्टी की राजनीतिक गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी थी. इससे इसके ज्यादातर बड़े नेता भाग कर पाकिस्तान चले गये थे और कुछ भारत में छिप गये थे.
1975 में जब मेजर जनरल जिया उर रहमान राष्ट्रपति हुए, तब उन्होंने इस कट्टरपंथी पार्टी पर लगे प्रतिबंधों को हटा दिया. जमात–ए–इसलामी के साथ बेगम खालिदा जिया के नेतृत्ववाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी का शुरू से ही गंठबंधन था. खालिदा जिया पीएम बनीं, तो उन्होंने इसे सत्ता में हिस्सेदारी दी और इसके कई नेता मंत्री भी बने.
पूरे बांग्लादेश में लोगों को यह पता था कि जमात–ए–इसलामी एक राष्ट्रविरोधी पार्टी है, उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्रता संग्राम का विरोध किया था. इसलिए शेख हसीना जब पहली बार प्रधानमंत्री बनी, तब उन्होंने घोषणा की थी कि वह 1971 के युद्ध अपराधियों और स्वतंत्रता संग्राम विरोधियों को सजा अवश्य दिलायेगी. पर अपने पहले कार्यकाल में वह इस योजना को मूर्तरूप नहीं दे सकी.
दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने पर 25 मार्च, 2010 को उन्होंने इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल की स्थापना की और प्रयास किया कि जिन लोगों ने 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम का विरोध किया था और हजारों निर्दोष स्वतंत्रता सेनानियों की हत्या की थी, उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाये.
ट्रिब्यूनल ने गत 21 जनवरी को अपना पहला निर्णय सुनाया, जिसमें कुख्यात युद्ध अपराधी अबुल कलाम आजाद को फांसी की सजा सुनायी गयी. आजाद जमात–ए–इसलामी के प्रमुख नेता थे और उन्हें बेगम खालिदा जिया का समर्थन प्राप्त था. आजाद को सजा सुनाये जाने के बाद एक और कुख्यात युद्ध अपराधी दिलावर हुसैन साहिदी, जो जमात–ए–इसलामी के उपाध्यक्ष हैं, को इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल ने फांसी की सजा सुना दी. इसके तुरंत बाद पूरे बांग्लादेश में इसलामी कट्टरपंथियों ने शेख हसीना की सरकार के खिलाफ हिंसा शुरू कर दी. बेगम जिया ने यह आरोप लगाया कि इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल की आड़ में शेख हसीना उनके समर्थकों को झूठे आरोपों में फांसी और उम्रकैद की सजा दिला रही हैं. शेख हसीना ने इस आरोप का विरोध किया.
स्मरणीय है कि शेख हसीना ने बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्षता की नीति अपनायी है और बांग्लादेश की अधिकतर जनता शेख हसीना के धर्मनिरपेक्ष विचारों का समर्थन करती है. पर कट्टरपंथी ‘जमात–ए–इसलामी’ के भी देश में लाखों समर्थक हैं. अभी हाल में जब इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल ने पार्टी के प्रमुख नेता 91 वर्षीय गुलाम आजम को युद्ध अपराधी साबित करते हुए मृत्युदंड दिया, तो देश में कट्टरपंथी लामबंद हो गये और हसीना सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे.
अब जब जमात–ए–इसलामी को अवैध घोषित कर दिया गया है, बांग्लादेश में इसका जगह–जगह विरोध हो रहा है. इसके समर्थक सड़कों पर तोड़फोड़ कर रहे हैं. सुरक्षाकर्मी उपद्रवकारियों को तितर–बितर करने के लिए के लिए बल प्रयोग कर रहे हैं. 12 और 13 अगस्त को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया है. डर है कि इस दौरान देश में व्यापक रूप से हिंसा फैल सकती है. हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील भी की गयी है, पर बांग्लादेश में कोर्ट वही निर्णय देता है जो सरकार चाहती है.
बांग्लादेश के कट्टरपंथियों को पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त है. यदि खालिदा की पार्टी को अनुमान हो जाये कि आगामी चुनाव में उसके समर्थकों की जीत अनिश्चित है, तो वे पूरे बांग्लादेश में अराजकता फैलने दे सकती हैं. यदि बांग्लादेश में गृहयुद्ध फैला तो ढेर सारे शरणार्थी पश्चिम बंगाल और सीमाई राज्यों में आ सकते हैं. बांग्लादेश की घटनाओं के प्रति भारत को चौकस और सतर्क रहना होगा.