एक नये तरह की राजनीति के संकेत
दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में पहले भाषण में अरविंद केजरीवाल ने अपने चिर-परिचित सहज अंदाज व साधारण शब्दों में अपनी सरकार की कार्यशैली और आम आदमी पार्टी की भावी राजनीति एवं रणनीति का संकेत दिया है. उन्होंने दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के मूल वादे को तो दोहराया ही, दिल्ली समेत पूरे देश में […]
दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में पहले भाषण में अरविंद केजरीवाल ने अपने चिर-परिचित सहज अंदाज व साधारण शब्दों में अपनी सरकार की कार्यशैली और आम आदमी पार्टी की भावी राजनीति एवं रणनीति का संकेत दिया है. उन्होंने दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के मूल वादे को तो दोहराया ही, दिल्ली समेत पूरे देश में बढ़ती सांप्रदायिकता पर चिंता व्यक्त जताते हुए सद्भाव और सहिष्णुता की राजनीति पर भी बल दिया.
सांप्रदायिक घटनाओं और भड़काऊ बयानों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी के सामने दिल्ली के मुख्यमंत्री की यह बेबाकी एक राजनीतिक चुनौती मानी जा रही है. यह भाषण चुनाव के दौरान मोदी और केजरीवाल द्वारा की गयी एक-दूसरे की आलोचनाओं का दूसरा संस्करण है, जहां केजरीवाल अपनी कथनी और करनी से मोदी का विपरीत ध्रुव रचने का प्रयास करते दिख रहे हैं. अपने भाषण में उन्होंने अहंकार न करने, नीयत साफ रखने, विरोधियों को भी पूरा सम्मान देने, शासन को जनोन्मुखी बनाने तथा जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने जैसी बातें कह कर एक अलग राजनीतिक शैली स्थापित करने के इरादे की अभिव्यक्ति की है. इसका प्रारंभिक और महत्वपूर्ण उदाहरण मंत्रियों के विभागों का बंटवारा भी है. मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने पास एक भी विभाग नहीं रखा है.
वे मंत्रियों व विधायकों के बीच समन्वयक की भूमिका निभायेंगे. साथ ही दिल्ली की जनता से सीधे संपर्क में रहेंगे. देश की राजनीति में ऐसा पहली बार हो रहा है. यह कार्य-पद्धति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्य-प्रणाली से बिल्कुल अलग दिखती है, जिनके जिम्मे अनेक मंत्रलय हैं और ऐसी खबरें भी आती रही हैं कि वे अपने कार्यालय के जरिये मंत्रियों के कामकाज में सीधे दखल देते रहते हैं. ऐसे में जहां मोदी सरकार की कार्यप्रणाली शक्तियों के केंद्रीकरण का नमूना पेश करती है, वहीं केजरीवाल सरकार शासन में एक अभिनव प्रयोग का प्रारंभ करते प्रतीत हो रहे हैं.
भले ही केजरीवाल ने बार-बार कहा है कि दिल्ली उनकी प्राथमिकता है, पर उनके ये तेवर राष्ट्रीय राजनीति में जगह तलाशने के इरादे के सूचक हैं. फर्क बस इतना है कि आम आदमी पार्टी पिछले साल की तरह अब किसी जल्दीबाजी में नहीं है. जाहिर है, राजनीति के इस नये अध्याय का भविष्य देखना दिलचस्प होगा.