ममता बनर्जी के विचित्र पैंतरे
एमजे अकबर प्रवक्ता, भाजपा तृणमूल को भले अभी चुनावी नुकसान नहीं दिख रहा हो, पर राज्य की राजनीति में उभरती नयी ताकतें उसे जल्दी ही हराने की स्थिति में होंगी. और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस बात को बेहतर समझती हैं. कोलकाता में इस सप्ताह बिताये दो बड़े ही खुशनुमा दिनों के दौरान अखबारों की सुर्खियां […]
एमजे अकबर
प्रवक्ता, भाजपा
तृणमूल को भले अभी चुनावी नुकसान नहीं दिख रहा हो, पर राज्य की राजनीति में उभरती नयी ताकतें उसे जल्दी ही हराने की स्थिति में होंगी. और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस बात को बेहतर समझती हैं.
कोलकाता में इस सप्ताह बिताये दो बड़े ही खुशनुमा दिनों के दौरान अखबारों की सुर्खियां मुङो बड़ी अजीब लगीं. वे टैक्सी के किरायों की चर्चा से भरी पड़ी थीं. हर राजनेता कभी-कभी आम लोगों की मनोदशा को भांप लेता है, तो कभी-कभी उलटे-पुलटे निर्णय लेता है, परंतु कोई भी अपनी हद से बाहर जाकर शत्रुता से लगाव बनाने के लिए उद्यत नहीं होता. बंगाल की चिर-लड़ाकू मुख्यमंत्री एक धुन में बड़े उत्साह के साथ लोगों की नाराजगी और लगातार कम होते शहरी समर्थन को गंवा रही हैं. उन्होंने टैक्सी ड्राइवरों के एक झुंड को नागरिकों के हितों की कीमत पर तुष्ट किया है.
पिछले वर्ष अप्रैल में ममता बनर्जी ने किसी यात्री को ले जाने से मना करनेवाले कोलकाता के टैक्सी ड्राइवरों पर तीन हजार रुपये का अर्थदंड लगाने का निर्णय लिया था, ताकि उनके मनमाने रवैये पर नियंत्रण किया जा सके. बहुत से टैक्सी ड्राइवर मीटर से चलने के बजाय अधिक किराये की मांग करते थे और मनमाना किराया न मिलने की स्थिति में यात्री को बिना बैठाये चले जाते थे. जब वे किसी बीमार को देखते थे या रेलवे स्टेशन या हवाई अड्डे की ओर जानेवाले यात्री को देखते थे, तो दोगुना किराया मांगने से भी गुरेज नहीं करते थे.
पिछले बुधवार को मुख्यमंत्री ने अर्थदंड में कमी करते हुए उसे महज सौ रुपये कर दिया. उन्होंने टैक्सी ड्राइवरों की ‘अंतरात्मा’ का आह्वान करते हुए उनसे निवेदन किया है कि वे ‘लोगों की मजबूरियों के बारे में सोचें’. शायद यह पहली बार हुआ है कि किसी ने ‘अंतरात्मा’ और ‘कोलकाता के टैक्सी ड्राइवर’ का प्रयोग एक ही वाक्य में किया है.
द टाइम्स ऑफ इंडिया ने शानदार खोजी पत्रकारिता का नमूना दिखाते हुए शुक्रवार को, जब सौ रुपये का दंड चुटकुला बन गया, बताया कि एक घंटे के बेतरतीब सर्वेक्षण के दौरान 53 में से 28 टैक्सियां रुकी ही नहीं (शायद उन्हें दूर से ही शैतान पत्रकारों की गंध आ गयी होगी) और 13 ड्राइवरों ने दोगुने किराये की मांग की. इन टैक्सियों में से कईयों पर ‘इनकार नहीं’ का नारा लिखा हुआ था. एक ड्राइवर ने अखबार को यह भी बताया कि ममता बनर्जी के निर्णय में उसकी बड़ी भूमिका है. मुख्यमंत्री ने पहले ही उसे सर पर चढ़ा लिया था.
आखिर क्यों ये टैक्सीवाले भयादोहन करने में सफल हो जाते हैं, जबकि अब तेल की कीमतों में गिरावट के बाद उनके किराया बढ़ाने की चिर-परिचित मांग भी निर्थक हो गयी है? क्यों ममता बनर्जी ने उन्हें तुष्ट किया और कोलकाता में नये मेयर के चुनाव से कुछ सप्ताह पहले मतदाताओं को नाराज करने का फैसला क्यों किया? जब तक इनके तार्किक कारण नहीं बताये जायेंगे, तब तक आप सबसे बुरे कारण पर भरोसा के लिए नागरिकों को दोषी नहीं ठहरा सकते.
बंगाल की सरकार भ्रष्टाचार की दरुगध की चपेट में है, और यह लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इसके केंद्र में सारधा घोटाला है. जांच से यह पुष्ट हुआ है कि ममता बनर्जी की पार्टी ने कर्ज देनेवाले सारधा नाम के महाजन से खूब धन लिया था. भ्रष्टाचार शासन को खोखला कर देता है, राजनीतिक संस्थाओं में गिरावट का कारण बनता है और अवश्यंभावी रूप से नेता की विश्वसनीयता को भी नष्ट कर देता है. पुलिस के पास सबूत हैं कि सारधा का धन तृणमूल कांग्रेस के शीर्षस्थ नेताओं तक सीधे या बिचौलिये व्यापारियों के जरिये पहुंचा. एक ऐसे ही व्यापारी को राज्यसभा में जगह देकर उसकी सेवाओं का सम्मान किया गया, जिसने अब संसद, पार्टी और राजनीति से त्यागपत्र दे दिया है.
शायद यह व्यक्ति सड़े हुए विकल्पों में सबसे अच्छा था. लेकिन बदनामी से इस व्यक्ति के निकल जाने की बात ममता बनर्जी और उनके निकट सहयोगी मुकुल रॉय के बीच बढ़ती खाई की तुलना में तुच्छ है. सीबीआइ ने रॉय से पूछताछ की है और वे भयभीत लग रहे हैं. उन्होंने अपने नेता से किनारा कर लिया है, तथा ऐसा सुनने में आ रहा है कि पार्टी में विभाजन की संभावना है. इस बात से तृणमूल पार्टी के गिरते आत्मविश्वास को झटका लग रहा है.
तृणमूल को भले अभी चुनावी नुकसान नहीं दिख रहा हो, पर राज्य की राजनीति में उभरती नयी ताकतें उसे जल्दी ही हराने की स्थिति में होंगी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस बात को बेहतर समझती हैं कि उन्हें वाम मोर्चे को हटाने में समय तो लगा, पर एक बार जो वाम मोर्चा ढहना शुरू हुआ, तो उसका एक ईंट भी नहीं बच सका.
कोलकाता शिक्षा और पठन-पाठन तथा अच्छे बयानों को पसंद करता है. ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल, जिन्हें यह शहर उनके गुणों के कारण पसंद भी करता है और बंगाल के अकाल के समय की भूमिका के कारण नापसंद भी, ने उच्च सैनिक अधिकारी बर्नार्ड मॉन्टगोमरी के बारे में कहा था, ‘हार में अपराजेय, विजय में असहनीय’. ठीक यही बात आज कोलकाता ममता बनर्जी के बारे में सोच रहा हैं.