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नियुक्तियों का खुलासा कीजिए

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री संस्था के प्रमुख की मिली-भगत से ही भ्रष्ट अधिकारी नियुक्त होते हैं. नियुक्ति की प्रक्रिया इतना पारदर्शी बना देनी चाहिए कि जनता पूछ सके कि अमुक व्यक्ति को नियुक्त क्यों किया गया? तब प्रमुख पर भी जांच आयेगी और भ्रष्टाचार में कुछ कमी आ सकती है. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली […]

डॉ भरत झुनझुनवाला

अर्थशास्त्री

संस्था के प्रमुख की मिली-भगत से ही भ्रष्ट अधिकारी नियुक्त होते हैं. नियुक्ति की प्रक्रिया इतना पारदर्शी बना देनी चाहिए कि जनता पूछ सके कि अमुक व्यक्ति को नियुक्त क्यों किया गया? तब प्रमुख पर भी जांच आयेगी और भ्रष्टाचार में कुछ कमी आ सकती है.

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की जनता को साफ सरकार देने का वायदा किया है, जिसके लिए बधाई. भ्रष्टाचार के दो स्तर होते हैं. ऊंचे स्तर पर नेताओं का भ्रष्टाचार होता है. इसकी छाया में अधिकारी भ्रष्ट हो जाते हैं. मान लिया जाये कि ‘आप’ के नेता ईमानदार होंगे, तो भी विशालकाय सरकारी तंत्र से अधिकारियों के भ्रष्टाचार को दूर करना कठिन चुनौती है.

विशेष सरकारी कर्मियों की निष्ठा का सवाल नहीं है. निश्चित रूप से कई ईमानदार बने रहना चाहते हैं. परंतु भ्रष्टाचार की चेन में एक कड़ी भी टूट जाये, तो संपूर्ण तंत्र नीचे गिर जाता है. इसलिए सिस्टम से ईमानदार अधिकारियों को किनारे कर दिया जाता है, जैसे इन्हें लाइब्रेरी का इंचार्ज बना दिया जाता है. समाजशास्त्री वेबर ने कहा कि सरकारी नौकरशाही में व्यक्तिगत रूप से निष्ठावान कर्मचारी सामूहिक रूप से विपरीत कर्म करते हैं.

जरूरत ऐसी व्यवस्था बनाने की है, जिसमें मुख्यमंत्री के लिए भी भ्रष्ट व्यक्ति की नियुक्ति करना कठिन हो जाये. क्योंकि सरकारी महकमा नियुक्ति संबंधी सूचना का खुलासा करने से कतराता है. मेरे एक मित्र ने उत्तराखंड की नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी में नियुक्तियों के विषय में सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत कुछ सूचनाएं मांगी थीं. अधिकारियों ने सूचनाओं को देने से इनकार कर दिया. सेंट्रल इन्फॉरमेशन कमीशन ने भी सूचना देने से इनकार कर दिया. अब यह मामला हाइकोर्ट में है. इस वृत्तांत का महत्व इस बात में है कि नियुक्ति संबंधी सूचना का खुलासा करने से अधिकारी बचते हैं, चूंकि यहीं से भ्रष्टाचार की जड़े बनती हैं. अत: भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने के लिए नियुक्ति संबंधी सभी दस्तावेजों को वेबसाइट पर डालने का नियम बनाना चाहिए. तब ईमानदार व्यक्ति उपलब्ध सूचना के आधार पर शोर मचायेंगे और नेताओं की बदनामी होगी.

हमारे पर्यावरण कानून में जन सुनवाई की व्यवस्था है. किसी योजना को पर्यावरण स्वीकृति देने के पहले जनता के विचार को जाना जाता है. ऐसी ही व्यवस्था शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति एवं पदोन्नति पर लागू की जा सकती है. आइएएस अधिकारी को सलेक्शन ग्रेड देने से पहले, अथवा नोएडा अथॉरिटी के प्रमुख की नियुक्ति के पहले अथवा हाइकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज की नियुक्ति करने के पहले उम्मीदवार के विषय में जनता से पूछना चाहिए. इस अवसर का लाभ उठा कर पीड़ित लोग आगे आयेंगे. सरकारी विभाग से संबंधित उपभोक्ताओं से भी अधिकारी के बारे में पूछा जा सकता है. यदि बिजली विभाग के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर की पदोन्नति के पूर्व 1,000 उपभोक्ताओं से उनके कार्य का मूल्यांकन कराया जाये, तो उनकी ईमानदारी तय की जा सकती है.

केंद्रीय सेवाओं की नियमावली में व्यवस्था है कि अधिकारीगण हर वर्ष अपनी संपत्ति का ब्योरा बंद लिफाफे में जमा कराते हैं. उनके विरुद्ध भ्रष्टाचार का आरोप लगने पर इन लिफाफों को खोल कर जांच की जाती है कि अधिकारी ने संपत्ति को घोषित किया था या नहीं. इन ब्योरों को सीलबंद रखने के पीछे कर्मी की निजता का सम्मान है. इसमें बदलाव करते हुए सरकारी कर्मियों की निजता को निरस्त कर देनी चाहिए. इनके वार्षिक ब्योरों को वेबसाइट पर डाल कर सार्वजनिक कर देना चाहिए. इनके परिवार की संपत्ति को भी सार्वजनिक करना चाहिए. ऐसा करने से इनके द्वारा अजिर्त आय की जनता द्वारा जांच की जा सकेगी.

सामान्य अधिकारी के भ्रष्टाचार में पकड़े जाने पर उनके शीर्ष अधिकारियों को भी जिम्मेवार ठहराना चाहिए. क्योंकि ऊंचे अधिकारियों को नीचे चल रहे भ्रष्टाचार की जानकारी होती है. केंद्रीय सतर्कता आयोग की तर्ज पर केंद्रीय मूल्यांकन आयोग बनाया जा सकता है. कौटिल्य का सुझाव था कि साधुओं से निवेदन करना चाहिए कि वे शिष्यों को घूसखोरी पता करने तथा भ्रष्ट अधिकारियों को ट्रैप करने को कहें. सरकारी कर्मियों पर नजर रखने के लिए एक खुफिया तंत्र स्थापित करना चाहिए. इस तंत्र पर नजर रखने के लिए एक और शीर्ष खुफिया तंत्र बनाना चाहिए. हमारे कानून में मौलिक कमी यह है कि शिकायत मिलने पर ही भ्रष्टाचार की जांच की जाती है. सरकारी कर्मी को तब तक ईमानदार माना जाता है, जब तक उसके भ्रष्ट होने के सबूत न मिल जायें. इसके स्थान पर उन्हें तब तक भ्रष्ट मानना चाहिए, जब तक उनके ईमानदार होने के सबूत न मिल जायें.

आम आदमी पार्टी को उस व्यवस्था को ठीक करना चाहिए, जिसमें भ्रष्ट व्यक्ति उच्च पदों पर नियुक्त हो जाते हैं. मान कर चलना चाहिए कि संस्था के प्रमुख की मिली-भगत से ही भ्रष्ट अधिकारी नियुक्त होते हैं. नियुक्ति की प्रक्रिया इतना पारदर्शी बना देनी चाहिए कि जनता पूछ सके कि अमुक व्यक्ति को नियुक्त क्यों किया गया? तब प्रमुख पर भी जांच आयेगी और भ्रष्टाचार में कुछ कमी आ सकती है.

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