इन दिनों झारखंड अधिविद्य परिषद (जैक) की ओर से मैट्रिक और इंटरमीडिएट की परिक्षाएं ली जा रही हैं. परीक्षा शांतिपूर्वक और बिना नकल संपन्न हो इसके लिए पर्याप्त प्रशासनिक व्यवस्था है. कई राज्यों की बोर्ड परीक्षाओं में नकल को नहीं रोके जाने के कारण उनकी छवि राष्ट्रीय स्तर पर अच्छी नहीं रह पाती, जिसका खमियाजा अच्छे छात्रों को भी उठाना पड़ता है.
इसलिए यह बेहद जरू री है कि बोर्ड परीक्षाओं को नकलमुक्त और पूरी प्रक्रिया को ज्यादा से ज्यादा पारदर्शी बनाने पर काम करे. कॉपियों की जांच से लेकर, अंक प्रदान करने की प्रक्रिया को भविष्य में जितना पारदर्शी बना पाना संभव हो, किया जाना चाहिए. यह किसी भी परीक्षा के लिए अच्छा व परीक्षार्थियों के साथ न्यायपूर्ण कदम होगा.
लेकिन इन सबसे अलग इस बात पर भी तुरंत विचार करने की जरू रत है कि जितना प्रशासनिक अमला परीक्षाओं के समय सक्रिय होता है क्या वह सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के दौरान सक्रिय हो पाता है? शिक्षा विभाग की मशीनरी स्कूलों में आधारभूत ढांचे के विकास में वह तत्परता और सक्रियता दिखा पाती है, जो दिखायी जानी चाहिए? राज्य सरकार शिक्षकों की बहाली पर तत्काल फैसले ले पाती है, जो सीधे-सीधे नौनिहालों के भविष्य से जुड़ा हुआ मसला है? क्या ऐसी सरकारों को परीक्षा लेने का हक होना चाहिए, जो छात्रों को पढ़ाई की व्यवस्था ना कर पाती हों? राज्य के ज्यादातर स्कूलों में हालात यह हैं कि या तो शिक्षक नहीं हैं, या फिर बच्चों के लिए किताबें नहीं, उनके लिए भवन नहीं, खेलने का मैदान नहीं, विज्ञान की पढ़ाई के लिए प्रयोगशालाएं नहीं, पुस्तकालय नहीं. यदि सही मायने में हमें अपने नौनिहालों के भविष्य की चिंता है, तो पहले इन चीजों को सुधारना होगा.
इन सबके बिना सिर्फ परीक्षा प्रणाली को बढ़ावा देते रहना और पूरी मशीनरी सिर्फ उसमें झोंक देना बच्चों के भविष्य से अन्याय के साथ-साथ उनमें कुंठा भी पैदा करेगा. परीक्षाओं में पास कर जाने के बावजूद हम उनमें वह आत्मविश्वास, जो उसे रोजगार की और दुनियावी परेशानियों से लड़ने में मदद कर सके, पैदा कर पायेंगे इसमें संदेह है. आत्मविश्वास के लिए मजबूत आधार जरू री है, जो हम इन बच्चों को दे नहीं पा रहे. छात्रों की प्रतिभा आकलन के पूर्व प्रतिभा विकास पर काम होना जरूरी है.