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धन बटोरने के लिए राजनीति
भारत को सुखी और यहां के लोगों को समृद्ध बनाना हमारे पुराने नेताओं का लक्ष्य था. इसे साकार करने की दिशा में उन्होंने अनेक कल्याणकारी योजनाओं को संचालित किया. उनके प्रयासों का भारत के आम जनजीवन पर गहरा प्रभाव भी पड़ा. गांधी, नेहरू, पटेल और सुभाष के बताये रास्ते को देखें और उनकी बातों पर […]
भारत को सुखी और यहां के लोगों को समृद्ध बनाना हमारे पुराने नेताओं का लक्ष्य था. इसे साकार करने की दिशा में उन्होंने अनेक कल्याणकारी योजनाओं को संचालित किया. उनके प्रयासों का भारत के आम जनजीवन पर गहरा प्रभाव भी पड़ा. गांधी, नेहरू, पटेल और सुभाष के बताये रास्ते को देखें और उनकी बातों पर आत्ममंथन करें, तो पता चलता है कि आज हम कहां खड़े हैं.
मूल्यांकन करने पर खुद ही पता चल जाता है कि बुनियादी जरूरतों में रोटी, कपड़ा, मकान के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, गरीबी उन्मूलन और रोजगार के क्षेत्र में हम कहां खड़े हैं?
अंगरेजी की एक पंक्ति हमेशा याद आती है कि ‘सिंपल लिविंग एंड हाई थिंकिंग’. गांधी जी के मामले में यह शत-प्रतिशत सही है. देश के निम्नवर्ग और साधारण जनता के प्रतिनिधित्व करने का बीड़ा उठा कर उन्होंने साधारण आदमी की तरह जीवन व्यतीत किया. आज की राजनीति पर यदि गौर किया जाये, तो लगता है कि इसका अवमूल्यन हो रहा है. चुनाव में किसी तरह टिकट हासिल करना आज के राजनेताओं का प्रथम लक्ष्य बन कर रह गया है.
चुनाव जीतने के बाद तय समय तक सरकार अथवा विपक्ष में रह कर कैसे धन बटोरा जाये, यह उनका दूसरा लक्ष्य है. वे तय समय में इतना अधिक धन बटोर लेते हैं कि उससे उनकी सात पुश्तों तक काम करने की जरूरत ही नहीं पड़ती. राजनीति में यदि आजकल यह सबकुछ हो रहा है, तो सिर्फ इसलिए कि आज की तारीख में हमारे नेताओं ने इसका बाजारीकरण कर दिया है. टिकट लेने से लेकर चुनाव जीतने तक भारी पैसे का खेल होता है. इसी बीच सवाल भी पैदा होता है कि आखिर जनसेवा के नाम पर देश की राजनीति का बाजारीकरण होना कितना जायज है?
उदय चंद्र, रांची
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