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सोचो कभी ऐसा हो, तो क्या हो ?

लोकनाथ तिवारी प्रभात खबर, रांची खा-पी कर कोई काम नहीं था, इसलिए सोचने बैठ गया. जब बैठ ही गया तो दुनिया की चिंता सताने लगी. सोचा साधु-संन्यासी ही बेहतर हैं, किसी की परवाह नहीं है. लेकिन फिर सोचा कि आजकल तो कुछ साधु-साध्वी बच्चों को लेकर चिंतित दिख रहे हैं. सोचिए अगर इनकी बातों पर […]

लोकनाथ तिवारी
प्रभात खबर, रांची
खा-पी कर कोई काम नहीं था, इसलिए सोचने बैठ गया. जब बैठ ही गया तो दुनिया की चिंता सताने लगी. सोचा साधु-संन्यासी ही बेहतर हैं, किसी की परवाह नहीं है. लेकिन फिर सोचा कि आजकल तो कुछ साधु-साध्वी बच्चों को लेकर चिंतित दिख रहे हैं. सोचिए अगर इनकी बातों पर अमल शुरू हो गया तो क्या होगा?
अगर चार-चार, पांच-पांच और दस-दस बच्चे पैदा होने लगे तो नागा बाबाओं की तो कोई कमी नहीं होगी, क्योंकि पहनाने के लिए कपड़ा कहां से आयेगा? अन्य साधुओं की भी कोई कमी नहीं होगी, क्योंकि हर परिवार को अपना एक बच्चा तो साधु-संतों को देना होगा. इससे कई समस्याएं हल हो सकती हैं. जैसे कि कन्या भ्रूणहत्या की समस्या.
क्योंकि कन्याएं भारत भूमि पर जन्म नहीं लेना चाहेंगी. कहेंगी- वहां तो हमें बच्चे पैदा करनेवाली मशीन बनकर रहना पड़ेगा. नेताओं को भी ‘भाइयो और बहनो!’ के संबोधन के झंझट से मुक्ति मिल जायेगी. आधी आबादी के आरक्षण, औरतों की आजादी का लफड़ा भी स्वत: खत्म हो जायेगा. दस-दस बच्चों को संभालने के चक्कर में नारियां घर से निकलेंगी ही नहीं. नेता, अफसर और धर्मगुरु वगैरह महिलाओं को तमीज के कपड़े पहनने के उपदेश भी नहीं दे पायेंगे.
फिर इससे ‘मेक इन इंडिया’ को भी भारी सफलता मिल सकती है. हम दुनिया की सबसे बड़ी आबादी दुनिया को दे सकते हैं. इससे महंगी मजदूरी की समस्या भी हल हो सकती है. पढ़ाई-लिखाई की भी कोई जरूरत रह नहीं जायेगी. मजदूर शक्ति के लिए पढ़ने-लिखने की क्या जरूरत है. सभा व रैलियों के लिए भी लोगों की कोई कमी नहीं होगी. किसी की सभा हो लाखों की संख्या में लोग जुटेंगे. किसी की रैली असफल नहीं होगी. तो फिर खुश हो लीजिए. यह फार्मूला हिट साबित होने वाला है. अपनी ही पीठ ठोकते हुए मैं अपनी सोच को दाद देने लगा- वाह क्या सोच है !
अभी मैं अपनी सोच पर इतरा ही रहा था कि मेरे सामने मेरा भतीजा आ खड़ा हुआ. पिछले तीन साल से कंपीटिशन की तैयारी करते-करते थक-हार कर अब वह सेना या पुलिस में भरती की कोशिश में लग गया है. उसने बताया कि सेना में भरती के लिए जमा हजारों युवकों की भीड़ नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. कई घायल हो गये. कुछ अपंग भी हो गये. इस खबर से मेरी उम्दा सोच को ब्रेक लग गया.
जब फौज में भरती के लिए अभी ये हाल है तो उस समय क्या होगा, जब साधु-साध्वी की फरमाइशों पर चार से दस बच्चे तक पैदा किये जाने लगेंगे. अब तो मुङो अपनी खोपड़ी पर ही तरस आने लगा. कहां-कहां की बात सोचने बैठ गयी थी. इसकी कल्पना से ही जी सिहर उठता है कि आनेवाले समय में हमारे नौजवानों को रोजगार के लिए किस हद तक कंपीटिशन ङोलना पड़ेगा.

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