13.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आतंकवाद से किसे है फायदा!

।।जावेद नकवी।।(दिल्ली संवाददाता, डॉन)भारत-पाक के बीच विवाद में दोषी कौन, यह सवाल एक ऐसी रूढ़ोक्ति (क्लीशे) में तब्दील हो चुका है कि आगे के घटनाक्रम का अनुमान आप उसके घटित होने से पहले ही लगा सकते हैं. इस संदर्भ में दो उदाहरण देना चाहूंगा. नवंबर, 2008 में पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री के दिल्ली दौरे […]

।।जावेद नकवी।।
(दिल्ली संवाददाता, डॉन)
भारत-पाक के बीच विवाद में दोषी कौन, यह सवाल एक ऐसी रूढ़ोक्ति (क्लीशे) में तब्दील हो चुका है कि आगे के घटनाक्रम का अनुमान आप उसके घटित होने से पहले ही लगा सकते हैं. इस संदर्भ में दो उदाहरण देना चाहूंगा. नवंबर, 2008 में पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री के दिल्ली दौरे के वक्त मुंबई में आतंकी हमले को अंजाम दिया गया. अब भारत व पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अगले माह न्यूयॉर्क में मुलाकात की तैयारी कर रहे थे, कि पिछले सोमवार की देर रात कश्मीर में नियंत्रण रेखा बेहद रहस्यपूर्ण घटना घटी.

यह पहली बार नहीं है, जब नियंत्रण रेखा पर अजीब तरीके के हमले में भारतीय सैनिकों के शहीद होने की खबर आयी है. ऐसे समय में, जब दक्षिण एशिया के देशों के बीच आपसी रिश्ते मधुर हो रहे हैं, आतंकी हमलों की घटनाएं हैरान भी नहीं करतीं. लेकिन सवाल यह है कि क्या इन घटनाओं का फायदा सिर्फ पाकिस्तान के अंदर की शक्तियों को ही मिल रहा है? या फिर ऐसी शक्तियां भारत में भी हैं, जो इसका आनंद उठा रही हैं?

यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कुछ सवालों को उलझाये रखने में पाकिस्तान की सेना का हाथ है. पाकिस्तान के अंदर की शक्तियां, जिनमें आम तौर पर पाक सेना और खुफिया एजेंसी को शामिल किया जाता है, घोषित तौर पर भारत विरोधी हैं. ऐसी प्रवृत्ति अमूमन जानवरों में होती है. इसलिए माना जा सकता है कि भारतीय चौकियों पर हमला करनेवाले लोग चाहे जिस आतंकी संगठन के सदस्य रहे हों, पाकिस्तानी सुरक्षा तंत्र ने उनकी राह में रुकावट पैदा नहीं की होगी.

इस घटना का एक तात्कालिक कारण यह हो सकता है कि पाकिस्तान के नागरिक शासक अफगानिस्तान में भारत की बड़ी भूमिका स्वीकार करने के लिए तैयार हैं, जो पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी नहीं चाहते हैं. वाइस ऑफ अमेरिका के साथ एक इंटरव्यू में पाकिस्तान की विदेश नीति के सलाहकार सरताज अजीज ने अफगानिस्तान के भविष्य निर्माण में भारत की भूमिका का स्वागत किया था. क्या नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी उनके प्रयासों को पटरी से उतारने के लिए की गयी थी? या फिर, जैसा कि कुछ खबरों से संकेत मिलते हैं, पांच भारतीय जवानों की हत्या उस हालिया घटना से भी जुड़ी हो सकती है जिसमें भारतीय कश्मीर में घुसने की कोशिश कर रहे कुछ आतंकियों को भारतीय सैनिकों ने मार गिराया था. बड़े फलक पर देखें तो भारत के साथ तनाव से पाकिस्तानी सुरक्षा तंत्र को लाभ मिल रहा है. हालांकि ऐसी घटनाओं में वृद्धि से कश्मीर मुद्दे को गरमाने में उसकी पारंपरिक रुचि पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा. यह हमला अफगानिस्तान में बड़ी भूमिका निभाने से भारत को रोकने की उसकी रणनीति तक ही सीमित है.

दूसरी ओर भारत में मुंबई हमला या नियंत्रण रेखा पर हालिया हमला जैसी घटनाओं से किसे फायदा मिल रहा है? मेरा मानना है कि पाकिस्तान से जुड़ी ऐसी घटनाओं से राजनीतिक लाभ पानेवाले पाकिस्तान से कहीं ज्यादा भारत में हैं. मेरी इस राय से आप असहमत हो सकते हैं. लेकिन मौजूदा समय में, जहां तक मेरी जानकारी है, पाकिस्तान में शायद ही किसी राजनीतिक समूह (वह चाहे प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पीपीपी हो या फिर इमरान खान की एमक्यूएम) को भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने से लाभ पहुंचेगा. दूसरी ओर भारत में वामपंथी दल भी ऐसे मामलों में कट्टर दक्षिणपंथी पार्टियों के सुर में सुर मिलाते दिखते हैं. भारतीय मुसलमानों के समर्थन को आतुर समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह को ही लें. पाकिस्तान को धमकाने का कोई भी मौका वे हाथ से जाने नहीं देना चाहते. वैसे पूर्व रक्षा मंत्री होने के नाते इस मामले पर नजर रखने का उनका दायित्व हो सकता है.

इस कड़ी में हानि रहित दिखनेवाले तथ्य को राहुल गांधी भी आसानी से याद कर सकते हैं, यदि उन्हें इससे चुनावी लाभ होता हो, कि किस तरह उनकी दादी, स्व इंदिरा गांधी, ने पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट दिया था. हालांकि यह राष्ट्र हित के नाम पर एक पक्ष की भावना के खड़े होने की उनकी उत्सुकता को दर्शाता है. भारत में लोकतंत्र को जीवित रखने में अर्धसैनिक बलों की भूमिका की सराहना करते हुए पिछले दिनों उन्होंने जोर देकर कहा था कि अर्धसैनिक बलों ने ही पंजाब में सिख आतंकवाद को कुचला था.

पश्चिम बंगाल के हालिया पंचायत चुनावों में वाम मोरचे को बुरी तरह पराजय का मुंह देखना पड़ा है, क्योंकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुसलिम मतों को वाम मोरचे से झटक कर अपने वोट बैंक में जोड़ लिया है. यही कारण है कि मार्क्‍सवादी अब पाकिस्तान के खिलाफ अपने पारंपरिक तेवर से पीछा छुड़ाते दिख रहे हैं. इसे चुनावी नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए एक गलत प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए.

विडंबना यह है कि पाकिस्तान की ओर से होने वाली ऐसी घटनाएं हिंदुत्व का झंडा बुलंद करनेवाली भारतीय जनता पार्टी के लिए एक ऐसा मौका मुहैया कराती हैं, जो शांति में शायद ही कभी संभव है. इसे सच साबित करते हुए, भाजपा मई, 2002 में पाकिस्तान के साथ एक खतरनाक युद्ध शुरू करने के प्रति समान रूप से उत्सुक थी. तब अटल बिहारी वाजपेयी ने भले ही शांति का आह्वान किया था, लेकिन उन्होंने हमें परमाणु युद्ध के कगार पर भी पहुंचा दिया था.

भारत का राजनीतिक वर्ग आक्रामक राष्ट्रवाद को अपना समर्थन देता है और इसमें परदे में छिपी भारत की खुफिया व्यवस्था उसकी मदद करती है. भारत के इस अपने छिपे हुए शक्ति केंद्र पर अब जाकर अखबारों में चर्चा शुरू हुई है. इसके बावजूद बहुत कम भारतीय हैं, जो भारत की आंतरिक या विदेशी खुफिया एजेंसियों को चिंता की वजह के तौर पर देखते हैं. दिसंबर, 2011 में संसद पर हुए रहस्यमयी हमले के वक्त कांग्रेस पार्टी ने हिंदूवादी शासकों से कुछ कठिन सवाल पूछे थे, लेकिन जब युद्ध की बातें होने लगी तो उसने भी चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी.

आज कांग्रेसी रक्षा मंत्री अपने इस बयान के बाद, कि भारतीय सैनिकों पर हमला करनेवाले पाकिस्तानी सैनिकों के वेश में आतंकवादी थे, मुश्किलों में घिर गये हैं. भाजपा हमले के लिए सीधे पाकिस्तानी सेना का नाम न लेने पर उनकी कुर्बानी चाहती है. सच्चई यह है कि खुफिया तंत्र की सहमति से भाजपा आगामी आम चुनाव से पहले पाक के साथ किसी किस्म की शांति वार्ता को पटरी से उतारना चाहती है. गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अगले महीने न्यूयॉर्क में विभिन्न मसलों पर बातचीत के लिए मिलनेवाले हैं. क्या दोनों में यह साहस है कि वे अपने-अपने देशों में मजबूती से जमी अंदरूनी शक्तियों के खिलाफ जा सकें! इसके बाद ही हम आतंकवाद के पीछे के सच और इसके वास्तविक हितसाधकों की शिनाख्त कर पायेंगे. (‘डॉन’ से साभार/ लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें