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पीछे छूट जाते हैं मशीन तोड़नेवाले

।। बायोमीट्रिक हाजिरी ।। वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटेन में मशीनों से नाराज मजदूरों की संख्या कम न थी. ये मशीनें उत्पादन की गुणवत्ता व मात्र के साथ ही मजदूरों के जीवन में भारी परिवर्तन ला रही थीं, शायद इसीलिए मजदूरों का एक हिस्सा मशीनों को तहस–नहस करने में विश्वास करता था. एक मजदूर, […]

।। बायोमीट्रिक हाजिरी ।।

वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटेन में मशीनों से नाराज मजदूरों की संख्या कम थी. ये मशीनें उत्पादन की गुणवत्ता मात्र के साथ ही मजदूरों के जीवन में भारी परिवर्तन ला रही थीं, शायद इसीलिए मजदूरों का एक हिस्सा मशीनों को तहसनहस करने में विश्वास करता था. एक मजदूर, जिसने मशीन तोड़ी, उसका नाम लड्ड था.

बाद में नयी तकनीक के विरोधियों को लडाइट कहा जाने लगा. बिहार में 21वीं सदी में भी ऐसे लडाइटों की संख्या कम नहीं है. राज्य के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में सरकार ने बायोमीट्रिक मशीनें लगायीं, ताकि कर्मियों की हाजिरी सुनिश्चित हो, पर कर्मियों ने इन्हें क्षतिग्रस्त कर दिया. अब विभाग ने फिर से ऐसी मशीनें लगाने का निर्णय लिया है.

अस्पतालों में कर्मियों डॉक्टरों की उपस्थिति समय से हो, इसके महत्व को बताने की जरूरत नहीं है. इसी तरह चारों सचिवालयों के प्रवेश द्वार पर 16 बायोमीट्रिक मशीनें लगायी गयीं, पर इनका इस्तेमाल करनेवाले कर्मियों की संख्या महज 40 फीसदी है. सबसे अफसोसनाक पहलू तो यह है कि अधिकारी ही इसके माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करते. केवल तीन अधिकारी ही इसका इस्तेमाल करते हैं. लापरवाही, कामचोरी या समय की चोरी दुनिया भर में देखी जाती है, पर अन्य देशों ने बहुत पहले बायोमीट्रिक प्रणाली को अपना लिया.

अमेरिका सहित कई देशों में तो इसका इस्तेमाल कार्यस्थलों में स्टाफ की उपस्थिति के अलावा अन्य कई उद्देश्यों के लिए हो रहा है. इसके जरिये गैरकानूनी ढंग से किसी देश में प्रवेश करने या आतंकवादियों की पहचान आसान हो गयी है. बिहार के अस्पतालों के अलावा विश्वविद्यालयों कॉलेजों की क्या स्थिति है, यह भी सब जानते हैं. यहां ऐसे शिक्षकों की संख्या कम नहीं है, जो समय से नहीं आते या क्लास लेने में लापरवाही दिखाते हैं.

कर्नाटक में एक छात्र ने ऐसे लापरवाह शिक्षकों की शिकायत लोकायुक्त से की. उन्होंने सूबे के सभी कॉलेजों में बायोमीट्रिक मशीनें लगाने का निर्देश दिया. बिहार के कॉलेजों में भी इसे जल्द लगाने की आवश्यकता है. यूजीसी ने आज से तीन साल पहले ही शिक्षकों के लिए दिशानिर्देश जारी किया था कि वे एक निश्चित अवधि तक कॉलेज में अवश्य रहें.

अगर हमें नया विकसित बिहार बनाना है, तो स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ्तर, अस्पताल के स्टाफ को भी आगे आना होगा. नये युग में पुरानी कार्य संस्कृति नहीं चल सकती. अच्छा होगा, यहां काम करनेवाले सभी लोग बायोमीट्रिक प्रणाली को जल्द स्वीकार कर लें.

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