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झोपड़ियों के नीचे पनप रहीं जिंदगियां

हम चाहे भारत में कितने भी स्मार्ट सिटी और ऊंची इमारतें बनवा लें, लेकिन हमारे देश के कच्चे घरों और झोपड़ियों में ही भारत की असली कहानी पैदा होती है. यहां कूलर और एसी की जरूरत नहीं पड़ती. गरमी के दिनों में इसकी खिड़कियां ही घरवासियों को ठंडक प्रदान करती हैं. झोपड़ियों और कच्चे मकानों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 25, 2015 1:11 AM
हम चाहे भारत में कितने भी स्मार्ट सिटी और ऊंची इमारतें बनवा लें, लेकिन हमारे देश के कच्चे घरों और झोपड़ियों में ही भारत की असली कहानी पैदा होती है. यहां कूलर और एसी की जरूरत नहीं पड़ती. गरमी के दिनों में इसकी खिड़कियां ही घरवासियों को ठंडक प्रदान करती हैं.
झोपड़ियों और कच्चे मकानों के आगे बहते नाले-नालियों का पानी मिनरल वाटर का काम करता हैं, जो अपने में गंदगी और बदबू समेटे हुए दुनिया भर की उर्वर शक्तियों को समाहित किये रहता है. इन्हीं गंदी बस्तियों से जो लोग तप और निखर कर निकलते हैं, वही देश के उच्च पदों पर आसीन होते हैं.
दुख तब होता है, जब इन गलियों में अपना बचपन गुजारनेवाले लोग उच्च पदों पर आसीन होने के बाद इसे भूल जाते हैं और खुद उन्हीं स्मार्ट सिटी और ऊंची इमारतों की परिकल्पना करने लगते हैं, जो वर्षो पहले उनके लिए दिवास्वप्न हुआ करते थे. भारत के औद्योगिक मानचित्र पर जमशेदपुर टाटा नगर अथवा लौह नगरी के रूप में जाना जाता है. वर्षो पहले जिन सपनों को मन में संजाये हुए जमशेद जी टाटा ने इस लौह नगरी को बसाया था, आज मानगो बस स्टैंड के पास बसी बस्तियों को देखने पर अंदाजा लग जाता है कि राजनेता कितनी कुत्सित राजनीति करते हैं.
लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान वोट बटोरने के लिए यहां के नेताओं ने जम कर इस बस्ती के नाम पर राजनीति की. भाषण दिये और लाखों लोकलुभावने वादे किये, लेकिन आज राज्य के अहम पद पर आसीन होने के बाद यहां के विधायक और सांसद लोगों को भूल गये. जो लोग इसे भूले हैं, उन्हें याद रखना होगा कि वे भी इन्हीं बस्तियों से गुजर कर सत्ता की सीढ़ियों को चढ़े हैं. याद रखें कि जिन लोगों ने उन्हें चढ़ाया है, वे गिरा भी सकते हैं.
त्रिदीप महतो, जमशेदपुर

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