पटना को ‘झंडू’ न बना देना

जोधपुर जैसे स्टेशन का नाम आइसक्रीम पर होने से यात्रियों को फर्जी एहसास ही सही पर मानसिक राहत मिलेगी. इससे उन्हें दर्शनशास्त्र की बुनियादी शिक्षा भी दी जा सकेगी कि जो दिखता है, वह होता नहीं. जो होता है, वह दिखता नहीं. रेल बजट ने कमाई का नया रास्ता बताया है. स्टेशन और गाड़ियों को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 27, 2015 7:43 AM

जोधपुर जैसे स्टेशन का नाम आइसक्रीम पर होने से यात्रियों को फर्जी एहसास ही सही पर मानसिक राहत मिलेगी. इससे उन्हें दर्शनशास्त्र की बुनियादी शिक्षा भी दी जा सकेगी कि जो दिखता है, वह होता नहीं. जो होता है, वह दिखता नहीं.

रेल बजट ने कमाई का नया रास्ता बताया है. स्टेशन और गाड़ियों को ब्रांडों के साथ जोड़ा जायेगा. मतलब स्टेशन या गाड़ी के नाम के साथ ब्रांडों को जोड़ कर कंपनियों से नोट कमाये जा सकते हैं. आइडिया अच्छा है. कुछ वक्त बाद स्टेशनों के नाम के आगे उस ब्रांड के नाम लगाये जायंेगे, जिस ब्रांड से रेलवे ने पैसे वसूले हैं. मसलन हरिद्वार स्टेशन का नाम हो सकता है बैगपाइपर हरिद्वार. बैगपाइपर सोडे का ब्रांड है. जानकार जानते हैं कि यह असल में किस आइटम का ब्रांड है. वैसे इस तरह के नामकरण में एक संदेश भी मिल सकता है कि ज्यादा बैगपाइपरबाजी की तो हरिद्वार में अस्थियां जल्दी प्रवाहित होंगी.

दिल्ली का नाम मैगी दिल्ली होना चाहिए. मैगी की तरह उलझी दिल्ली. सिरा कहां से खुलता है और कहां खत्म होता है, पता लगाना मुश्किल. दिल्ली स्टेशन पर आते ही हर बंदे को पता लग जाये कि यह शहर मैगी की तरह टेढ़ा-मेढ़ा है. बनारस का नाम कोलगेट-बनारस होना चाहिए. पान की थूका-थाकी कम करो, शहर चमका कर रखो, कोलगेट की चमक जैसा, यह संदेश स्टेशन पर ही मिल जाना चाहिए. सुलभ शौचालय- देश का नहीं, दुनिया का बड़ा ब्रांड है. देशवासियों को सुलभ शौचालय के संस्थापकों के प्रति गहरा आदर भाव होना चाहिए. पूरे देश में गंदगी जो कम दिखती है, उसमें सुलभ शौचालय की बड़ी भूमिका है. पर किसी शहर के नाम के साथ इस ब्रांड को नहीं जोड़ा जाना चाहिए.

पटना स्टेशन का कोलोबोरेशन झंडू बाम के साथ नहीं होना चाहिए, वरना स्टेशन पर उतरते हुए देखना पड़ेगा- झंडू पटना. ना, ना, पटना स्मार्ट लोगों का शहर है, कुछ स्मार्ट सा ब्रांड होना चाहिए- विल्स पटना टाइप कुछ. जिन शहरों के नाम कम स्मार्ट हैं, उनके नाम के आगे स्मार्ट ब्रांड जोड़े जायें. यह न हो कि डुमरियागंज के आगे गैंडा छाप फिनायल ब्रांड जुड़ जाये. कानपुर आने से पहले गंदगी की बदबू उठना शुरू हो जाती है, इसलिए बेहतर हो कि इसका कोलोबोरेशन फेयर एंड लवली ब्रांड से हो और स्टेशन पर उतरते ही यात्री देखे- फेयर एंड लवली कानपुर, ताकि यात्री को ताकीद रहे कि शहर को साफ-सुथरा रखना है.

धार्मिक शहरों के नाम के आगे फेविकोल ब्रांड जोड़ा जा सकता है, इन शहरों में पंडे फेविकोल के मजबूत जोड़ जैसा चिपक जाते हैं. फेविकोल-मथुरा हो सकता है, फेविकोल-इलाहाबाद हो सकता है, ताकि स्टेशन पर उतरते ही यात्री आगाह हो जाये कि भइया फेविकोल पंडों से बच लेना, अगर बच पाओ तो. अतीत के शानदार शहरों का नाम अतीत के शानदार ब्रांडों पर रखा जा सकता है. आगरा स्टेशन को एचएमटी आगरा बनाया जा सकता है. दोनों का इतिहास शानदार रहा है. वर्तमान के बारे में क्या कहें. पर ब्रांडों और स्टेशनों के कोलोबोरेशन में यह तो सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए कि उससे आम जनता में कुंठा पैदा न होने लग जाये. दिल्ली में एक स्टेशन है द्वारका. इस इलाके में पानी की बेहद कमी रहती है. इस स्टेशन का नाम भूल के भी बिसलेरी-द्वारका न हो जाये. मैकडोनाल्ड बर्गर का कोलोबोरेशन किसी ऐसे स्टेशन से नहीं हो, जो कुपोषण के लिए कुख्यात हो. मैकडोनाल्ड बर्गर-कालाहांडी स्टेशन कतई नहीं होना चाहिए.

गाड़ियों के नामों के साथ ब्रांडों का कोलोबोरेशन होना चाहिए, बल्कि कुछ पुरानी गाड़ियों के नाम उनकी अभी की स्थिति के हिसाब से होने चाहिए. बहुत पुराने वक्त में तूफान एक्सप्रेस तेज गाड़ी रही होगी, पर अब वह कतई धीमी गति का समाचार हो गयी है. आकाशवाणी में धीमी गति के समाचार आते हैं. आकाशवाणी धीमी गति के समाचारों की ब्रांडिंग को तूफान एक्सप्रेस के नाम से जोड़ सकती है. इससे यात्रियों के सामने वस्तुस्थिति स्पष्ट हो जायेगी- धीमी गति के समाचार उर्फ तूफान एक्सप्रेस गाड़ी का नाम रहे, तो मामला एकदम साफ समझ में आयेगा.

कुछ गाड़ियों के नाम बदली हुई राजनीतिक स्थितियों के हिसाब से बदले जाने चाहिए. डेक्कन क्वीन यानी दक्षिण की रानी नामक गाड़ी मुंबई और पुणो के बीच चलती है. डेक्कन क्वीन दरअसल किसी भी स्टेशन से चेन्नई को ही चलनी चाहिए. डेक्कन क्वीन इस मुल्क में एक ही हैं- जयललिता. उनकी तमिलनाडु सरकार ट्रेन के नये नामकरण के लिए मोटी रकम देने के लिए तैयार हो सकती है. रेलमंत्री को रकम जुटाने में कम समस्याएं आयेंगी.

खैर, राजस्थान के आम तौर पर तपते रेलवे स्टेशनों के साथ आइसक्रीमों के ब्रांड जुड़ने चाहिए, ताकि फर्जी ही सही, यहां आनेवाले यात्रियों को कुछ मानसिक राहत तो मिले. जैसे अमूल आइसक्रीम- बीकानेर स्टेशन या मदर डेयरी आइसक्रीम- जोधपुर स्टेशन हो सकता है. इस तरह से स्टेशनों के नामकरण से यात्रियों को दर्शनशास्त्र की बुनियादी शिक्षा भी दी जा सकेगी कि जो दिखता है, वह होता नहीं है. जो होता है, वह दिखता नहीं है.

आलोक पुराणिक

वरिष्ठ व्यंग्यकार

puranika@gmail.com

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