भारतीय अर्थव्यवस्था की ‘उज्ज्वल संभावनाओं’ को अभिव्यक्त करते हुए आर्थिक सर्वेक्षण, 2014-15 में दावा किया गया है कि हमारी अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी, निरंतर मुद्रास्फीति, बढ़ते हुए राजकोषीय घाटे, घटती हुई घरेलू मांग, विदेशी खाता असंतुलनों और रुपये की घटती कीमत से जुड़ी असुरक्षाओं से काफी हद तक मुक्त हो गयी है. इस सकारात्मकता से उत्साहित होकर सर्वेक्षण में सकल घरेलू उत्पादन के आकलन के नये सूत्रों के आधार पर 2015-16 के वित्त वर्ष में वृद्धि दर के 8 फीसदी से अधिक रहने तथा उपभोक्ता मुद्रास्फीति की दर 5 से 5.5 फीसदी के बीच होने का अनुमान लगाया गया है. सव्रेक्षण में जोर दिया गया है कि बड़े आर्थिक सुधारों के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं.
आर्थिक सर्वेक्षण देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति और आनेवाले आम बजट की दिशा को रेखांकित करता है, जिसे वित्त मंत्रलय के मुख्य आर्थिक सलाहकार की अगुवाई में तैयार किया जाता है. इस दस्तावेज की भूमिका में सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यन ने जॉन मेनर्ड कींज की प्रसिद्ध उक्ति को उद्धृत किया है कि ‘महत्वपूर्ण’ और ‘अत्यावश्यक’ के बीच अंतर करना जरूरी होता है. इस सलाह के असर में, बकौल सुब्रह्मण्यन, ‘इस आर्थिक समीक्षा में विस्तृत कार्यक्षेत्र रखने की भूल करते हुए भी वर्तमान का पक्ष लिया गया है, भले ही इसका परिणाम गहन विश्लेषण की तुलना में सरसरी परीक्षण करने की स्वतंत्रता लेना ही क्यों न रहा हो.’ ‘अवसर पैदा करना और असुरक्षा के हालात कम करना’ समीक्षा के मुख्य विषय हैं तथा इसमें यह समझने पर अधिक ध्यान दिया गया है कि व्यापक आर्थिक विकास के लिए प्रत्यक्ष सरकारी सहायता ‘किस तरह बेहतरीन तरीके’ से काम आ सकती है.
सर्वेक्षण का जोर वंचित वर्ग के ‘हर आंख से आंसू पोंछने’ के साथ ‘महत्वाकांक्षी भारत के लिए अवसर पैदा करने’ पर है. वर्तमान परिस्थिति और सुधारों तथा नीतियों में निर्णायक परिवर्तनों के द्वारा आगामी वर्षो में विकास दर दो अंकों में ले जाने का भरोसा, इस सर्वेक्षण के माध्यम से सरकार के आत्मविश्वास की झलक है. इस दस्तावेज में यह भी रेखांकित किया गया है कि सरकार को आर्थिक सुधारों को तेज करने का राजनीतिक जनादेश प्राप्त है.
इस दिशा में जो मुख्य नीतिगत सुझाव सर्वेक्षण में हैं, उनमें प्रमुख है- अधिक ¬ण लेने के बजाय सार्वजनिक निवेश, यानी सरकारी व्यय में वृद्धि करना. इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली अपने बजट में ¬ण-लक्ष्यों पर कायम रहेंगे, ताकि वित्तीय घाटा 4.1 फीसदी से अधिक न हो. सर्वेक्षण ने उस प्रचलित सिद्धांत का हवाला भी दिया है कि सरकारों को वित्तीय निवेश के लिए ही ¬ण लेना चाहिए, न कि वर्तमान खर्चो को पूरा करने के लिए. बजट घाटे पर ठोस नियंत्रण और सरकारी निवेश में वृद्धि की सलाह सराहनीय है, क्योंकि इससे दीर्घकालीन पूंजी और परिसंपत्तियों के निर्माण के साथ बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करने के प्रयासों और परियोजनाओं को मजबूत आधार मिलेगा. दूसरा अहम सुझाव है- सब्सिडी की मौजूदा व्यवस्था में व्यापक संशोधन.
यह सुझाव वित्त निवेश के लिए धन जुटाने के विचार का पूरक है. सर्वेक्षण का तर्क है कि समाज के कमजोर वर्गो के लिए दी जानेवाली सब्सिडी का बड़ा हिस्सा उन तक नहीं पहुंच पाता, इसलिए वितरण-तंत्र में सुधार जरूरी है. उदाहरण के रूप में दस्तावेज में बताया गया है कि बिजली पर दी जानेवाली सब्सिडी सिर्फ बिजली की सुविधावाले परिवारों को ही मिलती है, सस्ता किरासन तेल का 41 फीसदी हिस्सा बाहर बेच दिया जाता है और बचे हिस्से यानी 59 फीसदी का मात्र 46 फीसदी ही गरीबों तक पहुंच पाता है.
चुनिंदा सब्सिडी का आकार करीब 3,78,000 करोड़ रुपये है, जो कि 2011-12 के सकल घरेलू उत्पादन का 4.2 फीसदी है. सर्वेक्षण ने कहा है कि करीब इतनी ही राशि के खर्च से 35 फीसदी परिवारों के जीवन-स्तर को बेहतर बनाया जा सकता है, जो तेंदुलकर समिति के आकलन के अनुसार गरीबी-रेखा के नीचे जीवन बसर करनेवाले 21.9 फीसदी परिवारों की संख्या से बहुत अधिक है. यह सही है कि सब्सिडी का बड़ा हिस्सा जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचता और इसमें सुधार की जरूरत है, लेकिन स्ब्सिडी में फेरबदल या कटौती संभलकर करनी होगी. यह समझना जरूरी है कि वंचितों के सशक्तीकरण की प्रक्रिया में सब्सिडी भी एक निवेश है. ध्यान रहे, सिर के दर्द के इलाज की हड़बड़ी में कहीं सिर को ही नुकसान न हो जाये. आर्थिक समीक्षा से स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर आ रही है, इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि यह खुशहाली आम आदमी तक भी पहुंचेगी और बजट में इसकी झलक दिखेगी.