मोदी के ‘वी कैन’ के मायने

।। प्रमोद जोशी ।। (वरिष्ठ पत्रकार) – कांग्रेस के पीछे बीते नौ साल की इनकम्बैंसी है. जनता को विकल्प चाहिए. नरेंद्र मोदी खुद को विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं और जनता से कहते हैं, ‘यस वी कैन, यस वी डू!’ – नरेंद्र मोदी की सार्वजनिक सभाओं के लाइव टीवी प्रसारण के पीछे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 13, 2013 4:03 AM

।। प्रमोद जोशी ।।

(वरिष्ठ पत्रकार)

– कांग्रेस के पीछे बीते नौ साल की इनकम्बैंसी है. जनता को विकल्प चाहिए. नरेंद्र मोदी खुद को विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं और जनता से कहते हैं, यस वी कैन, यस वी डू!

नरेंद्र मोदी की सार्वजनिक सभाओं के लाइव टीवी प्रसारण के पीछे क्या कोई योजना या रणनीति है? और यदि है तो उसकी जवाबी योजना और रणनीति क्या है? इसमें दो राय नहीं कि मोदी ध्रुवीकरण करनेवाले नेता हैं. उनकी तुलना में भाजपा के ही कई अन्य नेता सेक्यूलर और सौम्य माने जाते हैं.

इसलिए मोदी के बारे में लिखनेवालों के सामने बड़ा प्रश्न होता है कि वे खड़े कहां हैं. उनके साथ हैं या खिलाफ? किसी एक तरफ रहने में आसानी है और बीच के रास्ते में संकट. पर अब जबकि भाजपा के लगभग नंबर एक नेता के रूप में मोदी सामने चुके हैं, तो उनके गुणदोष को देखनापरखना जरूरी है. जनता का बड़ा तबका मोदी के बारे में अभी कोई निश्चय नहीं कर पाया है. राजनेता और आम जनता की समझ में बुनियादी अंतर होता है. राजनेता जब जिसकी खाता है, तब उसकी गाता है. आम जनता को निर्थक गाने और बेवजह खाने में यकीन नहीं होता.

मोदी की हैदराबाद रैली ने एक माने में आनेवाले चुनावों के प्रचार का किकस्टार्टकिया है. इसमें भाजपा की संभावित रणनीति को देखा जा सकता है. यह रणनीति राजनीति के मुद्दों नीतियों के साथसाथ उन शक्तियों में भी खोजी जानी चाहिए, जो भविष्य में भाजपा की सहयोगी या विरोधी बनेंगी. मोदी की राजनीतिक रणनीति यूपीए पर पूरे वेग के साथ हमला बोलने की है. और हैदराबाद में उन्होंने यही किया. संयोग से इस वक्त नियंत्रण रेखा पर सैनिकों की हत्या का मामला गर्म है, जो मोदी की पसंद का मुद्दा है. पिछले हफ्ते संसद में रक्षा मंत्री के बयान की गफलत के बाद यूपीए सरकार यों भी बैकफुट पर है.

मोदी पिछले कुछ समय से कांग्रेसमुक्त भारत की बात कह रहे हैं. इसका उद्देश्य उन पार्टियों और व्यक्तियों को आकर्षित करना है जो परंपरा से कांग्रेसविरोधी हैं. इसके लिए हैदराबाद का मंच मौजूं था. इसी शहर से एनटी रामाराव ने कांग्रेस के खिलाफ आंध्र की प्रतिष्ठा का सवाल उठाया था. उन्होंने याद दिलाया कि एनटीआर ने केंद्र में गैरकांग्रेस सरकार की पहल की थी.

हैदराबाद की यह सभा मोदी के लिए बड़ी चुनौती थी, क्योंकि यह शहर तेलंगाना और सीमांध्र के विवाद में घिरा है. भाजपा तेलंगाना का समर्थन कर चुकी है, इसलिए यह समझना जरूरी था कि मोदी अपने अंतर्विरोधों को कैसे सुलझाएंगे.

मोदी ने कांग्रेस के अंतर्विरोधों को उजागर कर अपनी पार्टी के असमंजस को छिपाया. उन्होंने कहा कि नया राज्य बनने पर दोनों पक्ष प्रसन्न होते हैं. झारखंड बना, तो बिहार और झारखंड दोनों ने मिठाई बांटी. उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ बने, तब भी सभी पक्षों ने खुशी व्यक्त की. तेलंगाना बनने पर दोनों पक्ष नाराज हैं! इससे उन्होंने तेलंगाना और सीमांध्र दोनों के समर्थकों की भावनाओं को सहलाया. भाषण की शुरुआत तेलुगु में कर मोदी ने अपनी पार्टी के अंतर्विरोधों को काफी हद तक ढक लिया. उन्होंने कांग्रेस के असमंजस और इस फैसले में हुई देरी को निशाना बनाते हुए कहा, नये राज्य की राजधानी विकसित करने में दस साल लगने की उम्मीद कांग्रेस को थी तो उसने 2004 में ही फैसला क्यों नहीं किया.

दक्षिण में भाजपा का दुर्ग इस समय पूरी तरह ध्वस्त है. हैदराबाद में मोदी ने तेदेपा और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता का उल्लेख कर अपने संभावित सहयोगियों की झलक भी दी है. 2004 का आम चुनाव हारने के बाद से एनडीए के अधिकतर सहयोगी साथ छोड़ गये हैं. देश की भावी राजनीति को देखते हुए कहना मुश्किल है कि चुनावपूर्व गठबंधन बन भी पाएंगे या नहीं. निश्चित रूप से अगले चुनाव के बाद के गठबंधन महत्वपूर्ण साबित होंगे, पर उसके लिए भी पृष्ठपीठिका चाहिए. मोदी की रणनीति कर्नाटक में येदियुरप्पा को पार्टी में वापस लाने की है.

सोशल इंजीनियरी और भ्रष्टाचार के आरोपों का आपसी मेल नहीं है. जिन राज्यों में जातीय आधार की पार्टियां हैं, उनके नेताओं की लोकप्रियता भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण कम नहीं होती. यह सिर्फ संयोग नहीं था कि मोदी की सभा में बंगारू लक्ष्मण भी मौजूद थे. लक्ष्मण को दिल्ली की एक अदालत रिश्वत के मामले में दोषी ठहरा चुकी है. इस बात की विवेचना जरूरी है कि लक्ष्मण के आने के मायने क्या हैं? पार्टी में उभर रहे अंतर्विरोधों के बीच मोदी ने चतुराई से आडवाणी, शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह सबकी तारीफ करके एक दूसरा संदेश भी दिया.

वैसे मोदी की राजनीति भाजपा के किले खड़े करने से ज्यादा कांग्रेस के दुर्ग ढहाने की है. कांग्रेसमुक्त भारत का नारा इसी बात पर केंद्रित है. उनकी दृष्टि में कांग्रेस का भ्रष्टाचार जल, थल नभ तक पहुंच गया है. महंगाई और भ्रष्टाचार से जूझ रहे देश में कांग्रेसमुक्त भारत की हवा चल रही है. जनसभाएं जनभावनाओं को सहलाने, उकसाने और नये मुहावरे देने का काम करती हैं.

मोदी का कार्यक्रम क्या है? विकास और गवर्नेंस. वह विकास किस रूप में, कैसे होगा और उसके लिए कैसी नीतियां अपनायी जाएंगी, इस पर उन्होंने कुछ नहीं कहा. पर वे अपनी बात देश में उभरते नये मध्यवर्ग और युवा आबादी को ध्यान में रख कर कहते हैं. इसीलिए उनके भाषण में बारबार युवाओं का जिक्र होता है.

समझना होगा कि हैदराबाद जैसे शहर में काफी बड़ी संख्या में दर्शक मोदी की रैली में आये तो उसकी क्या वजह थी? और मोदी परिणाम पर असर डालनेवाले नेता हैं? नेता होता वही है जो प्रभावशाली हो. महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी महत्वपूर्ण थे, इसलिए सबको याद हैं. बेशक हिटलर, मुसोलिनी और स्टैलिन के नाम भी इस सूची में हैं. और नरेंद्र मोदी कितने भी लोकप्रिय हो जाएं, उनकी हिंसक कट्टर छवि साथसाथ चलनेवाली है. इस छवि के बावजूद वे खुद को स्वीकार्य बनाने में कामयाब हैं. कैसे?

जनता की समझ है कि काम करनेवाला कठोर होता है. विस्मय इस बात पर है कि कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी या तो देर कर रहे हैं या लंबी रणनीति पर काम कर रहे हैं. कई बार लगता है कि मोदी जमीन से आते हैं और राहुल पाठ्य पुस्तकों के सहारे बोलते हैं. राहुल कवि हैं तो मोदी मंच के कवि हैं. वे मंच का लाभ उठाना जानते हैं.

इस साल अप्रैल में सीआइआइ की गोष्ठी में राहुल ने जो कहा, वह दार्शनिकदृष्टि थी. उन्होंने एक लंबी रणनीति पेश की और प्रकारांतर से अपने होने के महत्व को ही खारिज किया. उन्होंने कहा कि कोई एक शख्स देश की परेशानियों का जवाब नहीं ढूंढ सकता. कटाक्ष मोदी पर था, पर बात खुद उन पर लागू होती थी. आखिर इंदिरा गांधी भी कांग्रेस की नेता थीं. पर राहुल ने व्यक्तिवादीकेंद्रीकरण की जगह विकेंद्रितसत्ता की बात की.

यानी मेरी जरूरत नहीं, सिस्टम को मजबूत करने की जरूरत है. नेतृत्व का यह भी एक गुण होता है. पर इस बात को पूरी ताकत से रेखांकित कौन करेगा? कांग्रेस के पीछे नौ साल की इनकम्बैंसी है. जनता को विकल्प चाहिए. मोदी खुद को विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं और जनता से कहते हैं, यस वी कैन, यस वी डू!

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