परिसंपत्तियों के बंटवारे पर पहल

राज्य विभाजन के पंद्रह साल बीत जाने के बाद भी झारखंड के पास अपना प्रामाणिक नक्शा तक नहीं है. डेढ़ दशक बीत जाने के बावजूद बिहार के साथ झारखंड की ढेरों परिसंपत्तियों के बंटवारे का लंबित रहना दुर्भाग्यजनक है. बिहार राज्य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड (बीएसआइडीसीएल) के अधीन झारखंड की औद्योगिक इकाइयों की परिसंपत्ति का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 5, 2015 5:18 AM
राज्य विभाजन के पंद्रह साल बीत जाने के बाद भी झारखंड के पास अपना प्रामाणिक नक्शा तक नहीं है. डेढ़ दशक बीत जाने के बावजूद बिहार के साथ झारखंड की ढेरों परिसंपत्तियों के बंटवारे का लंबित रहना दुर्भाग्यजनक है. बिहार राज्य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड (बीएसआइडीसीएल) के अधीन झारखंड की औद्योगिक इकाइयों की परिसंपत्ति का विवाद जारी है. कठोर फैसले राजनीतिक दूरदर्शिता से ही संभव है.
इसके लिए सरकार का दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ सुशासन से लैस होना जरूरी है. अपनी परिसंपत्ति के स्वामित्व को लेकर झारखंड में शासन-सत्ता में रही सरकारों की उदासीनता समझ से परे हो सकती है, पर इसके कारण बहुत स्पष्ट हैं. इस दिशा में सरकारें एक कदम भी आगे बढ़ी होतीं, तो उनकी पहल का कोई न कोई नतीजा सामने जरूर होता. वैसे इस तरह के मसले में तकनीकी पेच होने के कारण ही डेढ़ दशक के बाद भी उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिसंपत्तियों का विवाद लंबित है. लेकिन वहां प्रयास जारी है.
झारखंड में अब तक जो सरकारें आयीं वह शासन की अनिवार्यता कम और राजनीतिक बाध्यताओं का परिणाम ज्यादा थीं. स्वाभाविक ढंग से यहां की सरकारें सुशासन तथा दृढ़ इच्छाशक्ति से कोसों दूर थीं. ऐसे में परिसंपत्तियों के बंटवारा जैसे नाशुक्रे काम के लिए कोई सरकार राजनीतिक एजेंडे से बाहर जाकर अपना वक्त कैसे जाया करती.
जबकि परिसंपत्तियों पर प्रदेश के स्वामित्व से न सिर्फ नियोजन और राजस्व का सरोकार है, बल्कि इसके कई दूरगामी फायदे हैं. सुखद बात यह है कि झारखंड की मौजूदा सरकार का रुख थोड़ा हट कर है. पिछले दिनों पटना में अंतरराज्यीय परिषद की बैठक में झारखंड की रघुवर दास सरकार ने न सिर्फ इस मसले को लेकर विचार-विमर्श किया है, बल्कि एक कदम आगे बढ़ कर सरकार ने तय किया है कि झारखंड के विभागीय मंत्री, मुख्य सचिव व अधिकारी इस बाबत बैठक करेंगे.
बैठक और वार्ता से एक कदम आगे जाकर झारखंड सरकार को इस मसले को लेकर नियमित मॉनीटरिंग की जरूरत समझनी होगी. नयी सरकार ने इस पर गंभीर पहल का संकेत देकर एक तरह से इसके महत्व को स्वीकारकिया है.

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