यह गरमी में भी नरमी का नमूना ही तो है
राजेंद्र तिवारी कॉरपोरेट एडिटर प्रभात खबर हालांकि, अभी यह शुरुआत है और कुछ भी कहना बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन यह तो स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि पीडीपी और भाजपा, दोनों ही पार्टियां अपनी कंस्टीटुएंशी को बचाते हुए समझदारी से आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हैं. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का बयान […]
राजेंद्र तिवारी
कॉरपोरेट एडिटर
प्रभात खबर
हालांकि, अभी यह शुरुआत है और कुछ भी कहना बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन यह तो स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि पीडीपी और भाजपा, दोनों ही पार्टियां अपनी कंस्टीटुएंशी को बचाते हुए समझदारी से आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हैं.
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का बयान इन दिनों चर्चा में है. इसको लेकर तमाम तरह की बातें की जा रही हैं. यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा बहुत दिनों तक पीडीपी के साथ नहीं चल पायेगी. भाजपा पीडीपी के साथ कितने दिन तक चल पायेगी, यह तो भाजपा के लोग ही तय करेंगे, लेकिन पीडीपी-भाजपा के साथ आने से यह माना जाने लगा था कि दोनों के साथ आने से दोनों पार्टियों के अतिवादी रवैये में स्वाभाविक रूप से नरमी आयेगी, जो जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ पूरे देश के हित में होगी.
आखिर इस नरमी का स्वरूप क्या होगा और इस नरमी का मतलब क्या होना चाहिए? यह सवाल महत्वपूर्ण है और इसलिए है कि नरमी को हितकारी बतानेवाले लोग भी अब मुफ्ती के बयान पर भाजपा को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं.
पहले तो बात करते हैं मुफ्ती के बयान की. मुफ्ती के बयान पर भाजपा को कटघरे में खड़े करते हुए सबसे कड़ी प्रतिक्रिया आयी नेशनल कॉन्फ्रेंस व कांग्रेस की. कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष जीए मीर ने तो भाजपा व पीडीपी पर अपनी-अपनी कंस्टीटुएंशी के साथ धोखा करने का आरोप लगाया. अब जरा याद करिये, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव घोषित होने से पहले दिये गये नेशनल कॉन्फ्रेंस के बयानों को.
जब भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में मिशन 44 प्लस की घोषणा की और वहां बड़े नेताओं ने अपनी गतिविधियां बढ़ा दीं, तो उमर अब्दुल्ला के जो बयान कश्मीरी अखबारों में छपे, वे ध्यान देने योग्य हैं. मैंने इस कॉलम में 26 दिसंबर को लिखा था- कश्मीर में पीडीपी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस सरकार के कुशासन के साथ-साथ सेल्फ रूल, मिलिटरी हटाये जाने और आम्र्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट को हटाने को मुद्दा बनाया.
दोनों ही संभागों में नेकां-कांग्रेस सरकार के खिलाफ माहौल था और साथ में इन पार्टियों द्वारा उठाये गये मुद्दों की अपील. नतीजा दोनों संभागों में सत्तारूढ़ दल हार गये. दोनों संभागों में कॉमन फैक्टर था नेकां-कांग्रेस से लोगों की नाराजगी, लेकिन दोनों संभागों में दूसरा महत्वपूर्ण फैक्टर एक-दूसरे की आकांक्षाओं के विपरीत रहा. यहां एक बात और ध्यान देने की है और वह है अलगाववादियों का रुख. चुनाव की घोषणा से काफी पहले अलगाववादियों को उमर अब्दुल्ला ने चेताया था कि वे चुनाव बायकाट न करें और यदि वे ऐसा करेंगे, तो भाजपा को ही फायदा मिलेगा. इसका असर भी हुआ और वोटिंग बढ़ गयी.
जम्मू-कश्मीर राजनीतिक फैसलों में इस बात को ध्यान रखने की जरूरत है. मुफ्ती की पीडीपी ने जो जमीन कश्मीर में बनायी है, उसमें अलगाववादियों की जमीन का अतिक्रमण भी है. लेकिन इसका अर्थ यह निकालना कि मुफ्ती अलगाववादी हैं, गलत होगा. यहां तक कि पाकपरस्त अलगाववादी नेता भी अपनी राजनीति के लिए मुफ्ती को चुनौती के रूप में लेते हैं, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला या भाजपा को नहीं.’ उमर अबदुल्ला के जिस बयान का जिक्र मैंने अपने कॉलम में किया था, वह बयान कश्मीर के अखबारों में छपा है.
यही नहीं, पीडीपी के भी कुछ नेताओं ने उमर की लाइन पर बयान दिये. मैंने तब लिखा था कि यदि पीडीपी और भाजपा मिल कर सरकार बनाते हैं, तो न कश्मीर की जनता के मैंडेट का अपमान होगा और न जम्मू के लोगों के मैंडेट का. इन दोनों के साथ आने से दोनों दलों के तमाम अतिवादी रवैयों में स्वाभाविक रूप से नरमी आयेगी, जो जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ राष्ट्रहित में होगा. यह सही है कि यह समीकरण बनाने के लिए बहुत ईमानदारी और परिपक्व राजनीतिक क्षमता की जरूरत होगी, लेकिन यह भी सही है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद से ज्यादा ईमानदार और परिपक्व राजनीतिज्ञ जम्मू-कश्मीर में शायद कोई दूसरा नहीं है. भाजपा नेतृत्व और मुफ्ती, दोनों ही अपनी-अपनी कांस्टीटुएंशी को समझा सकते हैं कि पीडीपी-भाजपा के साथ रहने से कैसे लोगों को ज्यादा होगा. विकास के मामले में भी और राजनीतिक रूप से भी.
मुङो लगता है कि मुफ्ती के बयान पर भाजपा की ओर से बहुत समझदारी से काम लिया गया है. लोकसभा में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बहुत ही परिपक्व और समझदारी पूर्ण बयान दिया और प्रधानमंत्री ने भी मुफ्ती के बयान को इश्यू की तरह न लेते हुए राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया. इसे उसी तरह लेना चाहिए, जैसे सेल्फ रूल, मिलिटरी हटाये जाने और आम्र्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट पर पीडीपी और अनुच्छेद 370 पर भाजपा ने अपने-अपने स्टैंड नरम करके सरकार बनाने का रास्ता साफ किया. मुफ्ती के बयान को भी भाजपा ने परिपक्व तरीके से हैंडल किया.
इसे नरमी ही तो कहेंगे. हालांकि, अभी यह शुरुआत है और कुछ भी कहना बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन यह तो स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि पीडीपी और भाजपा, दोनों ही पार्टियां अपनी कंस्टीटुएंशी को बचाते हुए समझदारी से आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हैं. मैं एक बात का जिक्र और करना चाहता हूं कि मुफ्ती मोहम्मद सईद को कट्टरपंथी, पाकपरस्त या अलगाववादी नहीं माना जाना चाहिए, यहां तक कि कश्मीरी अलगाववादी व कट्टरपंथी तक उनको अपना साथी नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व के लिए खतरनाक मानते हैं.
होली पर आप सब लोगों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं. इस अवसर पर पढ़िये सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता- अभी न होगा मेरा अंत.
अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी ही तो आया है, मेरे वन में मृदुल वसंत,
अभी न होगा मेरा अंत.
हरे-हरे ये पात, डालियां, कलियां कोमल गात!
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर, फेरूंगा निद्रित कलियों पर,
जगा एक प्रत्यूष मनोहर,
पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूंगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको,
है मेरे वे जहां अनंत, अभी न होगा मेरा अंत.
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहां मृत्यु?
है जीवन ही जीवन,
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन,
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बंधु, दिगंत, अभी न होगा मेरा अंत.