आज भी मानसिक गुलाम हैं हम
* खास पत्र ।। संजय मेहता ।। (बरही, हजारीबाग) लगभग पूरी दुनिया ने सदियों से भारत पर आक्रमण किये हैं, लेकिन लंबा शासन करने में मुख्यत: मुगल और ब्रिटिश लोगों को ही सफलता मिली है. भारत जब गुलाम नहीं था तब यहां मुगल और ब्रिटिश आये, क्योंकि उस समय देश में किसी न किसी जगह […]
* खास पत्र
।। संजय मेहता ।।
(बरही, हजारीबाग)
लगभग पूरी दुनिया ने सदियों से भारत पर आक्रमण किये हैं, लेकिन लंबा शासन करने में मुख्यत: मुगल और ब्रिटिश लोगों को ही सफलता मिली है. भारत जब गुलाम नहीं था तब यहां मुगल और ब्रिटिश आये, क्योंकि उस समय देश में किसी न किसी जगह क्रांति चलती ही रहती थी और यहां के लोगों ने प्राण गंवाये पर कभी मन से दासता स्वीकार नहीं की. लेकिन आज देश के एक बड़े वर्ग ने पराधीनता स्वीकार ली है और अब उनका उद्देश्य पूरे राष्ट्र को पराधीन बनाने का है और इस कार्य को बड़ी कुशलता के साथ वे क्रियान्वित कर रहे हैं.
उन्होंने चारों तरफ ऐसा जाल बिछाया है कि किसी भी भारतवासी में आत्मसम्मान या आत्मविश्वास जाग्रत न हो पाये और वह अपने को हीन भावना से ही ग्रस्त समझे. वर्तमान में पूरे विश्व में यह अकेला देश ऐसा है जहां के लोगों को अपनी भाषा में लिखते-बोलते-पढ़ते शर्म आती है.
जो अमेरिका और ब्रिटेन की नौकरी करना पसंद करते हैं. यहां का उद्योगपति, नौकरीपेशा या थोड़ा सा भी संपन्न व्यक्ति अंगरेजी बोल कर बड़ा गौरवान्वित महसूस करता है. यहां किसी भाषा का विरोध नहीं हो रहा, लेकिन हमें अंगरेजी को एक साधारण भाषा से ज्यादा कुछ नहीं समझना चाहिए, जैसा कि चीन, जापान, रूस, फ्रांस, स्पेन आदि के लोग समझते हैं.
यह प्रत्यक्ष भी है कि भाषा, ज्ञान की पर्यायवाची नहीं होती और कोई राष्ट्र अपनी भाषा में ही तरक्की कर सकता है, वरना उसकी तरक्की कुछ लोगों तक ही सीमित रहती है. जापान, अमेरिका, चीन इसके उदाहरण हैं कि अपने स्वाभिमान और आत्मविश्वास से ही तरक्की होती है न कि किसी की नकल से. आज हमारा देश आजाद तो है, पर मानसिक और भाषायी तौर पर हम आज भी गुलाम हैं. आज एक और स्वतंत्रता आंदोलन की जरूरत है.