देश और लोक को छलते नेता

* खास पत्र ।। लक्ष्मी रंजना ।। (हिनू, रांची) 15 अगस्त को देश की आजादी की 66वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में नेतागण इसे उत्सव का रूप देते हुए गली–मोहल्लों में दमकते कपड़े व इत्र से सराबोर हो सुरक्षा के पुख्ता इंतजामों के बीच वीर जवानों के बलिदानों पर कसीदे पढ़ते एक बार फिर नजर आयेंगे. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 15, 2013 3:39 AM

* खास पत्र

।। लक्ष्मी रंजना ।।

(हिनू, रांची)

15 अगस्त को देश की आजादी की 66वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में नेतागण इसे उत्सव का रूप देते हुए गलीमोहल्लों में दमकते कपड़े इत्र से सराबोर हो सुरक्षा के पुख्ता इंतजामों के बीच वीर जवानों के बलिदानों पर कसीदे पढ़ते एक बार फिर नजर आयेंगे. किंतु वास्तव में देश की रक्षा में शहादत पाये जवानों के प्रति इनकी जुबान यह कहते नहीं कांपती कि पुलिस और सेना में लोगों की भरती मरने के लिए ही होती है.

अहम सवाल यह है कि भला लोग नेता क्यों बनते हैं? देश के सपूत का चोला ओढ़े और नागरिकों के सच्चे सेवक होने का बीन बजानेवाले ये श्वेत वस्त्रधारी अंदर से इतने मैले होते जा रहे हैं कि स्वयं छप्पन भोग का लुत्फ उठाते हैं और गरीबों को एक से पांच रुपये में भर पेट भोजन खिलाने का दावा करते हैं.

ये अपने बचाव में और दूसरी पार्टियों पर लांछन लगाने में इतने व्यस्त रहते हैं कि अपना असली काम भी भूल जाते हैं. लोगों के आगे कर्मठता का ढोंग रचते अपनी मतलबपरस्त नीतियों से देश के सेवकों का हाथ बांध कर उनकी सच्चाई और ईमानदारी का इनाम उन्हें इस्तीफे चाजर्शीट के रूप में देते हैं.

भारत माता के सच्चे सेवक कहलाने की चाहत रखनेवाले ये नेता देश को छोटेछोटे राज्यों में बांट कर उनका दोहन करने में बिलकुल भी नहीं शर्माते. आखिर उन्हें इस माटी से क्या लगाव, उन्होंने अपना आशियाना तो पहले ही विदेशों में सुरक्षित कर रखा है.

फिर चाहे पड़ोसी देश दोस्ती की आड़ में हमारा सीना छलनी करता रहे, या फिर देश कुकुरमुत्ते की तरह फैलते उग्रवाद से त्रस्त हो, इन्हें फर्क नहीं पड़ता. इन नेताओं की छत्रछाया में बहूबेटियों की आबरू देश की राजधानी तक में तारतार हो जाये. कानूनव्यवस्था की नींव हिल जाये, तो जिंदगी को मौत बनते देर नहीं लगेगी.

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