कितना पूरा हुआ आजादी का वादा!

* 67वां स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त. भारत की आजादी का दिन. जग–जीवन में राष्ट्रध्वज को ऊंचा रखने, राष्ट्रगान को सतत गुंजायमान बनाने और देश को एक व अखंड रखने के लिए संकल्पबद्ध होने का दिन. साथ ही अपने संकल्पों की शिला पर खड़े होकर स्वयं से यह पूछने का दिन कि ‘हम कितने आजाद हैं?’ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 15, 2013 3:40 AM

* 67वां स्वतंत्रता दिवस

15 अगस्त. भारत की आजादी का दिन. जगजीवन में राष्ट्रध्वज को ऊंचा रखने, राष्ट्रगान को सतत गुंजायमान बनाने और देश को एक अखंड रखने के लिए संकल्पबद्ध होने का दिन. साथ ही अपने संकल्पों की शिला पर खड़े होकर स्वयं से यह पूछने का दिन कि हम कितने आजाद हैं?’ 15 अगस्त एक राष्ट्र के रूप में स्वयं से किये हुए वादों को फिर से दोहराने का दिन है. साथ ही उन वादों की कसौटी पर खुद की परीक्षा का दिन भी, ताकि पता चले कि आजादी की राह पर चलते हुए हमारे कदम कहां तक संतुलित रहे.

हकीकत यह है कि आजादी के बाद गुजरते हर दशक के साथ एक राष्ट्र के रूप में खुद से किये वादों को याद कर पाना कठिन होता गया, उन वादों की कसौटी पर खुद की राहरवैये की जांच करने की बात तो अब हम मानो भुला ही बैठे हैं! आजादी की सुबह में कदम रखने से पहले इस देश ने स्वयं से वादा किया था, हरेक देशवासी की आंख से आंसू पोंछने का! वादा धर्मजाति के भेदभावों से परे एक नया आदमी गढ़ने का भी था, वह नया आदमी जो सबको बराबरी की आंख से पहचाने, समझे कि देश के जीवन में जितना महत्व मेरा है, उतना ही किसी और का भी.

आज के दिन खुद से सवाल पूछें कि देश की राजनीति ने हरेक देशवासी की आंख से आंसू पोंछने का अपना वादा कितना पूरा किया? पूछें कि क्या बीते 66 सालों में समाज के भीतर ऐसी कोई प्रेरणा दिखी जिससे लगे कि हम बराबरी की आंख से हरेक देशवासी को पहचानने वाला नया आदमी गढ़ने की दिशा में आगे बढ़ पाये हैं? ये सवाल कठिन हैं, क्योंकि इन्हें पूछना स्वयं के आचरण की परीक्षा की मांग करता है.

देश की संसद का व्यवहार जिस सीमा तक देश के सार्वजनिक जनजीवन का आईना है, उस सीमा तक उसके आचरण से यह भरोसा नहीं जागता कि हम आजादी के वादे की दिशा में सधे और सतत गतिशील कदमों से आगे बढ़ पाये हैं. मिसाल के लिए अभी संसद बैठी है तो बिल पेश हुआ है जनता के हाथ मजबूत करनेवाले सूचना के अधिकार कानून में सेंधमारी का, ताकि राजनीतिक दलों से जनता कोई सवाल पूछ सके.

एक बिल और आया है लोगों को खाद्यसुरक्षा देने का, पर सरकार मान रही है उसके पास सबको भरपेट भोजन देने के लायक इंतजाम नहीं है, इसलिए करीब एक तिहाई आबादी को इस कानून के दायरे से बाहर रखने का इरादा है. पारस्परिक विश्वासहीनता के माहौल में भ्रष्टाचार देश के जीवन को घुन की तरह चाट रहा है. ऐसे में 15 अगस्त का दिन संसद से लेकर सड़क तक के जीवन को इस राष्ट्र के प्रति जिम्मेवार बनाने का है.

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