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तेवर तो ठीक हैं, पर काम भी दिखे

* अफसरों को नसीहत झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के आइएएस अधिकारियों को नसीहत देते हुए कहा है कि पैसे का अभाव नहीं है, जो सहयोग चाहिए, सरकार देगी, वे काम करके दिखाएं. उन्हें काम करने की पूरी स्वतंत्रता है. नयी सरकार के मुखिया का तेवर सराहनीय है. हेमंत युवा हैं, उन्होंने अपने […]

* अफसरों को नसीहत

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के आइएएस अधिकारियों को नसीहत देते हुए कहा है कि पैसे का अभाव नहीं है, जो सहयोग चाहिए, सरकार देगी, वे काम करके दिखाएं. उन्हें काम करने की पूरी स्वतंत्रता है.

नयी सरकार के मुखिया का तेवर सराहनीय है. हेमंत युवा हैं, उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर में झारखंड में कई सरकारों को बनते और गिरते देखा है. कई मुख्यमंत्रियों की कार्यशैली देखी है. इससे निश्चित ही उन्होंने काफी कुछ सीखा है. उनका मकसद साफ है, सरकार के पास समय सीमित है, पर काम बेहिसाब. मतलब यह कि जीतोड़ मेहनत करनी होगी, प्रतिबद्धता केवल विचार में नहीं, कार्यशैली में भी लानी होगी. इसलिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन चाहते हैं कि नौकरशाही नियंत्रण में रहे.

बात सही है, जब तक आइएएस अधिकारियों का सहयोग नहीं मिलेगा, सरकार के लिए कुछ भी कर पाना मुश्किल है. यह टेक्नोलॉजी का युग है, इसीलिए हेमंत ने अधिकारियों से कहा है कि वे टेक्नोफ्रेंडली बनें. विकास योजनाओं को गति प्रदान करने और इसका लाभ जनता तक पहुंचाने के लिए टेक्नोलॉजी की मदद लें.

यह अच्छी बात है कि सरकार को बिचौलियों, दलालों आदि की करतूतों के बारे में भलीभांति पता है. यह भी पता है कि किस प्रकार ये बिचौलिये सरकारी योजनाओं का लाभ खुद हजम कर जाते हैं और जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचने देते. पर सरकार के समक्ष चुनौतियां यह है कि वह आखिर किस प्रकार इस पर लगाम लगाती है. यानी, दर्द तो मालूम है, पर दवा भी तो मिले.

दरअसल, इन बिचौलियों और दलालों की वजह से ही सरकारी योजनाओं में घुन लग जाता है. इन योजनाओं का लाभ मिलना तो दूर, आम आदमी को इनकी भनक तक नहीं लग पाती. वृद्धावस्था पेंशन योजना, विधवा पेंशन योजना, इंदिरा आवास योजना, मिडडे मील, छात्रवृत्ति योजना आदि में जिस प्रकार की गड़बड़ियां और अनियमितताएं उजागर हो रही हैं, वह जगजाहिर है.

यह अच्छी बात है कि सरकार खुद यह सब स्वीकार कर रही है, पर जनता की उम्मीदें इससे और भी बढेंगी. देखना यह होगा कि सरकार खुद ही जो चुनौतियां तय कर रही है, उससे कैसे निपटती है. राज्य गठन के 13 सालों बाद भी अब तक जनता को सिर्फ हताशा और नाउम्मीदी का तोहफा ही मिलता रहा है.

प्रशंसा करनी होगी झारखंड की जनता की, जिसकी जीवटता अब भी बरकरार है. पर सरकार को सावधान रहने की जरूरत है कि जीवटता और जिजीविषा की डोर छूटने पाये. लोगों की उम्मीदें पूरी हों और सपने जीवित रहें.

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