17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नारी की मुक्ति से डरते हैं पुरुष

ईश्वर की श्रेष्ठतम रचनाओं में नारी शामिल है. हम सभी जानते हैं कि मनुष्य के विकास और उसकी प्रगति में नारी की भूमिका अहम होती है. वह कभी मां तो कभी बहन, कभी भाभी तो कभी बेटी, कभी पत्नी तो कभी मित्र बन कर हमारे जीवन को संवारती है. महिलाएं बराबर की हकदार हैं. समाज […]

ईश्वर की श्रेष्ठतम रचनाओं में नारी शामिल है. हम सभी जानते हैं कि मनुष्य के विकास और उसकी प्रगति में नारी की भूमिका अहम होती है. वह कभी मां तो कभी बहन, कभी भाभी तो कभी बेटी, कभी पत्नी तो कभी मित्र बन कर हमारे जीवन को संवारती है. महिलाएं बराबर की हकदार हैं.

समाज की संरचना में स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं. हमारे बड़े-बजुर्ग हमेशा कहते रहे हैं कि जहां नारियों का सम्मान किया जाता है, वहां देवता का निवास होता है.

अंगरेजी आचार-विचार में भी ‘लेडीज फस्र्ट’ जैसे वाक्य सुनने को मिलते हैं. लेकिन हमारे मन में एक सवाल पैदा होता है. वह यह कि देश-दुनिया के विभिन्न समाजों में महिलाओं को इतना अधिक मान-सम्मान दिये जाने की बात के बावजूद आखिर हमने नारियों को बंधन में जकड़ कर क्यों रखा है? जब बात ममता, करुणा, प्रेम और दया की आती है, तो उसमें सबसे पहले महिलाओं का नाम आता है.

वे सर्वशक्तिमान देवीस्वरूपा कही जाती हैं, लेकिन सबसे अधिक भेदभाव भी उन्हीं के साथ होता है. यह शायद इसलिए क्योंकि पुरुषों को इस बात का भय रहता है कि अगर नारी को उनके बराबर का हक, शिक्षा और विकास करने की तमाम सुविधाएं मिल जायेंगी, तो उनका एकाधिकार समाप्त हो जायेगा. वर्षो से फैलाया गया आडंबर पल भर में चूर-चूर हो जायेगा.

पुरुष ने नारी से डर कर उसे सांस्कृतिक, शैक्षणिक और पारिवारिक बंधनों में जकड़ रखा है. आज जरूरत इस बात की नहीं है कि उन्हें बंधनों में जकड़ कर रखा जाये. उन्मुक्त वातावरण में उनका विकास ही हमारी प्रगति का मार्ग खोल सकता है. हमें इस मानिसकता को बदलना होगा. नारी के विकास में ही देश, समाज और हम सबका विकास हो सकता है.

दिव्यांशु गुप्ता, जमशेदपुर

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें