21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गरीबों की उपेक्षा करता बजट

पुनर्गठन के समय आंध्र प्रदेश को दी गयी वित्तीय सहायता के बराबर बिहार और पश्चिम बंगाल को भी मदद देने का निर्णय स्वागतयोग्य है. यह झारखंड राज्य के गठन के बाद बिहार से 2005 में ही वादा किया गया था, जिसे केंद्र सरकार ने अब तक लंबित रखा था. यद्यपि सहायता में वृद्धि स्वागतयोग्य है, […]

पुनर्गठन के समय आंध्र प्रदेश को दी गयी वित्तीय सहायता के बराबर बिहार और पश्चिम बंगाल को भी मदद देने का निर्णय स्वागतयोग्य है. यह झारखंड राज्य के गठन के बाद बिहार से 2005 में ही वादा किया गया था, जिसे केंद्र सरकार ने अब तक लंबित रखा था. यद्यपि सहायता में वृद्धि स्वागतयोग्य है, किंतु यह बिहार को विशेष राज्य घोषित करने की लंबे समय से की जा रही तर्कसंगत मांग का विकल्प नहीं हो सकती.
देश का बजट बनाना एक जटिल कार्य है. संसाधनों की कमी और सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिए उनका अपर्याप्त होने की स्थिति में विभिन्न विरोधी हितों को समाहित करना पड़ता है. भारत सामाजिक विपरीतताओं का समूह है, जहां अत्यधिक अमीर से लेकर गरीब रहते हैं. एक ओर बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो दो वक्त के खाने के लिए भी मोहताज हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें यह तक पता नहीं है कि वे अपने अतिशय धन का क्या करें. देश का संघीय बजट इन दो ध्रुवों के बीच संतुलन करने का कार्य होता है.
अरुण जेटली ने अपने हिसाब से ऐसी परिस्थितियों में बेहतरीन काम किया है. उनके उद्देश्य को गलत नहीं कहा जा सकता है, किंतु उनके बजट के परिणामों का विश्लेषण अवश्य किया जा सकता है. मेरे विचार से, यह बजट पूंजीपतियों के लिए है और गरीबों के विरुद्ध है. संभवत: जेटली का यह मानना है कि यदि कॉरपोरेट वर्ग मजबूत होता है, तो अर्थव्यवस्था बढ़ेगी और इसका लाभ समाज के सभी वर्गो तक पहुंच जायेगा. कॉरपोरेट कर को 30 प्रतिशत से घटा कर 25 प्रतिशत करने का यही एक कारण हो सकता है. परंतु इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अत्यधिक अमीरों को पहुंचनेवाला यह लाभ उन्हें और अधिक निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगा, जिससे वास्तव में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी. उनका यह तर्क कि भारत में कॉरपोरेट कर अन्य दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों की तुलना में कहीं अधिक है, सही है. लेकिन, प्रत्येक देश अपनी परिस्थितयों के अनुसार करों का निर्धारण करता है. दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश पहले ही आर्थिक विकास के बहुत उच्च स्तर को प्राप्त कर चुके हैं. उनके यहां गरीबों, अशिक्षितों और कुपोषित लोगों की संख्या बहुत कम है. इसीलिए, करों से संबंधित उनकी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को हमारी स्थितियों पर यंत्रवत लागू नहीं किया जा सकता.
इसके विपरीत यह बजट ‘आम आदमी’ के दुखों के प्रति स्पष्ट रूप से उदासीन है. हमारी जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा अब भी कृषि क्षेत्र से जुड़ा हुआ है. यह वह क्षेत्र भी है जहां अभी भी गरीबों और भूखों की सबसे बड़ी संख्या है. उनकी दयनीय स्थिति तब तक नहीं सुधर सकती, जब तक कृषि उत्पादन में भारी बढ़ोतरी नहीं होती. वर्तमान में कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर मात्र दो से तीन प्रतिशत ही है. हमारे देश में विश्व की उपजाऊ भूमि का सबसे बड़ा हिस्सा है, किंतु हमारा खाद्यान्न उत्पादन बहुत कम है. चीन में प्रति हेक्टेयर चावल का उत्पादन हमारे देश की तुलना में दोगुना है. वियतनाम और इंडोनेशिया में यह हमारी तुलना में 50 प्रतिशत अधिक है. पंजाब जैसे सफल कृषि राज्य में भी चावल का औसत उत्पादन 3.8 टन प्रति हेक्टेयर है, जबकि वैश्विक चावल उत्पादन का औसत 4.3 टन है. अत: कृषि में तकनीक और आधारभूत ढांचे में बड़ी मात्र में पूंजी निवेश की आवश्यकता है.
बजट में उत्तम बीज, खाद और कीटनाशकों, संवर्धित और व्यापक सिंचाई तकनीकों, विश्वसनीय ऋण योजनाओं और प्रभावी सेटेलाइट मैपिंग पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था, भंडारण सुविधाओं के विस्तार, कोल्ड स्टोरेज श्रृंखला के विकास और परिवहन-तंत्र को विकसित करने के लिए धन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है. केवल कृषि ऋण के लिए उपलब्ध धन में वृद्धि करना समस्या का पूरा हल नहीं है. अधिकतर किसानों के पास ऋण लेने के लिए अनिवार्य आर्थिक साधन नहीं हैं और वे पहले से ही ऋणों के बोझ तले दबे हैं. इस वर्ष दर्जनों किसान कर्जे के जाल में फंसे होने के कारण आत्महत्याएं कर चुके हैं. न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन लागत से बहुत कम है. सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत से 50 प्रतिशत तक बढ़ाने के अपने चुनावी वादे से पहले ही मुकर चुकी है और किसान यूरिया की एक बोरी तक प्राप्त करने के लिए धक्के खा रहे हैं. ऐसी चिंताजनक स्थिति में, बजट में कृषि और सिंचाई के प्रति उपेक्षा अक्षम्य है, क्योंकि यह बजट अमीरों के हितों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए गरीबों की आवश्यकताओं को जान-बूझ कर अनदेखा करता है.
सेवा करों में वृद्धि का निर्णय भी चिंता का विषय है. 12.3 प्रतिशत की दर से सेवा कर पहले ही उच्च स्तर पर थे, वित्त मंत्री ने इसे बढ़ा कर 14 प्रतिशत कर दिया है. निश्चित ही उनका यह कदम महंगाई में चौतरफा बढ़ोतरी करेगा. मध्यम वर्ग पहले ही अपनी आजीविका सुचारू रूप से चलाने में कठिनाई का अनुभव कर रहा है. अधिक महंगाई उनके ऊपर और अधिक आर्थिक बोझ डाल देगी, क्योंकि उन्हें कोई कर रियायत भी नहीं दी गयी है. मध्य वर्ग की उपेक्षा का वित्त मंत्री का तर्क यह है कि राज्यों को आवंटित केंद्रीय राजस्व में वृद्धि की वित्त आयोग की सिफारिश के कारण उनके पास वित्तीय गुंजाइश कम है. हालांकि, यदि उनके पास गुंजाइश सीमित थी, तो उन्होंने अमीर पूंजीपतियों से धन हासिल करने की कोशिश क्यों नहीं की, जो बिना किसी परेशानी के अधिक करों के भुगतान की स्थिति में हैं.
पुनर्गठन के समय आंध्र प्रदेश को दी गयी वित्तीय सहायता के बराबर बिहार और बंगाल को भी मदद देने का निर्णय स्वागतयोग्य है. यह झारखंड राज्य के गठन के बाद बिहार से 2005 में ही वादा किया गया था, जिसे केंद्र सरकार ने अभी तक लंबित रखा था. यद्यपि सहायता में वृद्धि स्वागतयोग्य है, किंतु यह बिहार को विशेष राज्य घोषित करने की लंबे समय से की जा रही तर्कसंगत मांग का विकल्प नहीं हो सकती. राज्यों, विशेषकर अल्पविकसित राज्यों, के हित से जुड़े अन्य कई मामलों को भी नजरअंदाज कर दिया गया है. मिड-डे मील योजना में केंद्र के वित्तीय योगदान को घटा कर 25 प्रतिशत कर दिया गया है. सर्व शिक्षा अभियान के आवंटन में भी कमी की गयी है.
वास्तव में यह चिंता का विषय है कि बजट कल्याणकारी योजनाओं के आवंटन में जान-बूझ कर कटौती करने की नीति का अनुसरण करता प्रतीत हो रहा है. समन्वित बाल विकास योजना में 50 प्रतिशत की भारी कमी की गयी है; प्राथमिक शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को दी जानेवाली वित्तीय सहायता में 21 प्रतिशत और राष्ट्रीय जीविका मिशन के बजट में 12 प्रतिशत की कटौती हुई है. फिर, मैन्युफैक्चरिंग में वृद्धि की कोई स्पष्ट योजना भी प्रस्तुत नहीं की गयी है. विश्व के सबसे युवा देशों में से एक होने के बावजूद रोजगार निर्माण के प्रति भारी उपेक्षा दिखायी गयी है.
राष्ट्र एक समन्वित इकाई होता है. जो सफल क्षेत्र हैं, वे अपने लिए पृथक जनतंत्र का निर्माण नहीं कर सकते. गरीब और वंचित लोगों का परित्याग नहीं किया जा सकता. वित्त मंत्री को यह ध्यान में रखना होगा कि बिना सुदृढ़ नींव या भूतल इमारत के प्रथम तल का निर्माण नहीं किया जा सकता. ऐसा प्रतीत होता है कि ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे का कसम उठानेवाली सरकार का यह बजट केवल ‘कुछ के विकास’ पर ध्यान दे रहा है. (अनुवाद : विजय कुमार)
पवन के वर्मा
सांसद एवं पूर्व प्रशासक
pavankvarma1953@gmail.com

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें