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यह देशभक्ति की राजनीति है या..

12 साल पहले मुफ्ती के साथ कांग्रेस थी और तब वह कोई सवाल नहीं उठा रही थी. सवाल उठानेवाली पार्टी थी भाजपा. आज वही मुद्दा है, लेकिन मुफ्ती के साथ भाजपा है और वह इस मुद्दे पर बच रही है. आज सवाल कांग्रेस उठा रही है.. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने सत्ता में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 11, 2015 7:05 AM
12 साल पहले मुफ्ती के साथ कांग्रेस थी और तब वह कोई सवाल नहीं उठा रही थी. सवाल उठानेवाली पार्टी थी भाजपा. आज वही मुद्दा है, लेकिन मुफ्ती के साथ भाजपा है और वह इस मुद्दे पर बच रही है. आज सवाल कांग्रेस उठा रही है..
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने सत्ता में लौटने के तुरंत बाद अपनी पुरानी ‘हीलिंग टच पॉलिसी’ पर फिर से काम शुरू कर दिया है. 2002 में जब वह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने अपनी यह पॉलिसी लागू की थी. उस समय जम्मू-कश्मीर में वे जिस सरकार की अगुवाई कर रहे थे, वह कांग्रेस व पीडीपी के गठबंधन की सरकार थी. तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी नीत एनडीए सरकार थी. मुफ्ती और उनकी पार्टी की ‘हीलिंग टच पॉलिसी’ किसी से छिपी नहीं है. महबूबा मुफ्ती अपने चुनाव अभियानों में शुरुआत से ही इस पॉलिसी पर वोट मांगती रही हैं. इसलिए जाहिर है कि भाजपा ने जब पीडीपी के साथ गठबंधन का फैसला किया होगा, तो पीडीपी के देशहित संबंधी नजरिये को नजरअंदाज तो नहीं ही किया होगा. मुङो याद है कि मुफ्ती सईद गुजरात में 2002 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के समर्थन में प्रचार करने गये थे. तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने ‘हीलिंग टच पॉलिसी’ के चलते उन्हें पाक परस्त आतंकियों का रहनुमा करार दिया था. अब उसी व्यक्ति ने मुफ्ती के साथ सरकार बनाने के लिए न सिर्फ गठबंधन किया, बल्कि उनको ताकत देने के लिए शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री के तौर पर शिरकत भी की.
‘हीलिंग टच पॉलिसी’ है क्या? 2002 के विधानसभा चुनाव के दौरान महबूबा मुफ्ती ने इसे कश्मीर के लोगों के बीच रखा था. मुङो भी उस समय बिल्कुल वही लगा, जैसा एक गैर-कश्मीरी हिंदुस्तानी को लगा, कि मुफ्ती की पीडीपी आतंकियों व अलगाववादियों के साथ खड़ी है, उनकी मदद से चुनाव जीतना चाहती है और चुनाव जीत कर अलगाववादियों के लिए काम करेगी. महबूबा उस वक्त पहलगाम से चुनाव लड़ रही थीं. पहलगाम आतंकवादियों का गढ़ माना जाता था. खबरें आती थीं कि महबूबा बिना किसी डर के देर रात (पहाड़ी इलाकों में 8-9 बजे को देर रात कहा जाता है) तक अपने क्षेत्र के सुदूर गांवों में प्रचार करती हैं, जबकि दूसरी पार्टियों के नेता ऐसा करने में डरते थे. नेशनल कॉन्फ्रेंस हो या कांग्रेस, किसी भी पार्टी के नेता ऐसे क्षेत्रों में अपने प्रचार के लिए दिन में भी जाने से बचते रहते थे. महबूबा, हीलिंग टच पॉलिसी और पीडीपी को लेकर मेरी धारणा ऐसी जानकारियों की वजह से और पुख्ता होती जा रही थी. मुङो लगा कि इस पर सीधे महबूबा से ही बात करनी चाहिए. मैं चुनाव प्रचार के दौरान ही महबूबा के चुनाव क्षेत्र पहलगाम उनसे मिलने गया. महबूबा प्रचार के लिए निकली हुई थीं और तय समय पर आ नहीं पायीं. पता चला कि वह देर रात तक लौटेंगी. हमने उनकी पार्टी के लोगों से कहा कि महबूबा जिस गांव में गयी हैं, हम भी वहीं जाकर मिल लेते हैं. जवाब मिला कि बहुत खतरनाक इलाका है. आप लोग यहीं इंतजार करें, वह आठ-नौ बजे तक आ जायेंगी. उस समय सात बजे थे. हम अपने होटल लौट गये. करीब नौ बजे संदेश मिला कि महबूबा आ गयी हैं. हम उनके कार्यालय सह-आवास पर पहुंचे. महबूबा से यह मेरी पहली मुलाकात थी. दुआ-सलाम होने के बाद जब थोड़ा सहज हुए, तो मैंने सवाल पूछा कि क्या अलगाववादियों व आतंकवादियों का समर्थन आपको हासिल है? महबूबा ने प्रत्युत्तर में पूछा कि आप यह कैसे कह सकते हैं? मैंने हीलिंग टच पॉलिसी का जिक्र किया और कहा कि जिन इलाकों में बाकी पार्टियों के नेता दिन में भी जाने से डरते हैं, वहां आप देर रात तक प्रचार में व्यस्त रहती हैं. इसका क्या मतलब निकाला जाये? वह बोलीं, आपके पास टाइम है. मैंने कहा, हां. महबूबा ने कहा कि लोग तो मुफ्ती साहब पर तमाम आरोप लगाते हैं. कोई मुझसे पूछे, मुफ्ती साहब क्या हैं. कोई अलगाववादी नेताओं से पूछे. फिर उन्होंने बेटी रुबैया के अपहरण की कहानी सुनायी और अपने वैवाहिक जीवन के बारे में बताया. (इसकी चर्चा फिर कभी करूंगा).
फिर वह हीलिंग टच पर आयीं और बोलीं कि मैं दो परिवारों का किस्सा सुनाती हूं. ये दोनों परिवार ऐसे थे, जिनसे एक-एक नौजवान आतंकी गुटों में शामिल हो गये और सुरक्षा बलों के साथ एनकाउंटर में मारे गये. परिवारों का किस्सा वाकई बहुत करुण था. मां-बाप पाई-पाई को मोहताज थे. घर में जवान होती लड़कियों पर तमाम लोगों की नजरें लगी रहतीं. आतंकियों, असामाजिक तत्वों से लेकर उन लोगों की भी, जिन पर उनकी सुरक्षा का जिम्मा था. थोड़ी देर की चुप्पी के बाद महबूबा बोलीं, इन परिवारों की देख-रेख कौन करेगा? क्या सरकार की जिम्मेवारी नहीं होनी चाहिए? ये तो हिंदुस्तानी हैं, कश्मीरी हैं. पाकिस्तान से नहीं आये. इनके बच्चे इनसे पूछ कर आतंकी गुटों में नहीं शामिल हुए थे. ये तो बेचारे तब जान पाये, जब उनकी लाश आयी. ऐसे लोगों को सरकार मदद करेगी तो भरोसा बढ़ेगा, नहीं तो भरोसा टूटता ही जायेगा. इसलिए हमें मरहम लगाना ही पड़ेगा. (महबूबा अपने भाषणों में कहती थीं, कश्मीरी आतंकियों के मारे जाने पर उनके घर वालों को मुआवजा मिलना चाहिए, जैसे शहीद पुलिसकर्मी के घरवालों को मिलता है. इसे भाजपा ने आतंकियों को मुआवजे के रूप में प्रचारित किया था.)
सरकार बनने के बाद मुफ्ती ने ‘हीलिंग टच’ के तहत उन लोगों को रिहा करने का ऐलान किया, जो चार साल से जेल में हैं, लेकिन उन पर कोई आरोप पत्र दाखिल नहीं हुआ. पब्लिक सिक्यूरिटी एक्ट के तहत कश्मीर में उस समय हजारों लोग चार साल से ज्यादा समय से जेलों में बंद थे. मुफ्ती का तर्क था कि हो सकता है कि इसमें कुछ वैसे लोग भी छूट जायें जो वाकई आतंकी गतिविधियों में लिप्त थे, लेकिन बाकी लोगों का क्या कुसूर जिन्हें आतंकी बता कर पुलिस ने जेलों में ठूंस दिया. जो निदरेष चार साल जेल में बंद रहेगा, वह क्या कभी हम पर भरोसा कर सकेगा? गलती प्रशासन की है, जो आतंकी गतिविधियों में संलिप्त लोगों पर चार-चार साल चार्जशीट नहीं दाखिल कर पा रहा है. निदरेष जेल में बंद रहेंगे, तो अलगाववाद बढ़ता ही रहेगा. यह तर्क सुनने के बाद मेरा नजरिया बदला. मुङो शब्बीर शाह की बात याद आयी. शाह ने 2002 के चुनाव के दौरान कहा था कि उनकी तहरीक के लिए मुफ्ती का चुनाव जीतना बहुत खतरनाक है, क्योंकि मुफ्ती आस्था के साथ भारतीय हैं.
सोचने की बात यह है कि 12 साल पहले मुफ्ती के साथ कांग्रेस थी और तब वह कोई सवाल नहीं उठा रही थी. सवाल उठानेवाली पार्टी थी भाजपा. आज वही मुद्दा है, लेकिन मुफ्ती के साथ भाजपा है और वह इस मुद्दे पर बच रही है. आज सवाल कांग्रेस उठा रही है. जब भाजपा-पीडीपी सरकार बन रही थी, तब तमाम क्वार्टर्स से कहा जा रहा था कि इन दोनों के संग आने से दोनों के मध्यमार्ग की तरफ बढ़ने की संभावना प्रबल हो जायेगी, लेकिन आज उनमें से कई लोग भाजपा को ललकार रहे हैं. क्या यह देशभक्ति की राजनीति है या देशभक्ति पर राजनीति?
राजेंद्र तिवारी
कॉरपोरेट एडिटर
प्रभात खबर
rajendra.tiwari@prabhatkhabar.in

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