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मिड-डे मील का गड़बड़झाला

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मिड– डे मील की सुविधा जब से देश भर के सरकारी स्कूलों में चलायी जा रही है, तब से अगर मोटे तौर पर देखें तो यह सुविधा न रह कर एक असुविधा बन गयी है. इससे तो अच्छा था कि पहले की ही तरह बच्चे भूखे रहें, क्योंकि इस धोखे […]

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मिडडे मील की सुविधा जब से देश भर के सरकारी स्कूलों में चलायी जा रही है, तब से अगर मोटे तौर पर देखें तो यह सुविधा रह कर एक असुविधा बन गयी है. इससे तो अच्छा था कि पहले की ही तरह बच्चे भूखे रहें, क्योंकि इस धोखे से मरने के बदले तो भूखे रहना ही बेहतर है.

जब से यह योजना चलायी जा रही है, कई बार ऐसी अफसोसनाक खबरें आती रहती हैं, जिनमें बच्चे मिडडे मील खाने से बच्चे बीमार हो गये. कई बच्चे तो यह मध्याह्न् भोजन खा कर काल के गाल में भी समा चुके हैं. देश के लिए इससे बड़े दुर्भाग्य की बात और क्या होगी कि उसके भविष्य के कर्णधार इस तरह मरते जा रहे हैं.

कई बार ऐसी खबरें भी आती हैं, कि मध्याह्न् भोजन में छिपकली मिली, तो कभी कॉकरोच. कभी कंकड़ तो कभी कीड़ा. और कभीकभी तो पूरा सड़ा हुआ चावल रहता है. अब बताइए कि सरकार इन बच्चों को इनसान समझती है या जानवर? अगर सरकार ऐसी योजनाएं बना रही है तो ठीक है, लेकिन योजनाओं के साथसाथ उनकी गुणवत्ता पर भी ध्यान दें. वरना ऐसी योजनाओं का कोई महत्व नहीं रह जायेगा.

।। पालुराम हेंब्रम ।।

(सलगाझारी)

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