क्या नेतागीरी का मतलब बयानबाजी है?
इस समय देश में ऐसे नेताओं की बाढ़–सी आ गयी है जो अपनी जबान पर काबू रखना नहीं जानते और न ही वे आम नागरिक के हितों का ख्याल रखते हैं. मौका मिला और बस बोल दिया. विगत दिनों जब केंद्र सरकार ने यह बताया कि गांव में 28 रुपये और शहरों में 33 रुपये […]
इस समय देश में ऐसे नेताओं की बाढ़–सी आ गयी है जो अपनी जबान पर काबू रखना नहीं जानते और न ही वे आम नागरिक के हितों का ख्याल रखते हैं. मौका मिला और बस बोल दिया.
विगत दिनों जब केंद्र सरकार ने यह बताया कि गांव में 28 रुपये और शहरों में 33 रुपये से अधिक रोज खर्च करनेवाले गरीब नहीं हैं, तो अपनी पार्टी की पीठ थपथपाते हुए राज बब्बर ने कहा कि मुंबई में 12 रुपये में खाना मिल जाता है, तो कुछ ने एक रुपये व पांच रुपये में खाना मिलने का दावा किया. भाजपा के भी नेताओं व सांसदों की स्थिति संतोषजनक नहीं है. प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर न जाने क्या–क्या बयान दिये जा रहे हैं.
पार्टी नरेंद्र मोदी को लेकर जीत का पताका फहराना चाहती है, तो शत्रुघ्न सिन्हा वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में सबसे अच्छा विकल्प बता रहे हैं. पर इन बयानों पर निर्णय जिसे करना है, वह बस मीडिया में देख–सुन रहा है. सबसे अचरज तब होता है, जब सांसद व नेता अपने ऐसे घटिया बयानों के बाद अपनी कोई गलती नहीं मानते और खुद को सही बताते हैं.
।। रितेश कु दुबे ।।
(कतरास)