यह कैसी न्याय व्यवस्था है ?

* खास पत्र ।। मधुमिता घोष ।। (सयाल, रामगढ़) आज मेरे दिमाग में बहुत सारे सवाल आ रहे हैं. मुझे लगता है कि ये सारे सवाल हर संवेदनशील इनसान के दिमाग में आते होंगे, आने भी चाहिए. सवाल दिल्ली के दामिनी कांड से संबंधित है. हमारे देश में इतने न्यायालय, कोर्ट–कचहरियां हैं. फिर भी दिल्ली […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 17, 2013 4:14 AM

* खास पत्र

।। मधुमिता घोष ।।

(सयाल, रामगढ़)

आज मेरे दिमाग में बहुत सारे सवाल रहे हैं. मुझे लगता है कि ये सारे सवाल हर संवेदनशील इनसान के दिमाग में आते होंगे, आने भी चाहिए. सवाल दिल्ली के दामिनी कांड से संबंधित है. हमारे देश में इतने न्यायालय, कोर्टकचहरियां हैं. फिर भी दिल्ली कांड के अभियुक्तों को अभी तक सजा क्यों नहीं मिल रही? क्यों दामिनी को इंसाफ नहीं मिल रहा है? क्यों न्याय के नाम पर प्रहसन चल रहा है? क्यों त्वरित न्याय प्रक्रिया पूरी नहीं हो रही है? और कितने सबूत और विचार बाकी हैं विचारपतियोंके लिए?

सिर्फ उस अभागिन का नाम दामिनीरख देने से, उसके नाम पर पुरस्कार घोषित करने से, उसके नाम से ट्रेन चालू करने से क्या उसके प्रति इंसाफ होता है? यह तो साधारण जनता की आंखों में धूल झोंकने का नाटक मात्र है. दामिनी नाम का एक बुखार चढ़ा हुआ था, उतर गया. बड़ेबड़े सेलिब्रिटी, तथाकथित समाजसेवक मोमबत्ती मार्च में निकले और यह मुद्दा मोमबत्ती की ही तरह बुझ गया.

सबने घड़ियाली आंसू बहा कर इस ज्वलंत मुद्दे को ठंडा कर दिया. कुछ तथाकथित शिक्षित लोगों ने तो हमारी बेटियों की आजादी को ही गलत ठहराया. नुकसान, लांछन, तकलीफ जिंदगी भर के लिए दामिनी के परिवार को ही मिली. यदि त्वरित फैसला होता तो, उनके घावों पर मरहम लगता.

रोजरोज अखबारों में दुष्कर्म की खबरें छपती हैं, जिन्हें लोग पढ़ते हैं और भूल जाते हैं. लेकिन जिन पर यह गुजरती है, उनकी जिंदगी मौत से भी बदतर होती है. अभियुक्तों को कठोरतम सजा से ऐसी घटनाओं में कमी आती. दामिनी जिस तकलीफ से गुजरी है, ऐसा अगर किसी रसूखदार परिवार के साथ होता, तो हालात कुछ और होते. ऐसे दोहरे मापदंड वाली न्याय प्रक्रिया में सुधार आना चाहिए.

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