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राष्ट्र बनाम राज्य का विकास मॉडल!

* मोदी का भाषण और बहस परंपरा का निर्वाह ही सही, लेकिन राष्ट्र के जीवन में 15 अगस्त एक ऐसा दिन हुआ करता था जब लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री बोलते थे और पूरा राष्ट्र सुनता था. बाद के कुछ दिनों तक राष्ट्र उस संबोधन के सत्य, अर्धसत्य और असत्य को समझने के लिए उसे […]

* मोदी का भाषण और बहस

परंपरा का निर्वाह ही सही, लेकिन राष्ट्र के जीवन में 15 अगस्त एक ऐसा दिन हुआ करता था जब लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री बोलते थे और पूरा राष्ट्र सुनता था. बाद के कुछ दिनों तक राष्ट्र उस संबोधन के सत्य, अर्धसत्य और असत्य को समझने के लिए उसे मन ही मन गुनता था.

इस बार यह परंपरा टूट गयी और लगा कि जो अब तक नहीं हुआ वह अब होगा! इसे चौबीसों घंटे चलनेवाले न्यूज चैनलों की मेहरबानी कहें या फिर खुद नरेंद्र मोदी की चुनाव प्रचार शैली की आक्रामकता, लालकिले के भाषण के बाद गुजरात में कच्छ के लालन कॉलेज में दिया गया नरेंद्र मोदी का भाषण भी चर्चा का विषय बना. टीवी के परदे पर चलनेवाली बहस अगले कुछ घंटों तक दोनों भाषणों की आपसी तुलना पर ही केंद्रित हो गयी.

बहस में जोर चूंकि सामनेवाले से मुकाबला जीतने पर होता है, इसलिए ज्यादातर बहसों में कुछ सच्चइयां सामने आने की जगह कोने में सहमी पड़ी रहती हैं. ऐसी ही एक सच्चई यह है कि दो भाषणों की तुलना कर हम भारत के संसदीय लोकतंत्र के स्वरूप के साथ एक तरह से खिलवाड़ कर रहे हैं.

भारत अमेरिका से अलग है, और राष्ट्रीयता का तर्क भी यही कहता है कि भारत को अमेरिका बनाने की कोशिशें नहीं होनी चाहिए. राष्ट्रपति बनने को आतुर दो उम्मीदवार टीवी पर अपने भाषणों में टकराएं, ऐसा अमेरिका में होता है और वहीं शोभता भी है. भारतीय लोकतंत्र में मुकाबला दो राजनेताओं के बीच नहीं, बल्कि कई राजनीतिक दलों के बीच होता है. दलीय मुकाबले के बीच से कोई ऐसा करिश्माई नेता उभर कर सामने आता है जो देश के बहुविध अंतर्विरोधों को एक साथ थाम कर देश को आगे ले जाने का हौसला दे सके.

नरेंद्र मोदी भारत के संसदीय लोकतंत्र को दो व्यक्तित्वों की टकराहट में बदलना चाहते हैंयह उनकी राजनीति की खासियत है, पर भारत के संसदीय लोकतंत्र की प्रकृति के सामने एक चुनौती भी. मिसाल के लिए जब वे केंद्र सरकार को गुजरात सरकार के सामने बौना साबित करने की कोशिश में कहते हैं कि कोई चाहे तो देश के विकास की तुलना गुजरात के विकास से करके देख ले, तो यह बात सिरे से भूल जाते हैं कि देश में विकास का मॉडल एक नहीं अनेक है.

एक मॉडल बिहार का भी है और देश के विकास का मॉडल बनने की दावेदारी उसकी भी हो सकती है. एक नहीं अनेक, और हर अनेकता का बराबर का सम्मान, भारतीय राजनीति का यही मिजाज है और इस मिजाज का सम्मान करनेवाला ही भारत का सर्वमान्य राजनेता हो सकता है, नरेंद्र मोदी की राजनीति को अभी यह समझना शेष है.

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