10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सियासत में इतना स्यापा क्यों है भाई ?

कुणाल देव प्रभात खबर, जमशेदपुर ‘सियासत को कोसनेवाले सियासत से दूर भी नहीं रह पाते’- यह बात हमारे मित्र बेबाक सिंह पर भी सटीक बैठती है. हर राजनीतिक चर्चा के बीच-बीच में मुंह बिचकाने वाले बेबाक सिंह को बीते कुछ दिनों की घटनाओं ने झकझोर दिया है. अगर, सबकुछ ठीक रहा तो वह राजनीतिक चर्चा […]

कुणाल देव

प्रभात खबर, जमशेदपुर

‘सियासत को कोसनेवाले सियासत से दूर भी नहीं रह पाते’- यह बात हमारे मित्र बेबाक सिंह पर भी सटीक बैठती है. हर राजनीतिक चर्चा के बीच-बीच में मुंह बिचकाने वाले बेबाक सिंह को बीते कुछ दिनों की घटनाओं ने झकझोर दिया है. अगर, सबकुछ ठीक रहा तो वह राजनीतिक चर्चा मात्र से भी संन्यास लेने की सोच रहे हैं.

हालांकि, वह जानते हैं कि यह थोड़ा ज्यादा कठिन काम है, इसलिए आजकल प्रयोग के दौर में हैं. चौपाल में बैठकी बिलानागा जारी है. हां, अंदाज थोड़ा जरूर बदल गया है. जब भी कोई राजनीतिक चर्चा करता है तो गांधीजी के दूसरे बंदर की तरह कान पर हाथ रख लेते हैं. कोशिश करते हैं कि प्रयोग का यह दौर सफल रहे, लेकिन जब मुद्दा ज्वलंत होता है और पेट में गुड़गुड़ाहट ज्यादा हो जाती है तो बोलना पड़ता है.

बिहार के सियासी ड्रामे ने सुशासन और घमसान शब्द को उनकी नजरों में समानार्थी बना दिया था, कि दिल्ली के आम आदमियों ने पूरा कादो-कादो कर दिया. सुना है कि ‘होली में दुश्मन भी गले मिल जाते हैं’. लेकिन, ये दोस्त रहे हैं, शायद इसीलिए गले मिलने में ज्यादा मुश्किल हो रही है. घर में घमसान की फुटकर खबरें इस प्रकार आती हैं, मानो ‘राज’ सीरीज की नयी कड़ी का मीडिया ट्रायल चल रहा हो. डबल ‘वाइ’ श्रेणी वाले आम आदमी के मुंह से इतनी मिठास झड़ती है कि शुगर इंडस्ट्री वाले मोहित हो गये हैं. वे सोच रहे हैं कि अगले पेराई सत्र में चीनी मिलों को शुरू करने से पहले हर गन्ना को इस आम आदमी से जुठवा दिया जाये, ताकि चीनी की यील्ड बढ़ जाये और देश भर की चीनी मिलों पर गहराता घाटे का संकट खत्म हो जाये. हालांकि, उनके मुंह की यह मिठास उनके अजीज दोस्त को इतनी सता रही है कि उनका शुगर लेवल निंयत्रण से बाहर हो गया है. नतीजा, उन्हें ‘घर में लगी आग’ को उसी स्थिति में छोड़कर प्रकृति के शरण में जाना पड़ा.

फूलवाले तो भइया पूरा अप्रैल फूल बन गये हैं. जम्मू-कश्मीर में पहली बार सत्ता का स्वाद चखने की जुगत में उन्होंने तमाम सिद्धांत और वादों को ताक पर रख दिया. बदनामी तो यहीं से शुरू हो गयी थी, लेकिन जब सहयोगी ने ऊटपटांग हरकतें शुरू कर दीं, तो बात छीछालेदर तक आ पहुंची. फिर तो, दिल और सोच से ‘राष्ट्रवादी’ पार्टी के सरताज सदन में सफाई देते-देते यह भूल बैठे कि व सत्ता प्रमुख हैं. उनकी सफाई, उनके ही निर्णय पर सवाल पैदा करने लगी.

राजकुमार की तो बात ही क्या? इकलौते हैं, मम्मी के लाडले हैं. जब से उन्होंने ‘दिल तो बच्च है’ सुना है, घड़ी-घड़ी रूठने लगे हैं. पहले वे जनता से रूठे, फिर जनता उनसे रूठ गयी. और अब वह पूरी पार्टी से ही रूठ गये हैं. खैर, पार्टी और मम्मी को संतोष इस बात का है कि वे संन्यासी नहीं बनेंगे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें