बजट में विकास दर बढ़ाने का रोडमैप

बिहार का सालाना बजट पेश हो चुका है. इस बजट के जरिए नीतीश सरकार के पास अपने सामावेशी विकास के नारे को अमली जामा पहनाने का पूरा मौका है. बजट कैसा होगा, इसका पूर्वानुमान मंगलवार को पेश आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में हो चुका था. सरकार के पास दो गंभीर चुनौतियां थीं. पहली, विकास दर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 13, 2015 5:53 AM
बिहार का सालाना बजट पेश हो चुका है. इस बजट के जरिए नीतीश सरकार के पास अपने सामावेशी विकास के नारे को अमली जामा पहनाने का पूरा मौका है. बजट कैसा होगा, इसका पूर्वानुमान मंगलवार को पेश आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में हो चुका था. सरकार के पास दो गंभीर चुनौतियां थीं. पहली, विकास दर को कायम रखना.
दूसरी, आय को लेकर पैदा हो रही विसंगतियों को दूर करना. आर्थिक सर्वेक्षण में यह साफ था कि विकास दर धीमी हुई है. इसे तेज करने के पुराने और आजमाये हुए फामरूले को ही नीतीश सरकार के वित्त मंत्री ने आजमाया है. उनका पूरा जोर खेती और निर्माण क्षेत्र पर है. इन क्षेत्रों में निवेश का रोडमैप इस बजट में दिखता है. बिहार जैसे राज्य में जहां औद्योगिक गतिविधियां अब तक जोर नहीं पकड़ पायी हैं, औद्योगिक गतिविधियों पर जोर देने और उन्हें सरकारी संरक्षण देने से कहीं बेहतर है कि खेती और निर्माण जैसे क्षेत्र में ज्यादा फोकस किया जाये.
दरअसल अब बजट में आंकड़ों की कलाबाजी देखने के बदले इसमें सरकार की नीति व नीयत देखने की भी जरूरत है. इस बार बजट पेश करने से पहले सरकार के पास यह भी चुनौती रही है कि केंद्र से मदद मिलने का नया फामरूला बन चुका है. इस नये फामरूले को लेकर कुछ मोरचों पर राज्य सरकार को नये तरीके से काम करना होगा क्योंकि बीआरजीएफ की जो राशि मिलती थी, वह बंद हो जायेगी. चुनावी साल होने के कारण राजस्व जुटाने के लिए जनता पर बोझ नहीं डालने का भी दवाब रहा होगा. इसका असर बजट में दिखा भी है.
बजट में सरकार के दावों और विपक्ष की काट का आर्थिक जानकार अध्ययन कर रहे हैं. लेकिन आम बिहारी तो पूरे बजट भाषण में अपने लिए राहत के तौर पर मिलने वाली नौकरियों, आय के नये साधनों, स्वास्थ्य की अच्छी सुविधाओं, रहने लायक गांव-शहर जैसी व्यवस्था के लिए क्या कुछ कहा गया है, यह ढूंढ़ता है. फिर उसका आकलन करता है. बिहार विधानसभा का चुनाव इसी साल होना है, इसलिए नीतीश सरकार ने आम बिहारियों की तमाम चाहतों को सीमित बजट में समेटने की कोशिश जरूर की है. अब देखना है कि तकरीबन छह महीने के बाद जब नीतीश सरकार चुनावी मैदान में उतरेगी, तो आम बिहारी कितने नंबर देता है.

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